श्रीमयूरेश स्तोत्रं : जेल से छुड़ाने तथा रोग निवारणार्थ गणेश स्तोत्रम्

गणपति बप्पा मोरया मंगल मूर्ति मोरया

आप सभी जानते हैं की भगवान् भगवान् शिव-पार्वती पुत्र गणेश लोक में विघ्नहर्ता के रूप में प्रतिष्ठित हैं। भक्त गण अपने कार्य को सफल बनाने के लिए सर्वप्रर्थम भगवान् गणपति की आराधना करते तत्पश्चात ही कोई कार्य शुरू करते है ऐसा करने से उनके कार्यों की सिद्धि अवश्य ही होती है। कहा भी गया है —
“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ |
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा ||”

भगवन गणेश जी के अनेको स्तोत्रम् हैं किन्तु मयूरेश स्तोत्रम् का महत्व सर्वकल्याणकारी है।

मयूरेश स्तोत्र स्तवन का महत्त्व

कहा जाता है है की राजा इंद्र ने मयूरेश स्तोत्र से गणेशजी को प्रसन्न कर विघ्नों पर विजय प्राप्त की थी। यह स्तोत्र शीघ्र ही फलदायी है। यह स्तोत्र स्वयंसिद्ध स्तोत्र के रूप में प्रतिष्ठित है इसके स्मरण मात्र से ही साधक को अपने कार्यो में सफलता मिलती है। मयूरेश स्तोत्र के पाठ से घर में आने वाली सभी प्रकार के समस्याओं का समाधान होता है।
इस स्तोत्र को घर में प्रतिदिन अवश्य ही पाठ करना चाहिए। इसका पाठ पुरुष एवं स्त्री दोनों समान रूप से कर सकते हैं। इसका पाठ चतुर्थी तिथि पर अवश्य ही करनी चाहिए उसमे भी अंगारक चतुर्थी पर स्तोत्र का स्तवन करने से फल सहस्त्र गुना बढ़ जाता है।

मयूरेश स्तोत्रस्त्वन पूर्व क्या करें

स्तोत्रस्त्वन से पूर्व साधक को चाहिए की प्रातःकाल सर्व्रथम नित्य-क्रिया से निवृत्त हो जाए उसके बाद स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें पवित्र आसन पर पूर्व की ओर मुख करके बैठ जाएँ। उसके बाद अपने सम्मुख गणपति यंत्र या मूर्ति स्थापित करें। उसके बाद भगवान् की विधिवत दूर्वा, अक्षत, धुप दीप नैवैद्य इत्यादि से पूजा अर्चना करें। उसके बाद मयूरेश स्तोत्र का पाठ प्रारम्भ करें।

मयूरेश स्तोत्र स्तवन कब आरम्भ करें ?

मयूरेश स्तोत्र स्तवन का आरम्भ हमेशा किसी भी शुक्ल पक्ष के बुधवार से या गणेश चतुर्थी से करें। अंगारक चतुर्थी से आरम्भ करने से श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है।
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मयूरेश स्तोत्रम्

ब्रह्मा उवाच
पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा ।
मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 1 ॥
परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् ।
गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 2 ॥
सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया ।
सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 3 ॥
नानादैत्यनिहन्तारं नानारुपाणि बिभ्रतम् ।
नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 4 ॥
इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम् ।
सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 5 ॥
सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरुपधरं विभुम् ।
सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 6 ॥
पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् ।
भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 7 ॥
मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपुरकम् ।
समष्टिव्यष्टिरुपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 8 ॥
सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।
सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 9 ॥
अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्र्वरम् ।
अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥ 10 ॥
मयूरेश उवाच
इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम् ।
सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् ॥ 11 ।
कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात् ।
आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् ॥ 12 ॥

ब्रह्माजी बोले

  1. जो पुराणपुरुष है और प्रसन्नतापूर्वक अनेक प्रकारकी लीला करते हैं, जो माया के स्वामी हैं, तथा जिनका स्वरुप अचिन्त्य है, उन मयूरेश गणेशको मैं नमस्कार करता हूँ। ।
  2. जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार हैं तथा गुणातीत एवं गुणमय हैं एवं सभी भूतों के हृदयमें अन्तर्यामी रुप से स्थित रहते हैं उन मयूरेश गणेश को मैं नमस्कार करता हूँ ।
  3. जो अपनी इच्छा से ही संसारकी सृष्टि, पालन, और संहार करते हैं, वैसे सर्वविघ्नहारी देवता मयूरेश गणेशको मैं नमस्कार करता हूँ ।
  4. जो अनेकानेक दैत्योंके प्राण नष्ट करने वाले हैं, और अनेक प्रकारके रुप धारण करते हैं, उन नाना अस्त्र-शस्त्रधारी मयूरेश गणेश को मैं भक्तिभावसे नमस्कार करता हूँ ।
  5. जिनका स्तवन इन्द्र आदि देवताओं का समुदाय दिन-रात किया करते हैं तथा जो सत्, असत् व्यक्त और अव्यक्तरुप हैं, उन मयूरेश गणेशको मैं नमस्कार करता हूँ ।
  6. जो सर्वशक्तिमय, सर्वरुपधारी और सम्पूर्ण विद्याओं के प्रवक्तारूप में हैं, उन मयूरेश गणेशको मैं नमस्कार करता हूँ ।
  7. जो पार्वतीजी और भगवान् शंकर को पुत्ररुप से आनन्दवर्धन करते है उन भक्तानन्दवर्धन मयूरेश गणेश को मैं नमस्कार करता हूँ ।
  8. मुनि जिनका ध्यान करते हैं, मुनि जिनके गुण गाते हैं तथा जो मुनियों की कामना पूर्ण करते हैं, उन समष्टि-व्यष्टिरुप मयूरेश गणेशको मैं नमस्कार करता हूँ ।
  9. जो समस्त अज्ञान को नष्ट करने वाले हैं और सम्पूर्ण ज्ञानके उद्भावक, पवित्र, सत्य ज्ञानस्वरुप तथा सत्यनामधारी हैं, उन मयूरेश गणेशको मैं नमस्कार करता हूँ ।
  10. जो अनेकानेक कोटि ब्रह्माण्डके नायक, जगदीश्र्वर, अनन्त वैभव-सम्पन्न तथा सर्वव्यापी विष्णुरुप में हैं, उन मयूरेश गणेशको मैं नमस्कार करता हूँ ।

मयूरेश बोले

यह स्तोत्र ब्रह्म भाव की प्राप्ति कराने वाला और समस्त पापों को नष्ट करने वाला है । मनुष्यों को सम्पूर्ण मनोवाञ्छित वस्तु प्रदान करने वाला और सभी प्रकार के उपद्रवों का शीघ्र ही नष्ट कर देनेवाले हैं । यदि सात दिन तक निरंतर इसका पाठ करें तो कारागार में पडे स्थित मनुष्यों को भी छुडा लाता है । यह शुभ स्तोत्र आधि (मानसिक) तथा व्याधि (शरीरगत दोष) को भी हर लेता है और भोग एवं मोक्ष देता है ।

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