Yamitra Dosha in Marriage – विवाह मुहूर्त में यामित्र दोष और परिहार
Yamitra Dosha in Marriage – विवाह मुहूर्त में यामित्र दोष और परिहार विवाह मुहूर्त में यामित्र दोष का परिहार अवश्य ही कर लेना चाहिए ऐसा नहीं करने पर विवाह उपरान्त दाम्पत्य जीवन में कष्ट मिलने की संभावना होती है। शास्त्रानुसार विवाह नक्षत्र से 14 वें नक्षत्र पर जब कोई ग्रह हो, तो यामित्र या जामित्र दोष लगता है। जामित्र का सम्बन्ध जन्मकुंडली में स्थित द्वादश भाव में सप्तम स्थान से है और सप्तम स्थान विवाह का भाव होता है इसलिए यह भाव महत्वपूर्ण हो जाता है।
क्यों आवश्यक है सप्तम भाव की शुद्धि ?
विवाह मुहूर्त के समय चन्द्रमा या लग्न से सप्तम भाव में यदि कोई ग्रह हो, तो यामित्र वा जामित्र दोष होता है। इसी कारण सप्तम स्थान की शुद्धि आवश्यक होती है। पूर्ण चंद्र ( Moon), बुध (Mercury), गुरु (Jupiter) और शुक्र (Venus) के होने से जामित्र शुभ तथा पाप ग्रहों के होने से अशुभ फलदायक होता है। सप्तम भाव में अशुभ ग्रह व्याधि और वैधव्य का कारक होता है।
Yamitra Dosha – यामित्र दोष चक्र से जानें ! वेध्य नक्षत्र
विवाह ( Marriage) नक्षत्र के सामने वाले नक्षत्रों पर स्थित कोई भी ग्रह उस नक्षत्र में होने पर यामित्र नामक दोष होता है। इस चक्र में लिखित प्रत्येक विवाह नक्षत्र और सामने के कोष्ठक में उससे 14 वां नक्षत्र लिखित है इस पर कोई भी ग्रह होने पर विवाह नक्षत्र को यामित्र दोष होता है।
विवाह नक्षत्र | वेध्य नक्षत्र |
अश्वनी | चित्रा |
रोहिणी | अनुराधा |
मृगशिरा | ज्येष्ठा |
मघा | धनिष्ठा |
उत्तर फाल्गुनी | पूर्व भाद्रपद |
हस्त | उत्तर भाद्रपद |
चित्रा | रेवती |
स्वाति | आश्विन |
अनुराधा | कृतिका |
मूल | मृगशिरा |
उत्तर अषाढा | पुनर्वसु |
श्रवण | पुष्य |
धनिष्ठा | आश्लेषा |
उत्तर भाद्रपद | उत्तर |
Yamitra Dosha | कैसे होता है यामित्र दोष का परिहार ?
यदि विवाह मुहूर्त में यामित्र दोष बन रहा है और उसी दिन शादी करनी भी है तो निम्नलिखित स्थितियों में यामित्र दोष का परिहार माना जाता है जब ……..
- यदि क्रूर या पापी ग्रह से दोष हो रहा है तो उस ग्रह की पूजा कर लेनी चाहिए।
- यामित्र ग्रह वाले ग्रह को शुभ ग्रह देखते हों तो यह दोष नहीं लगता है।
- सप्तम भाव में चन्द्रमा और गुरु स्वगृही, उच्चस्थ या मित्र क्षेत्री हो तो यामित्र दोष नहीं रहता है।