Sakat Chauth Vrat 2022: संतान की दीर्घायु हेतु माताएं रखती हैं सकट चतुर्थी व्रत

Sakat Chauth Vrat 2025 : संतान की दीर्घायु हेतु माताएं रखती हैं सकट चतुर्थी व्रत

Sakat Chauth Vrat 2025 : संतान की दीर्घायु हेतु माताएं रखती हैं सकट चतुर्थी व्रतSakat Chauth Vrat 2025: संतान की दीर्घायु हेतु माताएं रखती हैं सकट चतुर्थी व्रत. प्रत्येक मास दो गणेश चतुर्थी का व्रत आता है किन्तु माघ माह में चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व माना गया है। माघ मास के चतुर्थी तिथि को सकट चौथ, संकष्टी चतुर्थी और तिलकुट चौथ के नाम से जाना जाता है।  इस वर्ष 2025 में यह व्रत 17 जनवरी को है।  इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।

इस दिन माताएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और  संध्या को चंद्रमा को अर्घ्य देती है पुनः उसके बाद व्रत खोलती हैं। यह भी कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से ईश्वर समस्त कष्टों से शीघ्र ही मुक्ति दिलाते हैं। भक्त के अंतर्मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार निरंतर बना रहता है।

Sakat Chauth Vrat 2025 | 17 जनवरी 2025 का पंचांग

चतुर्थी तिथि का प्रारंभ –  17 जनवरी 2025 को प्रातः 04:09 मिनट

चतुर्थी तिथि का समाप्त – 18 जनवरी 2025 को  प्रातः05:33 बजे

Sakat Chauth Vrat Story : सकट चौथ व्रत कथा

सकट चौथ की कथा का संबंध गणेश जी  से जुड़ा हुआ है । पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, सकट चौथ के दिन ही गणेश जी के जीवन पर बहुत भाड़ी संकट आया परन्तु वह संकट टल गया था। इसी कारण इस पर्व का नाम सकट चौथ पड़ा। इस कथा के अनुसार एक दिन माता पार्वती स्नान करने गईं तो स्नानागार के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उनसे यह कहा कि जब तक मैं स्नान करके खुद से बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत नहीं देना। गणेश जी अपनी माता की बात मानते हुए स्नान घर के बाहर पहरा देने लगे।

गणेश जी का उत्तरदायित्त्व निर्वहन और उसका परिणाम

गणेश जी अपने उत्तरदायित्व का वहन कर ही रहे थे कि उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश जी ने उन्हें दरवाजे पर ही रुकने के लिए कहा और कहा कि जब तक माता खुद बाहर नहीं आ जाती आप अंदर नहीं जा सकते हैं। महादेव इस बात से बहुत ही अपमानित और दुःखी हुए । महादेव अपने इस अपमान को सहन नही कर सके और गुस्से में उन्होंने गणेश जी पर त्रिशूल से  वार किया जिससे उनकी गर्दन कट कर दूर जा गिरी।

स्नानागार के बाहर कोलाहल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। यह देखकर वो रोने लगीं और जब सब कुछ समझ में आया तब उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दीजिए। माता पार्वती जी के अनुरोध करने पर  शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश जी को दूसरा जीवन मिला । उसी समय से गणेश जी के मुख हाथी की सूंड की तरह होने लगी।

इसी कारण महिलाएं बच्चों की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को श्री गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं। इस व्रत में माताएं पूरे दिन उपवास रहकर अपने बच्चों की दीर्घायु के लिए गणेश जी और महादेव से आशीर्वाद प्राप्त करती है।

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