Sexual Relationships in Birth Chart | जन्मकुंडली से जानें ! यौन सुख है या नहीं ?

Sexual Relationships | जन्मकुंडली से जानें ! यौन सुख है या नहीं ? जन्म कुंडली ( Horoscope) में शुक्र ग्रह को यौन सुख ( Sexual Pleasure) प्रदान करने वाला ग्रह माना गया है। यह स्त्रीकारक ग्रह हैं। शुक्र में आकर्षण, आसक्ति, वासना और मनमोहक शक्ति है इसी कारण किसी भी व्यक्ति की यौन सुख तथा भौतिक समृद्धि एवं सुखी जीवन के सम्बन्ध में जानने के लिए जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह से विचार किया जाता है। शुक्र को आकर्षण, खूबसूरती व मर्दानगी को चुनौती देने वाला, विषय वासनामय कहा गया है।

वैवाहिक जीवन ( Marriage Life )को सफल बनाने में यौन सुख का स्थान महत्वपूर्ण होता है। जन्मकुंडली में   गुरु,( Jupiter)  चंद्र ( Moon)  और शुक्र ( Venus)  ही ऐसा ग्रह हैं, जो यौन संतुष्टि प्रदान करता हैं। यदि ये ग्रह किसी भी तरह से अशुभ ग्रह शनि, मंगल, राहु, केतु से सम्बन्ध बनाता है तो जातक को दाम्पत्य जीवन से मिलने वाला यौन सम्बन्ध ( Sexual Relationship ) में कमी होती है।

हर व्यक्ति की यौन संतुष्टि का पैमाना अलग-अलग होता है और यह भी देखने में आया है कि सभी को यौन सुख से संतुष्टि नहीं मिल पाती है । ऐसी स्थिति के लिए वास्तव में कोई न कोई ग्रह ही जिम्मेदार होता है अतः यदि जातक को  यह पता चल जाए कि वास्तव में यह ग्रह इसका कारक हैं, ग्रह से सम्बन्धित उपाय करके समस्या का समाधान किया जा सकता है।

Significator of Sexual Relationship | यौन सुख के लिए कारक ग्रह

पुरुष की कुंडली में शुक्र तथा तथा स्त्री की कुंडली में वृहस्पति दाम्पत्य जीवन में यौन सुख ( Sexual Pleasure) का मुख्य कारक ग्रह है। शुक्र यौन अंगों और वीर्य का कारक माना जाता है इसलिए लिंग, शुक्राणु, वीर्य पर इसका प्रभाव होता है। इसी कारण यह ग्रह स्त्री अथवा पुरुष जातक में कामवासना और यौन सुख के उपभोग के प्रति आकर्षण पैदा करता है। शुक्र की तुला राशि नैसर्गिक कुण्डली में सप्तम भाव में आती है, इसलिए इस भाव से देखा जाने वाला मूत्रपिण्ड, मूत्राशय, गर्भाशय आदि अंग भी शुक्र के अधिकार क्षेत्र में आता हैं।

ज्योतिषी जन्मकुंडली में शुक्र की उच्च, नीच, स्वराशि इत्यादि की स्थिति के आधार पर व्यक्ति के दाम्पत्य जीवन में मिलने वाले यौन सुख के सम्बन्ध ( Sexual Relationship) में भविष्यवाणियां करता है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार यदि जन्मकुंडली में शुक्र ( Venus Remedies) ग्रह शुभ स्थिति में है तो व्यक्ति भौतिक तथा शारीरिक सुख का आनंद लेता है। यह व्यक्ति में कलात्मक सोच और आकर्षण उत्पन्न करता है इसी कारण ये विपरीतलिंग के प्रति हावी रहते हैं। शारीरिक सुख का कारक ग्रह शुक्र है इसलिए यह विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण तथा उसे पाने के लिए तीव्र लालसा पैदा करता है।

नपुंसकता या सेक्स के प्रति अरुचि के लिए शुक्र को ही जिम्मेदार माना जाता है| यदि जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति सशक्त एवं प्रभावशाली है तो जातक को सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत यदि शुक्र कमजोर अथवा अशुभ ग्रहो से प्रभावित है तो भौतिक अभावों के साथ साथ वैवाहिक सुख में कमी सामना करना पड़ता है।

शुक्र सुखोपभोग अर्थात केवल शरीर सुख ही नहीं बल्कि शरीर के प्रत्येक  हिस्से को सुख देने वाली वस्तुए संगीत, गायन, वादन, आंखों को सुख प्रदान करने वाली विषय-वस्तु यथा – फिल्म , नाटक, खूबसूरत चीजें व चित्र, खूबसूरत स्थान, इत्र, सुगन्ध, चंदन इत्यादि वस्तुए शुक्र ग्रह के अधिकार में आती हैं।

स्त्री की कुंडली में वृहस्पति ( Jupiter Remedies) से पति के सम्बन्घ में विचार किया जाता है यदि स्त्री की कुंडली में वृहस्पति ग्रह शुभ स्थति में बैठा है तो तथा कोई अशुभ ग्रहो के दृष्टि युति के प्रभाव में नही है तो वैसी स्थिति में जातिका अपने दाम्पत्य जीवन यात्रा में यौन सुख का भरपूर आनंद का रसास्वादन करती है। यह स्पष्ट है की स्त्री की कुंडली में वैवाहिक यौन सुख में वृहस्पति ग्रह का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

Sexual Relationship Houses| यौन सुख हेतु कारक भाव

यौन सुख के लिए प्रथम, सप्तम तथा द्वादश भाव मुख्यरूप से कारक माने गए है।

यौन सुख के ज्योतिषीय विश्लेषण |  Astrological Analysis of Sexual Pleasure

  1. यदि शुक्र ग्रह केंद्र या त्रिकोण में स्थित है और उस पर किसी भी अशुभ ग्रह की दृष्टि या युति नहीं है तो वैसा जातक सुखी दाम्पत्य जीवन व्यतीत करता है।
  2. यदि शुक्र केंद्र या त्रिकोण में उच्च का या अपने घर ( वृष वा तुला राशि ) में बैठा है और अशुभ दृष्टि या युति नहीं है तो वैसा जातक सुन्दर तथा आकर्षक शरीर वाला होगा साथ ही वह जीवन में यौन सुख का भरपूर आनंद भी लेगा।
  3. यदि शुक्र  के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख यानि यौन सुख में वॄद्धि होती है। वहीं षष्ठेश, अष्टमेश उआ द्वादशेश के साथ संबंध होने पर दांपत्य सुख में कमी आती है।
  4. सप्तम भाव ( विवाह भाव) में खुद सप्तमेश स्वग्रही हो एवं उसके साथ किसी पाप ग्रह की युति अथवा दॄष्टि नही हो तो वह सुखी दाम्पत्य जीवन व्यतीत करता है।
  5. यदि सप्तम भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो, शुक्र सप्तमेश से केंद्र में हो, चन्द्रमा एवं शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो वैसा जातक दांपत्य जीवन में यौन सुख का भरपूर उपभोग करता है।
  6. द्वादश भाव शय्या सुख का भाव है अतः इस भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो, या शुभ ग्रह बैठा हो या इस भाव का स्वामी केंद्र या त्रिकोण में हो तो ऐसा जातक कम उम्र में ही यौन सुख का आनंद लेने में सफल होता है।
  7. लग्नेश सप्तम भाव में स्थित हो और उस पर चतुर्थेश की शुभ दॄष्टि हो, एवम अन्य शुभ ग्रह भी सप्तम भाव में हों तो ऐसे जातक सुखद दांपत्य जीवन व्यतीत करता है।
  8. सप्तमेश शुभ ग्रह होकर केंद्र, त्रिकोण या एकादश भाव में स्थित हो तो ऐसा जातक सुखी दाम्पत्य जीवन व्यतीत करता है।
  9. सप्तमेश एवम शुक्र दोनों उच्च राशि में, स्वराशि में हों और उन पर पाप प्रभाव नहीं हो तो दांपत्य जीवन सुखमय होता है.
  10. सप्तमेश बलवान होकर लग्नस्थ या सप्तमस्थ हो एवम शुक्र और चतुर्थेश भी साथ हों तो सुखपूर्वक दाम्पत्य जीवन व्यतीत होता हैं साथ ही ऐसा युगल काम क्रीड़ा का चरम आनंद लेने में समर्थ होता है।

स्त्री की जन्मकुंडली | Female Birth Chart

  1. स्त्री की कुंडली में बलवान सप्तमेश होकर वॄहस्पति सप्तम भाव को देख रहा हो तो ऐसी स्त्री को अत्यंत उत्तम पति सुख प्राप्त होता है.
  2. अगर स्त्री की कुंडली में लग्र में शुक्र और चंद्र हो तो उसे अनेक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है।
  3. जिस स्त्री की कुंडली में लग्नेश सप्तमेश नवमेश तथा जिस राशि में चंद्रमा है उसका स्वामी शुभ ग्रहों के साथ केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो हो तो ऐसी स्त्री सुंदर मनमोहक तथा आकर्षक होती है साथ ही वह अपने पति का प्रिय होकर दांपत्य जीवन का भरपूर आनंद प्राप्त करती है।
  4. यदि स्त्री की कुंडली में अष्टम भाव में शुभ ग्रह है या शुभ ग्रह की दृष्टि है तो वह लंबी उम्र तक दाम्पत्य जीवन का सुख प्राप्त करती है।
  5. स्त्री की कुंडली में यदि चतुर्थ स्थान में पाप ग्रह हो तथा लग्न, चंद्र और शुक्र, मंगल या शनि के राशि में हो तो ऐसी स्त्री व्यभिचारिणी होती है अर्थात वह अनेक पुरुष के साथ यौन सुख का आनंद लेती है।
  6. स्त्री की कुंडली में यदि सप्तम भाव मध्य शुभ ग्रह की राशि में हो तो स्त्री सुंदर होती है तथा पति सुख का आनंद प्राप्त करती है।

दाम्पत्य जीवन में यौन सुख का अभाव

  • ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मंगल ( Mars), शनि ( Saturn) , राहु, केतु तथा सूर्य पारिवारिक जीवन के साथ ही साथ जीवनसाथी एवं यौन सुख में कमी लाता है।
  • जिस जातक की कुण्डली में मंगल चौथे घर ( Mars in Fourth House)  में बैठा होता है उनके दाम्पत्य जीवन में सुख की कमी करता है।
  • सातवें घर में मंगल ( Mars in seventh House) की दृष्टि से इनकी शादी में देरी तथा जीवनसाथी से मतभेद एवं यौन सुख में कमी लाता है।
  • जिस व्यक्ति की  जन्म कुंडली में मंगल सप्तम भाव यानी जीवनसाथी के घर में होता है उसका अपने जीवनसाथी से अक्सर मतभेद बना रहता है तथा यौन सुख में कमी करता है।
  • दाम्पत्य सुख वा यौन सुख का संबंध पति-पत्नि दोनों से होता है एक कुंडली में दाम्पत्य सुख हो और दूसरे की कुंडली में नही हो तो उस अवस्था में भी दांपत्य सुख नही मिल पाता।
  • यदि शुक्र ग्रह जन्मकुंडली में निर्बल अथवा अशुभ ग्रह से प्रभावित हो तो दाम्पत्य सुख का अभाव रहता है।
  • शुक्र पर मंगल के प्रभाव से जातक का जीवन अनैतिक होता है और शनि का प्रभाव जीवन में निराशा व वैवाहिक जीवन में विच्छेद ( Divorce), अवरोध अथवा कलहपूर्ण जिंदगी व्यतीत करने के लिए मजबूर करता  है।

4 Comments

  1. pranam sir
    mujhe noukari nhi lag rha h
    mera janam 25 -09 -1987 , gaya, bihar me hua h
    time- 6.28 morning
    kab lagega sir ji

  2. शनी महादशा मे शनी साडेसाती मेरे लिये कैसी रहेगी ?

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