Sankat Nivaran Hanuman Ashtak – हनुमानाष्टक रोग, भय से मुक्ति दिलाता है
पवन तनय संकट हरण मंगल मूर्ति रूप, राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप । “सिया पति रामचंद्र की जय” । रामभक्त हनुमान जी की पूजा आराधना करने से जातक में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है फलस्वरूप वह सभी प्रकार के व्याधि और भय से मुक्त हो जाता है। संकट मोचन “हनुमान अष्टक” का नियमपूर्वक प्रतिदिन पाठ करने से जीवन यात्रा में आने वाली सभी समस्याओं निवारण शीघ्र ही हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं है । हनुमान भक्त जब “हनुमानाष्टक” का पाठ करते हैं तो उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। हनुमानजी वा बजरंगबली की सच्चे मन से स्मरण करने मात्र से समस्याएं सुलझ जाती है और यदि हनुमान अष्टक का पाठ करें तो सभी प्रकार के रोग और पाप से मुक्ति मिल जाती है।
Sankat Nivaran Hanuman Ashtak | हनुमानाष्टक पाठ करने की विधि ?
“हनुमान अष्टक” का पाठ करते समय किस विधि, नियम और सावधानियां की जानकारी भी अत्यावश्यक है। आइए जानते हैं की हनुमान अष्टक पाठ करने से पूर्व हमें क्या सावधानी रखना जरुरी है।
“संकटनिवारण हनुमानाष्टक” पाठ की शुरुआत शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से करें । मंगलवार के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करके नया या साफ़ वस्त्र धारण करें। कुश से बना आसन बिछाएं। उसके बाद पूजा स्थान पर भगवान हनुमान की मूर्ति स्थापित करें। हनुमान अष्टक का आरंभ करते समय सर्वप्रथम गणेश जी उसके बाद भगवान राम और माता सीता की आराधना करें।
तत्पश्चात हमुमान जी को नमन करके हनुमानाष्टक पाठ करने का संकल्प लें। कुश से बना आसन पर बैठकर हनुमानाष्टक का पाठ आरंभ करने का संकल्प लें । हनुमान जी को फूल अर्पित करें और उनके समक्ष धूप, दीप जलाएं। पाठ पूर्ण हो जाने के बाद भगवान राम का स्मरण और कीर्तन करें। हनुमान जी को प्रसाद के रूप में बेसन के लड्डू और अन्य मौसमी फल अर्पित करें और पाठ करना प्रारम्भ करें।
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संकल्प और ब्रह्मचर्य व्रत
यदि आप किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए हनुमानाष्टक का पाठ कर रहे हैं तो कम से कम 43 दिनों तक यह पाठ नियमपूर्वक अवश्य ही करें और इस संकल्प में मन कर्म और वचन से पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें यदि ऐसा नहीं करते हैं तो सफलता नहीं मिलेगी।
Sankat Nivaran Hanuman Ashtak | हनुमानाष्टक स्तोत्र
॥दोहा॥
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान॥
॥ हनुमानाष्टक ॥
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीन हुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 1 ॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥ 2 ॥
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ 3 ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मरो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ 4 ॥
बान लाग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सूत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दिए तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥ 5 ॥
रावन जुध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ 6 ॥
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाये सहाए भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥ 7 ॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो ॥ 8 ॥
॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥
॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥