Tithi in Astrology | तिथियों के प्रकार, देवता तथा स्वभाव का ज्ञान
Tithi in Astrology | तिथियों के प्रकार, देवता तथा स्वभाव का ज्ञान. भारतीय हिन्दू काल गणना के अनुसार एक मास में कुल 30 तिथियाँ होतीं हैं, जो शुक्ल और कृष्ण दो पक्षों में विभाजित है। एक अमावस्या के अन्त से शुरु होकर दूसरे अमावस्या के अन्त तक का काल चन्द्र मास कहलाता है। अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र का भोंगाश समान होता है। इन दोनों ग्रहों के भोंगाश में जब अन्तर का बढ़ता है तो तिथि का जन्म होता है। सूर्य सिद्धान्त के आधार पर पंचांगाें की तिथियां दिन में किसी भी समय आरम्भ हो सकती हैं और इनकी अवधि उन्नीस से छब्बीस घण्टे तक हो सकती है।
कैसे होता है तिथि का निर्माण ?
सूर्य और चंद्रमा के अंतराल (दूरी) से तिथियां निर्मित होती हैं। अमावस्या के दिन सूर्य एवं चंद्रमा एक साथ होते हैं अत: उस दिन सूर्य और चंद्रमा का भोग्यांश समान होता है। जब चंद्रमा अपनी शीघ्र गति से जब 12 अंश आगे बढ़ जाता है तो एक तिथि पूर्ण होती है।
तिथि = ( चंद्र अक्षांश -सूर्य अक्षांश )/12
शुक्ल और कृष्ण पक्ष को मिलाकर कुल 30 तिथियां होती है। जब चन्द्रमा सूर्य से 0 डिग्री तथा 180 डिग्री के मध्य होता है तो शुक्ल पक्ष कहलाता है। जब चन्द्रमा 180 डिग्री से ऊपर अंश को होता है तो कृष्ण पक्ष कहलाता है। यह भी कह सकते है कि जब चन्द्रमा सूर्य की ओर आगे बढ़ता है तो कृष्ण पक्ष होता है।
पूर्णिमा तिथि | Purnima Tithi
जब चंद्रमा सूर्य से 12 से 24 अंश की दूरी पर होता है तो दूसरी तिथि होती है। इसी तरह सूर्य से चंद्रमा 180 अंश की दूरी पर होता है तो पूर्णिमा तिथि होती है ।
अमावस्या तिथि | Amavasya Tithi
जब सूर्य और चन्द्रमा एक साथ एक ही समान डिग्री पर स्थित होता है तो इसे अमावस्या कहा जाता है।
सूर्य और चन्द्रमा के अंशात्मक दूरी के आधार पर तिथि विचार
शुक्ल पक्ष की तिथि |
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1 | 0 से 12 अंश | प्रतिपदा |
2 | 12 से 24 अंश | द्वितीया |
3 | 24 से 36 अंश | तृतीया |
4 | 36 से 48 अंश | चतुर्थी |
5 | 48 से 60 अंश | पंचमी |
6 | 60 से 72 अंश | षष्ठी |
7 | 72 से 84 अंश | सप्तमी |
8 | 84 से 96 अंश | अष्टमी |
9 | 96 से 108 अंश | नवमी |
10 | 108 से 120 अंश | दशमी |
11 | 120 से 132 अंश | एकादशी |
12 | 132 से 144 अंश | द्वादशी |
13 | 144 से 156 अंश | त्रयोदशी |
14 | 156 से 168 अंश | चतुर्दशी |
15 | 168 से 180 अंश | पूर्णिमा |
कृष्ण पक्ष की तिथि-(ह्रास मान अंशों के अनुसार) |
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1 | 180 से 168 अंश | प्रतिपदा |
2 | 168 से 156 अंश | द्वितीया |
3 | 156 से 144 अंश | तृतीया |
4 | 144 से 132 अंश | चतुर्थी |
5 | 132 से 120 अंश | पंचमी |
6 | 120 से 108 अंश | षष्ठी |
7 | 108 से 96 अंश | सप्तमी |
8 | 96 से 84 अंश | अष्टमी |
9 | 84 से 72 अंश | नवमी |
10 | 72 से 60 अंश | दशमी |
11 | 60 से 48 अंश | एकादशी |
12 | 48 से 36 अंश | द्वादशी |
13 | 36 से 24 अंश | त्रयोदशी |
14 | 24 से 12 अंश | चतुर्दशी |
15 | 12 से शून्य अंश | अमावस्या |
Tithi | तिथियों का आध्यात्मिक महत्त्व
सभी तिथियों की अपनी एक अध्यात्मिक विशेषता होती है जैसे अमावस्या पितृ पूजा के लिए आदर्श होती है, चतुर्थी गणपति की पूजा के लिए, पंचमी आदिशक्ति की पूजा के लिए, छष्टी कार्तिकेय पूजा के लिए, नवमी राम की पूजा, एकादशी व द्वादशी विष्णु की पूजा के लिए, त्रयोदशी शिव पूजा के लिए, चतुर्दशी शिव व गणेश पूजा के लिए तथा पूर्णमा सभी तरह की पूजा से सम्बन्धित कार्यकलापों के लिए अच्छी होती है.
तिथियों के प्रकार | Classification of Tithis
हिन्दू पञ्चाङ्ग में शुभ मुहूर्त के निर्धारण के लिए तिथियों को पांच भागों में विभाजित किया गया है जो निम्न है ——-
तिथियों के प्रकार | तिथि | |
1 | नंदा | प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी तिथि |
2 | भद्रा | द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी |
3 | जया | तृतीया,अष्टमी, त्रयोदशी |
4 | रिक्ता | चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी |
5 | पूर्णा | पंचमी, दशमी, पूर्णिमा, अमावस्या |
शुक्ल पक्ष की प्रथम पांच तिथियां अशुभ होती है तो दूसरी पांच तिथियां मध्यम तथा अंतिम पांच तिथियां शुभ मानी जाती है उसी तरह कृष्ण पक्ष की प्रथम पांच तिथियां शुभ, दूसरी पांच तिथियां मध्यम तथा अंतिम तिथियां अशुभ मानी जाती है।
तिथियाँ |
तिथि प्रकार नाम |
क्षेत्रीय नाम |
देवता |
स्वभाव |
प्रतिपदा | नन्दा | पड़वा | अग्नि | वृद्धिप्रद |
द्वितीया | भद्रा | दूज | ब्रह्म | मंगलप्रद |
तृतीया | जया | तीज | पार्वती शिव | बालप्रद |
चतुर्थी | रिक्ता | चौथ | गणेशजी | खल |
पंचमी | पूर्णा | पंचमी | सर्पदेव (शेषनाग) | लक्ष्मीप्रद |
षष्ठी | नन्दा | छठम | स्कंध (कार्तिकेय) | यशप्रद |
सप्तमी | भद्रा | सातम | सूर्यदेव | मित्रप्रद |
अष्टमी | जया | आठम | शिव | दवंद्व |
नवमी | रिक्ता | नौमी | दुर्गाजी | उग्र |
दशमी | पूर्णा | दसम | यमराज | सौम्य |
एकादशी | नन्दा | ग्यारस | विश्वदेव | आनंदप्रद |
द्वादशी | भद्रा | बारस | विष्णु | यशप्रद |
त्रयोदशी | जया | तेरस | कामदेव | जयप्रद |
चतुर्दशी | रिक्ता | चौदस | शिव | उग्रप्रद |
पूर्णिमा | पूर्णा | पूर्णिमा | चन्द्रमा | सौम्य |
अमावस्या | पूर्णा | अमावस | पित्रदेव | पितर |
Importance of Tithis | तिथियों की उपयोगिता
प्रतिपदा तिथि
इसके स्वामी अग्नि देव है तथा नन्दा नाम से प्रतिष्ठित है। इस तिथि का स्वाभाविक गुण वृद्धि प्रदान करने वाला है। शुक्ल पक्ष में अशुभ एवं कृष्ण पक्ष में शुभ फल देने वाला होता है । इस तिथि में कदीमा ( कूष्माण्ड )फल का दान एवं भक्षण नहीं करना चाहिए।
द्वितीया तिथि
यह तिथि शुभ और सिद्धिदायक है। इसके स्वामी ब्रह्मा तथा भद्रा नाम से प्रसिद्ध है। शुक्ल पक्ष में अशुभ एवं कृष्ण पक्ष में शुभ फल देता है । कटेरी फल का न ही दान करें और न ही भक्षण करें।
तृतीया तिथि
यह तिथि बल प्रदान करता है। यदि इस तिथि में कोई रोगी इलाज शुरू करता है तो जल्द ही ठीक हो जाता है। इसकी स्वामी गौरी ( पार्वतीजी ) हैं। जया नाम से प्रतिष्ठित है। शुक्ल पक्ष में अशुभ एवं कृष्ण पक्ष में शुभ फल देता है। इस तिथि में नमक नहीं खाना चाहिए। नमक का का दान भी न करें।
चतुर्थी तिथि
यह खल और हानिप्रद तिथि है। इसके स्वामी गणेश जी हैं। रिक्ता नाम से ख्याति, शुक्ल पक्ष में अशुभ, कृष्ण पक्ष में शुभ । इस तिथि में तिल का दान और भक्षण नहीं करना चाहिए।
पंचमी तिथि
इसके तिथि के स्वामी नागराज वासुकी हैं। यह धनदायक व शुभता प्रदान करता है। पूर्णा नाम से प्रसिद्ध है। यह शुक्ल पक्ष में अशुभ और कृष्ण पक्ष में शुभ फल देता है । इस तिथि में खट्टी वस्तुओं का दान और भक्षण नहीं करना चाहिए।
षष्ठी तिथि
यह तिथि मान-सम्मान और यश देने वाला है। इसके स्वामी स्कंददेव हैं। नन्दा नाम से ख्याति प्राप्त है। शुक्ल व कृष्ण पक्ष में मध्यम फल देने वाला है। इस तिथि में तैल कर्म त्याज्य है ।
सप्तमी तिथि
इस तिथि के स्वामी साक्षात् सूर्य देव हैं। यह मित्रप्रद व शुभ तिथि है। भद्रा नाम से ख्याति प्राप्त है। शुक्ल व कृष्ण दोनों पक्षों में मध्यम फल देता है। इस तिथि में आंवला फल न ही दान करें और न ही खाएं।
अष्टमी
बलवती व रोग नाशक तिथि है। इसके देवता शिव जी हैं। जया नाम से ख्याति प्राप्त। शुक्ल व कृष्ण दोनों पक्षों में मध्यम फल देता है। इस तिथि में नारियल फल का दान और भक्षण त्याज्य है ।
नवमी तिथि
यह तिथि उग्र व कष्टकारी है। इसके देवता दुर्गा जी हैं। रिक्ता नाम से प्रसिद्ध। शुक्ल व कृष्ण दोनों पक्षों में मध्यम फल देता है। इस तिथि में सीताफल (कोहड़ा, कद्दू) त्याज्य है ।
दशमी तिथि
सौम्य, धर्मिणी और धनदायक तिथि है। इसके देवता यम हैं। पूर्णा नाम से प्रतिष्ठित है। शुक्ल व कृष्ण दोनों पक्षों में मध्यम फल देता है। इस तिथि में परवल नहीं खाना चाहिए।
यह तिथि आनंद और खुशियां प्रदान करता है। इसके देवता विश्वदेव हैं। नन्दा नाम से ख्याति प्राप्त है। शुक्ल पक्ष में शुभ तथा कृष्ण पक्ष में अशुभ फल देता है। इस दिन दाल का दान तथा भक्षण नहीं करना चाहिए।
द्वादशी तिथि
यह तिथि यश, मान-सम्मान और सिद्धि प्रदान प्रदाता है। इसके देवता साक्षात् हरि हैं। भद्रा नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। शुक्ल पक्ष में शुभ, कृष्ण पक्ष में अशुभ फल देता है। इस तिथि में मसूर का दाल त्याज्य है।
त्रयोदशी तिथि
यह जयकारी और सर्वसिद्धिकारी तिथि है। इसके देवता मदन (कामदेव) हैं। जया नाम से ख्याति प्राप्त। शुक्ल पक्ष में शुभ, कृष्ण पक्ष में अशुभ फल देता है। इस दिन बैंगन का दान तथा भक्षण त्याज्य है।
चतुर्दशी तिथि
उग्रा और क्रूरा तिथि में गिनती होती है। इसके देवता शिवजी हैं। रिक्ता नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। शुक्ल पक्ष में शुभ तथा कृष्ण पक्ष में अशुभ फल देता है। इस दिन मधु का दान और भक्षण त्याज्य है।
पूर्णिमा तिथि
यह सौम्य और पुष्टि प्रदाता तिथि है। इसके देवता चंद्रमा हैं। पूर्णा नाम से प्रतिष्ठित हैं। शुक्ल पक्ष में शुभ फल देता है। इस तिथि में घृत का दान तथा भक्षण त्याज्य है।
अमावस्या तिथि
उद्वेगकर और पीड़ाकारक अशुभ तिथि है। इसके स्वामी पितृगण हैं। अशुभ फल प्रदान करता है। इस तिथि में मैथुन कर्म नहीं करना चाहिए।
तिथि वृद्धि | Tithi Vridhi
भारतीय ज्योतिष की परम्परा में जब एक ही तिथि में दो बार सूर्योदय आता है वह वृद्धि तिथि कहलाती है। जब कोई तिथि सूर्योदय से पहले शुरू होती है और दूसरे सूर्योदय के पश्चात समाप्त होती है तो इसे तिथि वृद्धि कहा जाता है। इस तिथि में हमें किसी भी प्रकार का कोई शुभ कर्म प्रारम्भ नहीं करना चाहिए।
तिथि क्षय | Tithi kshaya
जिस तिथि में एक भी सूर्योदय न हो तो उस तिथि का क्षय हो जाता है अर्थात जब तिथि सूर्योदय के बाद शुरू होता है तथा दूसरे सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाता है तो यह तिथि क्षय कहलाती है। इस तिथि में हमें किसी भी प्रकार का कोई शुभ कार्य प्रारम्भ नहीं करना चाहिए।
उदाहरण से समझें –
तिथि क्षय
- दिनांक – 11 /06/2022
- सूर्योदय समय दिल्ली – 5 :27
- एकादशी तिथि समाप्त – 5 :46
- द्वादशी तिथि आरम्भ – 5 :4 7
- द्वादशी तिथि समाप्त – 27 : 24 ( प्रातः 3 बजकर 24 मिनट )
- सूर्योदय समय 12/06/2022 – 05:27
उपर्युक्त कालांश गणना के अनुसार द्वादशी तिथि का प्रारम्भ सूर्योदय के 20 मिनट बाद होती है तथा दूसरे दिन सूर्योदय से 2 घंटे पूर्व ही द्वादशी तिथि की समाप्ति हो रही है इसलिए तिथि क्षय हुआ।
Tithi | तिथि गण्डान्त
तिथियों को 5 प्रकार में विभाजित किया गया है। पूर्णा की पञ्चमी, दशमी और पूर्णिमा तिथियों की अन्तिम 1 घटी (अर्थात 24 मिनट) का समय तथा नंदा की प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी की प्रारम्भिक 1 घटी का समय तिथि गण्डान्त कहलाते हैं। इस तिथियों में किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
पर्व तिथि
कृष्ण पक्ष की अष्टमी, चतुर्दशी अमावस्या पूर्णिमा तथा संक्रांति के दिन की तिथियां पर्व तिथि कहलाती है। इस दिन किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
गलग्रह तिथि | Galgrah Tithi
शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की सप्तमी, अष्टमी,नवमी,त्रोदशी,चतुर्दशी, पूर्णिमा तथा अमावस्या एवं केवल कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि गलग्रह कहलाती है। इस तिथि में उपनयन संस्कार तथा शैक्षिक मुहूर्त पूर्णतया वर्जित है।
अंध तिथि | Andhya Tithi
निम्न मास की तिथियां अंध तिथि कहलाती है …
- आषाढ़ शुक्ल – दशमी
- ज्येष्ठा शुक्ल – द्वितीया
- पौष शुक्ल – एकादशी
- मघा शुक्ल – द्वादशी
तथा किसी भी मास के प्रतिपदा, अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या तिथि को अंध तिथि कहलाता है। इस तिथि में उपनयन संस्कार तथा शैक्षिक मुहूर्त पूर्णतया वर्जित है।
प्रदोष तिथि | Pradosh Tithi
शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्ष की जब बारहवीं तिथि मध्य रात्रि से पूर्ण समाप्त होती है, षष्ठी तिथि रात्रि के डेढ़ प्रहर में समाप्त होती है तथा तृतीया तिथि रात्रि के 1 प्रहर पूर्व समाप्त होती है तो यह प्रदोष तिथि कहलाता है। इस तिथि में उपनयन संस्कार तथा शैक्षिक मुहूर्त पूर्णतया वर्जित है।
युगादि तिथियां | Yugadi Tithi
युग का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। वैदिक संस्कृति और ज्योतिष के अनुसार 4 युग है – सत्ययुग, द्वापर, त्रेतायुग तथा कलयुग। इस समय कलयुग चल रहा है। आइये जानते हैं युगादि तिथियां कब से शुरुआत शुरू हुई —-
- सत्ययुग – कार्तिक शुक्ल, नवमी
- त्रेतायुग – वैशाख शुक्ल, तृतीया
- द्वापर युग – मघा कृष्ण पक्ष, अमावस्या
- कलयुग – भाद्रपद कृष्ण, त्रयोदशी
मन्वादि तिथियां | Mnuadi Tithi
प्रलय के उपरांत जिस तिथि को सृष्टि का पुनः प्रारम्भ हुआ उसे मन्वादि तिथियां के नाम से जाना जाता है। वैदिक संस्कृति में कुल मनु और तिथियां हुए है उनके नाम और तिथियां अधोलिखित है ——
मनु के नाम | मास | पक्ष | तिथियां |
स्वयंभू | चैत्र | शुक्ल | तृतीया |
स्वरोचिषा | चैत्र | शुक्ल | पूर्णिमा |
औत्तम | कार्तिक | शुक्ल | पूर्णमा |
तामस | कार्तिक | शुक्ल | द्वादशी |
रैवत | आषाढ़ | शुक्ल | द्वादशी |
वैवस्वत | आषाढ़ | शुक्ल | पूर्णिमा |
सावर्णि | ज्येष्ठा | शुक्ल | पूर्णिमा |
दक्ष सावर्णि | अश्विन | शुक्ल | पूर्णिमा |
ब्रह्मा सावर्णि | मघा | शुक्ल | नवमी |
ब्रह्म सावर्णि | पौष | शुक्ल | सप्तमी |
रूद्र सावर्णि | भाद्र | शुक्ल | त्रोदशी |
देव सावर्णि | श्रवण | कृष्ण | तृतीया |
इंद्र सावर्णि | श्रवण | कृष्ण | अमावस्या |
वर्तमान समय में वैवस्वत मन्वन्तर चल रहा है उपर्युक्त निर्दिष्ट मन्वादि तथा युगादि तिथियां को उपनयन संस्कार, शिक्षा का आरम्भ , घर निर्माण या गृह प्रवेश शैक्षिक उद्देश्य से कोई यात्रा इत्यादि में त्याग देना चाहिए। इस तिथियां में सभी प्रकार के धार्मिक गतिविधियाँ यज्ञ, हवन, भागवत कथा इत्यादि शुभ कार्य करना चाहिए।