Papmochini Ekadashi Fasting Vrat | पापमोचिनी एकादशी व्रत विधि तथा कथा। यह व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकाद्शी को मनाया जाता है । नाम के अनुरूप यह व्रत जातक को जाने अनजाने में किये गए पाप कर्म से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। यह व्रत मोक्षमूलक है इस व्रत को करने से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है। इस दिन निंदित कर्म तथा मिथ्या भाषण सर्वथा वर्जित हैं, अर्थात नहीं करना चाहिए।
पापमोचिनी एकादशी व्रत विधि
भविष्योत्तर पुराण के अनुसार पाप मोचिनी एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा अर्चना करनी चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प करना चाहिए और संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करना चाहिए। घी का दीपक जलाकर भगवान से जाने-अनजाने जो भी पाप हुए हैं उससे मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करें। जितना अधिक संभव हो ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करें। रात्रि जागरण करते हुए भजन कीर्तन करें तथा विष्णु भगवान के अवतारों की कथाओं और लीलाओं का पाठ करना चाहिए।
पापमोचिनी एकादशी के दिन क्या करे
पाप मोचिनी एकादशी के दिन सत्कर्म करे , यदि आप से कोई गलती हुई है तो क्षमा मांग लेना चाहिए। तीर्थों पर स्नान तथा गुरु पूजा करे जिससे आपके पाप शीघ्र ही नष्ट हो जायेंगे। इस दिन झूठ, लोभ, छल, कपट एवं काम भावना पर अंकुश रखना चाहिए । एकादशी के दिन भिक्षुक, बन्धु-बान्धव तथा ब्राह्मणों को भोजन दान देना फलदायी होता है।द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा कर और फिर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही स्वयं भोजन करना चाहिए।
पापमोचिनी एकादशी व्रत से लाभ
नारद पुराण में स्वयं भगवान् श्री कृष्ण जी ने एकादशी व्रत की महिमा के सम्बन्ध में कहा है –
अश्वमेधसहस्राणि राजसूयशतानि च ।
एकादश्युपवासस्य कलां नार्हन्ति शोडशीम् ।।
अर्थात – सहस्त्रों अश्वमेध यज्ञों या सैकड़ो राजसूय यज्ञों से भी अधिक फलदायी है एकादशी व्रत ऐसा जानना चाहिए।
शास्त्रानुसार यदि कार्यो में सफलता न मिल रहा हो, बार बार रोग से परेशान हो रहे है, व्यवसाय होते हुये भी उन्नति न हो, विवाह होने में दिक्क्त हो रहा हो, बार-बार असफलता मिल का सामना करना पर रहा हो वैसी स्थिति में पापमोचनी एकादशी का व्रत करे तथा उस दिन सच्चे मन से भगवान् विष्णु की पूजा अर्चना करना चाहिए।
मान्यतानुसार इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, स्वर्णचोरी, मद्यपान, अहिंसा, अगम्यागमन, भ्रूणघात आदि अनेकानेक घोर पापों के दोषों से मुक्ति मिल जाती है , जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है इस व्रत के करने से समस्त पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा
चैत्ररथ नामक जंगल में शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव भक्त मेधावी ऋषि अत्यंत कठोर तपस्या में लीन थे, उनके तप पुण्य के प्रभाव से देवराज इन्द्र घबरा गए, उन्होंने ऋषि मेधावी की तपस्या भंग करने के लिए “मंजुघोषा” नामक अप्सरा को चैत्ररथ जंगल में भेजा। ऋषि मेधावी अप्सरा मंजुघोषा पर मोहित हो गए। इसके बाद शिव की भक्ति छोड़कर मंजुघोषा के साथ अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
मंजुघोषा के द्वारा स्वर्ग प्रस्थान हेतु ऋषि से आज्ञा माँगना
एक साथ जीवन व्यतीत करने के 57 वर्ष के बाद जब मंजुघोषा ने ऋषि से पुनः स्वर्ग जाने की आज्ञा मांगी, तब जा कर ऋषि को अपने साथ हुये छल का पता चला, अपनी इस दशा को देख कर ऋषि अत्यंत क्रोधित हो गए। ऋषि ने मंजुघोषा को “पिशाचिनी” ( Devil ) हो जाने का शाप दिया, जब मेधावी ऋषि के पिता च्यवन को इस बात का पता चला तो उनहोंने मेधावी की घोर निंदा की, इसके बाद सभी बहुत ही दुखी हुये और भगवान् शिव को पुकारने लगे, उसी समय देवर्षि नारद उपस्थित हुए।
नारद जी इस समस्या का समाधान हेतु उन्होंने तीनों को विधिपूर्वक, नियमित रूप से पापमोचनी एकादशी का व्रत एवं पूजन करने का निर्देश दिया, तब तीनों ने उसी प्रकार पूजा कर भगवान् विष्णु को प्रसन्न किया। भगवान् विष्णु प्रसन्न होकर सभी को पाप से मुक्त कर दिए। इस कथा से स्पष्ट है की यदि आप ने कोई पाप या अपने समाज या परिवार के विपरीत कार्य किया है तो पापमोचिनी एकादशी व्रत के माध्यम से इस समस्या से निजात पा सकते है।