पितृ दोष के ज्योतिषीय कारण | Astrological Reason of Pitra Dosh

सामान्यतः पितृ दोष के ज्योतिषीय कारण(Astrological Reason of Pitra Dosh) का निर्धारण जन्म कुंडली में प्रथम,द्वितीय,पंचम,सप्तम,दशम और नवम भाव तथा सूर्य,राहु और शनि ग्रहों के आधार पर होता है। जन्मपत्री में नवम भाव को पिता तथा पूर्वजो का भाव कहा गया है। यह भाव जातक के लिए भाग्य स्थान भी है। इस कारण इस भाव का विशेष रुप से महत्वपूर्ण हो जाता है। परम्परानुसार पितृ दोष पूर्व जन्म में किये गए कुकृत्यों का परिणाम है। इसके अलावा इस योग के बनने के अनेक अन्य कारण भी हो सकते है। महर्षि पराशर मुनि ने भी अपने ग्रन्थ बृहत्पराशर होराशास्त्र में पितृ दोष तथा उससे होने वाले कष्टों के सम्बन्ध में बताया है साथ ही किस ग्रहों के योग से यह दोष बनता है वह भी बताया है।

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ज्योतिष में सूर्य पिता का कारक है तथा राहु छाया ग्रह है जब राहु ग्रह की युति सूर्य के साथ होती है तो सूर्यग्रहण लगता है उसी प्रकार जातक की कुंडली में जब सूर्य तथा राहु की युति एक ही भाव अथवा राशि में होती है तो पितृ दोष नामक योग बनता है। पितृ दोष होने पर जातक (व्यक्ति) को संतान कष्ट, नौकरी तथा व्ययवसाय में दिक्कत, विवाह अथवा वैवाहिक कष्ट भोगना पड़ता है।

पितृ दोष और ग्रह योग (Planetary Combination and Pitra Dosh)

  1. जन्म कुण्डली में स्थित ग्रहो की स्थिति, युति, दृष्टि तथा उच्च-नीच के आधार पर पितृ दोष के कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्न प्रकार से है :-
  2. जब व्यक्ति के कुण्डली में सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ एक ही भाव में बैठे हो तो पितृ दोष होता है तथा जिस भाव में यह दोष बनता है उसी भाव से सम्बंधित कष्ट भोगना पड़ता है।
  3. कुण्डली में द्वितीय भाव, नवम भाव, द्वादश भाव और भावेश पर पापी ग्रहों का प्रभाव होता है या फिर भावेश अस्त या कमज़ोर होता है और उन पर केतु का प्रभाव होता है तब यह दोष बनता है।
  4. लग्न या लग्नेश दोनों अथवा दोनों में से कोई एक अत्यंत कमज़ोर स्थिति में हो।
  5. यदि लग्नेश नीच का हो तथा लग्नेश के साथ राहु और शनि का युति और दृष्टि सम्बन्ध बन रहा हो तो पितृदोष होता है।
  6. चन्द्र जिस राशि में बैठा है उस राशि का स्वामी तथा सूर्य जिस राशि में बैठा है उसका स्वामी जब नीच राशि में होकर लग्न में हो अथवा लग्नेश से दृष्टि, युति का सम्बन्ध बनाते हो साथ ही कोई न कोई पापी ग्रहों का भी युति या दृष्टि सम्बन्ध हो तो जातक को पितृ दोष लगता है।
  7. लग्नस्थ गुरु यदि नीच का हो तथा त्रिक भाव के स्वामियों से बृहस्पति ग्रह युति या दृष्टि सम्बन्ध बनाता हो तो पितृ दोष होता है।
  8. यदि राहु नवम भाव में बैठा हो तथा नवमेश से सम्बन्ध बनाता हो।
  9. नवम भाव में बृहस्पति और शुक्र की युति तथा दशम भाव में चन्द्र पर शनि व केतु का प्रभाव हो।
  10. शुक्र अगर राहु या शनि और मंगल द्वारा पीड़ित होता है तब भी पितृ दोष का संकेत समझना चाहिए।
  11. अष्टम भाव में सूर्य व पंचम में शनि हो तथा पंचमेश राहु से युति कर रहा हो और लग्न पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तब पितृ दोष होता है।
  12. पंचम अथवा नवम भाव में पापी ग्रह हो।
  13. जिस जातक की कुण्डली में दसमेश त्रिक भाव में हो तथा वृहस्पति पापी ग्रहों के साथ स्थित हो तथा लग्न और पंचम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक को पितृ दोष लगता है।
  14. पंचम भाव, सिंह राशि तथा सूर्य भी पापी ग्रहों से युत या दृष्ट हो तब भी पितृ दोष होता है।

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