संस्कृत भाषा का महत्त्व – 51 सूत्र से समझे संस्कृत पढ़ना क्यों है जरूरी ?
संस्कृत भाषा का महत्त्व – 51 सूत्र से समझे संस्कृत पढ़ना क्यों है जरूरी ? अमृतं संस्कृतं मित्र ! सरसं सरलं वचः । एकतामूलकं राष्ट्रे ज्ञानविज्ञानपोषकम्।। अर्थात हे मित्र ! यह देव वाणी संस्कृत भाषा अमृत के समान है, सरल और सरस है, राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधती है और समस्त ज्ञान और विज्ञान का पोषण करने वाली है। संस्कृतमेव भारतीय संस्कृतिः एतस्मिन किञ्चिदपि सन्देहं नास्ति। संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है, संस्कृति है, एक संस्कार है । इस भाषा में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है, “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना है।
यही वह भाषा है जो श्रेयस और प्रेयस कर्म के विभेद का ज्ञान कराती है। यह भाषा सबके सुख, रोगमुक्त, सबका कल्याण तथा कोई भी दुःखी न हों के लिए प्रार्थना करता है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥
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संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है अन्य भाषाओँ की शब्दावली या तो संस्कृत से ली गयी है या संस्कृत से प्रभावित है। इसका प्रभाव कश्मीर से कन्याकुमारी तथा गुजरात से अरुणाचल तक सर्वत्र विद्ययमान है। आज भी मंत्रायल और संस्थान के मुख्य ध्येय वाक्य संस्कृत में ही लिखित है यथा –
भारत सरकार | सत्यमेव जयते |
दूरदर्शन | सत्यम् शिवम् सुंदरम् |
भारतीय प्रौधोगिकी संस्थान खड़गपुर | योगः कर्मसु कौशलम् |
दिल्ली विश्वविद्यालय | निष्ठा धृतिः सत्यम् |
डाक तार विभाग | अहर्निशं सेवामहे |
इत्यादि सहस्त्र उदाहरण प्रतिष्ठित है। इससे संस्कृत भाषा और विषय की महत्ता स्वयं सिद्ध है। महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण, भगवान् कृष्ण के द्वारा कथित गीता, कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र इत्यादि ग्रंथ जो सैकड़ो वर्ष पूर्व लिखा हुआ है आज भी मिल का पत्थर बना हुआ है। गीता और रामायण का मात्र एक श्लोक जीवन के उद्देश्य को समझाने में समर्थ है।
संस्कृत भाषा का महत्त्व – 51 सूत्र से समझे संस्कृत पढ़ना क्यों है जरूरी ?
- विश्व की सबसे प्राचीन ग्रन्थ (वेद – ऋग्वेद ,यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ) की भाषा संस्कृत ही है।
- इस भाषा को दो भाग में बांटा गया है एक अलौकिक वा वैदिक संस्कृत और दूसरा लौकिक संस्कृत। अलौकिक वा वैदिक संस्कृत का प्रयोग वेद (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्वेद), पुराण, उपनिषद में मिलता है। लौकिक संस्कृत का प्राचीन उपयोग 500 ईसा पूर्व रामायण और महाभारत में मिलता है। लौकिक संस्कृत वैदिक संस्कृत का ही विकसित रूप है जो पाणिनि के व्याकरण से प्रतिष्ठित हुआ।
- महादेव के डमरू से निःसृत 14 माहेश्वर सूत्र अर्थात संस्कृत की वर्णमाला अत्यंत ही वैज्ञानिक परक है। 14 माहेश्वर सूत्र —-
१. अइउण्। २. ऋऌक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्। इसी सूत्र में सर्वप्रथम अनुवृत्ति का सिद्धांत तथा कम शब्दों में ज्यादा कह देना शामिल हुआ इसी कारण यह भाषा तकनिकी रूप से कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है। केवल ‘अच्’ कहने मात्र से सभी स्वर वर्ण का बोध हो जाता तो वहीं ‘हल’ कहने मात्र से व्यंजन शब्द का बोध हो जाता है।
- संगीत की उत्पत्ति तथा सुर ताल का संबंध भी माहेश्वर सूत्र से ही है।
- इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।
- संस्कृत नाम “दैंवी वागन्वाख्याता महर्षिभि:” वाक्य में जिसे देवभाषा या ‘संस्कृत’ कहा गया है
- संस्कृत कवि कालिदास को संस्कृत का शेक्सपियर कहा जाता है।
- सभी देवी-वेवताओं की स्तुति संस्कृत भाषा में ही प्रतिष्ठित है।
- संस्कृत के विद्वान यास्क ( वैयाकरणाचार्य और वैदिक संज्ञाओं के व्युत्पतिकार तथा निरुक्त ) पाणिनि ( वैयाकरणाचार्य और अष्टाध्यायी के रचनाकार ), पतंजलि योगसूत्र के रचनाकार है जिसकी महत्ता आज भी विश्वजगत में देदीप्यमान है।
- संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वानों यथा भरत मुनि (नाट्यशास्त्रम्) भामह (काव्यालंकार) दण्डी (काव्यादर्श ) उद्भट (काव्यालंकारसारसंग्रह) वामन (काव्यालंकारसूत्रवृत्ति) रुद्रट (काव्यालंकार) आनन्दवर्धन (ध्वन्यालोक ) राजशेखर (काव्यमीमांसा) भट्टनायक (हृदयदर्पण) भोज (सरस्वतीकण्ठाभरणम्,शृंगारप्रकाश) मम्मट (काव्यप्रकाश) विश्वनाथ (साहित्यदर्पण) कालिदास ( उत्तर रामचरित, रघुवंशम, मेघदूत, अभिज्ञानशाकुंतलम) इत्यादि अनेक ग्रंथो की रचना की है जिसमे उस काल विशेष की संस्कृति की झलक मिलती है।
- महर्षि चरक के द्वारा लिखित चरक संहिता जो एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है आज भीआयुर्वेद के आधार ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित है।
- संस्कृत नाम में ही संस्कृत की महत्ता सिद्ध है, देखें कितनी वैज्ञानिकतापूर्वक संस्कृत शब्द की उत्पत्ति हुई – संस्कृत = सम् + सुट् + ‘कृ करणे’ + क्त प्रत्यय। यहाँ (‘सम्पर्युपेभ्यः करोतौ भूषणे’ इस सूत्र से ‘भूषण’ अर्थ में ‘सुट्’ या सकार का आगम हुआ है। ‘भूते’ इस सूत्र से भूतकाल को द्योतित करने के लिए संज्ञा अर्थ में क्त-प्रत्यय आया है। “कृ” धातु ‘करणे’ या कार्य सम्पादन के अर्थ में) अर्थात् संस्कृत शब्द विभूषित, समलंकृत या संस्कारयुक्त है और हमारी भारतीय संस्कृति भी है इसे सजाने और सवारने का कार्य महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायन और योगशास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि ने किया है।
- शब्द-रूप – विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक या कुछ ही रूप होते हैं, जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 27 रूप होते हैं।
- द्विवचन – सभी भाषाओं में एकवचन और बहुवचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है।
- सन्धि – संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत में जब दो अक्षर निकट आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जा है ।
- इसे कम्प्यूटर और कृत्रिम बुद्धि के लिये सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।
- संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं और क्रम बदलने पर भी सही अर्थ सुरक्षित रहता है। जैसे – सः गृहं गच्छति या गच्छति गृहं सः दोनो ही ठीक हैं।
- हिन्दू, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत में हैं।
- हिन्दुओं के सभी पूजा-पाठ और धार्मिक संस्कार की भाषा संस्कृत ही है।
- हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों के नाम भी संस्कृत पर आधारित होते हैं।
- भारतीय भाषाओं की तकनीकी शब्दावली भी संस्कृत से ही व्युत्पन्न की जाती है।हिन्दू, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत में हैं।
- भारतीय भाषाओं की तकनीकी शब्दावली भी संस्कृत से ही व्युत्पन्न की जाती है।
- संस्कृत के मातृ शब्द हिंदी में माता, तो मलयालम में अम्मा, लैटिन में मातेर, अंग्रेजी में मदर्, वहीँ जर्मन में मुटेर तो फ़ारसी में मादर कहलाता है इसी प्रकार अन्य शब्दों में साम्यता है।
- संस्कृत ही एक ऐसी भाषा जिसकी अनेक विश्वविद्यालय है।
- संस्कृत भाषा का व्याकरण अत्यन्त परिमार्जित एवं वैज्ञानिक है
- पाणिनि विरचित अष्टाध्यायी जिसमे कुल 4000 सूत्र है किसी भी भाषा के व्याकरण का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है।
- संस्कृत में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के कई तरह से शब्द-रूप बनाये जाते हैं, जो व्याकरणिक अर्थ प्रदान करते हैं।
- संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा है।
- भारत में अरब लोगो के अधिकार से पूर्व संस्कृत ही भारत की राष्ट्रीय भाषा थी।
- NASA तथा उसके वैज्ञानिक के अनुसार, संस्कृत ही हजारों बोली जाने वाली भाषाओं में एक मात्र ऐसी भाषा है जो सबसे स्पष्ट भाषा है।
- NASA के पास संस्कृत में ताड़पत्रो पर लिखी 60,000 पांडुलिपियां है जिन पर नासा रिसर्च कर रहा है।
- नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब वो अंतरिक्ष ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलट जाते थे। इस कारण से मैसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने कई भाषाओं का प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। अंततः उन्होंने संस्कृत में मैसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उल्टे हो जाने पर भी अपना अर्थ नही बदलते हैं। जैसे अहम् विद्यालयं गच्छामि। विद्यालयं गच्छामि अहम्। गच्छामि अहम् विद्यालयं । उक्त तीनो के अर्थ में कोई अंतर नहीं है।
- नासा के वैज्ञानिको द्वारा बनाए जा रहे छठे और सातवें जेनरेशन के सुपर कम्प्यूटर्स संस्कृतभाषा पर आधारित होंगे जो 2034 तक बनकर तैयार हो जाएंगे।
- वर्तमान में संस्कृत के शब्दकोष में 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द है।
- संस्कृत किसी भी विषय के लिए एक अद्भुत निधि है। इस भाषा में एक शब्द के लिए अनेक शब्द विद्यमान है, जैसे – सिंह के लिए ही संस्कृत में 100 से ज्यादा शब्द है।
- संस्कृत में दुनिया की किसी भी भाषा से ज्यादा शब्द है।
- फ़ोबर्स मैगज़ीन ने जुलाई,1987 में संस्कृत को Computer Software के लिए सबसे बेहतर भाषा माना था।
- किसी और भाषा के मुकाबले संस्कृत में सबसे कम शब्दो में वाक्य पूरा हो जाता है। जैसे – केवल “गच्छति” कह देने से यह अर्थ निकलता है की वह जाता है अथवा जा रहा है।
- संस्कृत विश्व की समस्त भाषाओँ में अकेली ऐसी भाषा है जिसे बोलने में जीभ की सभी मांसपेशियो का स्वतः ही प्रयोग हो जाता है।
- संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सदा सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश (Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।
- अमेरिकन हिंदु युनिवर्सिटी के अनुसार संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो जाएगा।
- संस्कृत स्पीच थेरेपी में भी मददगार है साथ ही यह एकाग्रता को भी बढ़ाती है।
- कर्नाटक के मुत्तुर और मध्यप्रदेश का झिरी ऐसा गाँव है जहाँ लोग केवल संस्कृत में ही बात करते है।
- सुधर्मा संस्कृत का पहला अखबार था, जो 1970 में शुरू हुआ था। आज भी इसका ऑनलाइन संस्करण उपलब्ध है।
- ऐसे कई पत्रिका है जो संस्कृत भाषा में छपती है यथा – सम्प्रतिवार्ता, प्राची प्रज्ञा, संस्कृत विमर्श, जाह्नवी, साहित्य अमृतं, भारतीय विद्या संस्कृत मंजरी इत्यादि ।
- संस्कृत भाषा में ई पत्रिका भी छपती है जिसका नाम है – “संस्कृत सर्जना” यह त्रैमासिक संस्कृत ई पत्रिका है।
- जर्मनी में बड़ी संख्या में संस्कृतभाषियो की मांग है। जर्मनी की 14 यूनिवर्सिटीज़ में संस्कृत पढ़ाई जाती है।
- आपको जानकर हैरानी और ख़ुशी होगी कि कंप्यूटर द्वारा गणित के सवालो को हल करने वाली विधि यानि अल्गोरिथम्स संस्कृत में बने है ना कि अंग्रेजी में।
- संस्कृत पढ़ने और सीखने से दिमाग तेज होता है और याद करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए लंदन और आयरलैंड के कई स्कूलो में संस्कृत को अनिवार्य विषय बना दिया है। इस समय दुनिया के 18 से ज्यादा देशो की कम से कम एक यूनिवर्सिटी में तकनीकी शिक्षा के कोर्सेस में संस्कृत पढ़ाई जाती है।
- संस्कृत भाषा में विद्वानों में ही ऐसा सामर्थ्य था जिन्होंने केवल एक वर्ण का प्रयोग कर वह सब कुछ कह देते थे जो उन्हें कहना था। शिशुपालवध में माघ ने इस पंक्तियों में केवल एक वर्ण का प्रयोग किया है —न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।
नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥अनुवाद : हे नाना मुख वाले (नानानन)! वह निश्चित ही (ननु) मनुष्य नहीं है जो जो अपने से कमजोर से भी पराजित हो जाय। और वह भी मनुष्य नहीं है (ना-अना) जो अपने से कमजोर को मारे (नुन्नोनो)। जिसका नेता पराजित न हुआ हो वह हार जाने के बाद भी अपराजित है (नुन्नोऽनुन्नो)। जो पूर्णनतः पराजित को भी मार देता है (नुन्ननुन्ननुत्) वह पापरहित नहीं है (नानेना)। - समाज में स्त्रियों को सम्मान सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में ही मिलता है —यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।मनुस्मृति अध्याय ३, श्लोक ५६।।जहां स्त्री का आदर-सम्मान होता है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार में देवता निवास करते है और जहां स्त्रियों का सम्मान नहीं होता वहां किये गये कार्य सफल नहीं होते हैं ।
संस्कृत भाषा का यही है महत्त्व
वेंकटाध्वरि द्वारा रचित “राघवयादवीयम” एक संस्कृत के अद्भुत ग्रन्थ है। जिसे ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़े तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक।
जैसे इस श्लोक के माध्यम से जानें —
वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः।
रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥
अनुलोम अर्थ
मैं उन भगवान श्रीराम के चरणों में प्रणाम करता हूँ जिनके ह्रदय में सीताजी रहती हैं तथा जिन्होंने अपनी पत्नी सीता के लिए सहयाद्रि की पहाड़ियों से होते हुए लंका जाकर रावण का वध किया तथा वनवास पूरा कर अयोध्या वापस लौटे।
विलोम श्लोक
सेवाध्येयो रामालाली गोप्याराधी भारामोराः।
यस्साभालंकारं तारं तं श्रीतं वन्देऽहं देवम् ॥ १॥
विलोम अर्थ
मैं रूक्मिणी तथा गोपियों के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रणाम करता हू जो सदा ही मां लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं तथा जिनकी शोभा समस्त रत्नों की शोभा को हर लेती है।