पितृदोष से मुक्ति हेतु महाउपाय | Remedies for Pitrdosh

पितृदोष से मुक्ति हेतु महाउपाय में सूर्यदेव तथा माता-पिता का आशीर्वाद, पिंड दान,गाय की सेवा करना, पीपल में जल डालना इत्यादि शामिल है। पितृदोष मुख्य रूप से सूर्य(sun) के कमजोर होने, अशुभ ग्रहों के साथ युति,दृष्टि होने से होता है अतः यदि कुंडली में सूर्य ग्रह शुभ भाव का स्वामी होकर अशुभ ग्रहों के कारण पितृदोष उत्पन्न कर रहा है तो सूर्य को रत्न पहनकर मजबूत करना चाहिए। यदि सूर्य अशुभ भाव का स्वामी होकर पितृदोष उत्पन्न कर रहा है तो प्रातः काल सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए तथा सूर्य देव को ध्यान कर, गायत्री मन्त्र का जप करते हुए सूर्यदेव से शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करनी चाहिए।

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पितृदोष से मुक्ति हेतु महाउपाय (Remedies for Pitrdosh)

पिंड दान करना पितृदोष से मुक्ति हेतु महाउपाय है। पिंड दान आश्विन मास में, कृष्ण पक्ष के प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है तथा सोमवती अमावस्या तक चलता है। पिंड  दान बिहार के गया जिला के विष्णुपद के फल्गु नदी के तट पर प्रथम पिंड के रूप में दिया जाता है तत्पश्चात 14 दिनों तक, चौदह स्थानो पर एक-एक करके दिया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर(गया में) सीताजी ने भी अपने श्वसुर दशरथजी के लिए पिंड दान दी थी।

गरुड़ पुराण के अनुसार :– अपमृत्यु वाले मनुष्य गया में किये गए श्राद्ध कर्म से ही विमुक्त होते है। यथा —

असंस्कृता मृता ये च पशुचौरहताश्च ये।

सर्पदष्टा गयाश्राद्धान्मुक्ताः स्वर्ग व्रजन्ति ते।।

अन्य स्थान पर भी कहा गया है — यहाँ पिंडदान करने वाला और गौ दान करने वाला पूर्वजो की इक्कीस पीढ़ियों का उद्धार करता है।

गरुड़ पुराण के अनुसार :-

श्राद्धदः पिंडदस्तत्र गोप्रदानम् करोति यः।

एकविंशतिवंशान स तारयेन्नात्र संशयः। ।

यही कारण है की इस स्थान पर देश के सभी राज्यों(state) से लोग पिंड दान करने के लिए आते है साथ ही विदेशी सैलानी( foreigner)  भी यहाँ आकर पिंड दान करते है।

व्यक्ति को अपने गृह की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों का फोटो लगाना चाहिए तथा फोटो पर माला का हार चढ़ाकर प्रतिदिन नियमित रूप से धुप अगरबती से पूजा करना चाहिए।

माता-पिता का आदर-सत्कार तथा धन, वस्त्र, भोजनादि से सेवा करते हुए उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए कहा भी गया है:-

अभिवादनशीलस्य नित्यः वृद्धोपसेविनः। चत्वारः वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्।।

अपने दिवंगत पूर्वजों की पुण्य तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा अपनी सामर्थ्यानुसार दान-दक्षिणा एवं नियम से पितृ तर्पण और श्राद्ध करते रहना चाहिए।

प्रत्येक अमावस्या के दिन पितरों का ध्यान करते हुए और “ऊँ पितृभ्य: नम:” मंत्र का जाप करते हुए पीपल के वृक्ष पर गंगाजल, कच्ची लस्सी,काले तिल, चावल, चीनी, पुष्प तथा जल अर्पित करना चाहिए। तत्पश्चात पितृ सूक्त का  भी पाठ करना चाहिए।

प्रत्येक रविवार, अमावस्या और संक्रांति के दिन सूर्य भगवान को ताम्बे के बर्तन में शुद्ध जल में गंगाजल तथा लाल चंदन मिलाकर बीज मंत्र

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः

पढ़ते हुए तीन बार अर्ध्य देना चाहिए।

श्राद्ध के दिनों में मांस, मदिरा,पराये अन्न तथा तामसिक वृत्त्यादि का भी त्याग करना चाहिए। ऐसा करने से पितरो को आत्मिक शांति मिलती है तथा परिणामस्वरूप हमें शुभ फल की प्राप्ति होती है।

पितरों की शांति के लिए नियमित श्राद्ध तो करना ही चाहिए साथ ही साथ श्राद्ध के दिनों में गाय,कौओं, कुत्तों तथा भूखों को भी अपने सामर्थ्यानुसार खाना खिलाना चाहिए।

अपने घर में किसी गमले में पीपल का पेड़ लगा लेना चाहिए तथ प्रतिदिन पूजा करनी चाहिए ऐसा करने से शीघ्र ही पितृदोष से शांति मिलती है।

पितृ दोष के शमन करने के लिए पितृ पक्ष में श्री नारायण बली की पूजा करानी चाहिए।

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