शनि का नवम भाव में फल | Saturn Effects 9th House
शनि का नवम भाव में फल | Saturn Effects 9th House. जन्मकुंडली में नवम भाव को भाग्य भाव के नाम जाना जाता है। यह त्रिकोण भाव भी है। इस भाव से जातक भाग्य तथा पिता की स्थिति का विचार किया जाता है। शनि यदि नवम भाव में स्थित हो तो उसकी दृष्टियां एकादश, तृतीय तथा षष्ठ भावों पर रहती हैं। यदि शनि स्थित है तो उसकी दृष्टियों का प्रभाव जातक के लाभ, परिश्रम और शत्रु क्षेत्र पड़ता है। इस भाव में स्थित शनि अन्य ग्रहो की युति, दृष्टि व स्वामित्व के अनुसार शुभ-अशुभ फल प्रदान करता है।
ज्योतिष के ऋषि-आचार्य ने नवमस्थ शनि को सामान्य फल देना वाला कहा है। किन्तु तार्किक रूप से यह कहा जा सकता है कि पापयुक्त शनि जब नवम वा भाग्य भाव में स्थित होकर उसे पीड़ित करे तो नवम भाव के शुभत्व नष्ट होगा अर्थात जातक के भाग्यवृद्धि में कमी होगी।
नवमस्थ शनि के सम्बन्ध में आचार्य का मत—-
प्राचीन आचार्य मंत्रेश्वर के मत में नवमस्थ शनि का फल —
भाग्यार्थात्मजतात धर्मरहितो मंदे शुभे दुर्जनः।
अर्थात यदि शनि नवम में हो तो जातक दुष्ट भाग्यहीन, धनहीन, धर्महीन, पुत्रहीन तथा पितृहीन होता है। हालांकि मेरे अनुसार यह फल उचित नहीं है। हां भाग्य वृद्धि में रुकावट अवश्य देता है।
अन्य विद्वान् पराशर मुनि ने कहा है —-
नवमे मित्रबन्धनं भाग्यहानिश्च
अर्थात यदि नवम स्थान में शनि ग्रह स्थित है तो जातक की भाग्य की हानि होती है तथा मित्रों को जेल होता है।
नवमस्थ शनि और जातक का स्वभाव | Saturn in 9th House & Nature
नवम भाव का शनि मिश्रित फल देने में समर्थ होता है। यदि शनि इस स्थान में उच्च का होता है या अपने घर का होता है तो जातक स्वभाव से निडर, स्थिरचित्त, शुभकर्म करने वाला, भ्रमणशील और धर्मात्मा होता है।जातक सॉफ्टस्पोकेन होगा। वह विचारशील, दानी और दया भाव रखने वाला व्यक्ति होता हैं। ऐसे लोग आध्यात्म में विशेष रुचि रखने वाले होते हैं। तीर्थयात्राओं में भी इनकी अच्छी रुचि होती है।
यदि शनि नीच का या शत्रु क्षेत्री होता है उपर्युक्त विषयो के विपरीत फल देता है। ऐसा जातक अपने विचारो में खोया रहता है तथा यह धर्म परिवर्तन में विश्वास रखने वाला हो सकता है।
शनि का नवम भाव में फल : सामान्य फल विचार
ऐसा व्यक्ति ज्योतिष और तंत्र जैसे विषयों के प्रति विशेष रूचि रखता है। यहां स्थित शनि आपको बडी प्रसिद्धि देगा। व्यक्ति अपने जीवनकाल में कुछ ऐसा कार्य भी करता है जो मरने के बाद भी लोग याद करते हैं। जातक के शरीर के अंगो में कही पर विकार और हीनता होती है। जातक का स्वभाव तथा बुद्धि दुष्ट होते हैं।
नवमस्थ शनि यदि उच्च में अथवा अपनी राशि में हो तो जातक के पूर्वजन्म तथा पुनर्जन्म दोनों अच्छे होता है। जातक महेश्वर यज्ञ करनेवाल विजयी राजचिन्हो तथ राजा के वाहनों से युक्त होता है। शनि ( Saturn ) के नवम भाव में होने से जातक अधिकार प्राप्त करता है वा अधिकारी के रूप में कार्य करता है। ऐसा जातक तालाब मंदिर इत्यादि का निर्माण भी कराता है।
यदि शनि के साथ कोई पाप ग्रह हो या शनि खुद ही कमजोर है तो पिता के लिए खराब फल देता है। इस स्थान में शनि पिता के सुख में कमी करता है। पिता की शीघ्र मृत्यु होती है। यदि पिता जीवित होती है पिता और पुत्र में परस्पत वैमनस्य रहता है। जातक को पिता की सम्पति विरासत में मिलती है। जातक 27 वे वर्ष में स्वयं से काम करना शुरू करता है। जातक का यदि भाई-बहन है तो उसका अनबन रहता है।
शनि प्रथम भाव में फल | शनि दूसरे भाव में फल | शनि तृतीय भाव में फल |
शनि चतुर्थ भाव में फल | शनि पंचम भाव में फल | शनि षष्ठ भाव में फल |
शनि सप्तम भाव में फल | शनि अष्टम भाव में फल | शनि नवम भाव में फल |
शनि दशम भाव में फल | शनि एकादश भाव में फल | शनि बारहवें भाव में फल |