Shardiya Navratri 2024 Date & Vidhi : जानें ! नवरात्रि पूजन दिन, तिथि,कलश स्थापना, कन्या पूजन कब और कैसे करें ?

Navratri 2022 | चैत्र नवरात्री 2022 कलश स्थापना और पूजा का समय

Navratri 2022 | चैत्र नवरात्री 2022 कलश स्थापना और पूजा का समयNavratri 2022 | चैत्र नवरात्री 2022  कलश स्थापना और पूजा का समय . इस वर्ष नवरात्री पूजन “2 अप्रैल 2022 दिन शनिवार “ से प्रारम्भ है। उस दिन प्रथम नवरात्र (प्रतिपदा) है। नवरात्रि के प्रथम दिन माता शैलपुत्री के रूप में विराजमान होती है। उस दिन कलश स्थापना के साथ-साथ माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इसी पूजा के बाद से नौ दिन तक अनवरत भक्तो को मिलते रहता है माँ का आशीर्वाद।

कलश स्थापना और पूजा का समय | Timing of  Puja and  kalash Sthapna 

भारतीय शास्त्रानुसार  नवरात्रि पूजन तथा कलश स्थापना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन सूर्योदय  के पश्चात 10 घड़ी तक अथवा अभिजीत मुहूर्त (Abhijit Muhurt) में करना चाहिए। कलश स्थापना (Kalash Sthapna) के साथ ही नवरात्र  आरम्भ हो जाता है। यदि प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र (Chitra Nakshatra) हो तथा वैधृति योग हो तो वह दिन दूषित होता है। इस बार 2 अप्रैल 2022 को न ही चित्रा नक्षत्र (Chitra Nakshatra) है और न ही वैधृति योग है। इस दिन रेवती नक्षत्र और ऐन्द्र योग बन रहा है।

शास्त्रानुसार यदि प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग बन रही हो तो उसका परवाह न करते हुए “अभिजीत मुहूर्त” में घट स्थापना तथा नवरात्र पूजन कर लेना चाहिए।

निर्णयसिन्धु के अनुसार —

सम्पूर्णप्रतिपद्येव चित्रायुक्तायदा भवेत। 
वैधृत्यावापियुक्तास्यात्तदामध्यदिनेरावौ।।
अभिजितमुहुर्त्त यत्तत्र स्थापनमिष्यते।

अर्थात अभिजीत मुहूर्त में ही कलश स्थापना कर लेना चाहिए।  भारतीय ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार नवरात्रि पूजन द्विस्वभाव लग्न (Dual Lagan) में करना शुभ होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मिथुन, कन्या,धनु तथा कुम्भ राशि द्विस्वभाव ( Dual Sign ) राशि है अतः इसी लग्न में पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए।  2 अप्रैल प्रतिपदा के दिन रेवती नक्षत्र और ऐन्द्र योग होने के कारण सूर्योदय के बाद तथा अभिजीत मुहूर्त में  घट/कलश स्थापना  करना चाहिए।

चैत्र नवरात्र घट स्थापना का शुभ मुहूर्त

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त दिनांक 2 अप्रैल  2022 को सुबह 07:30 मिनट से सुबह 9:00 मिनट तक रहेगा इसकी कुल अवधि 1 घंटे 30 मिनट की है। प्रथम(प्रतिपदा) नवरात्र हेतु पंचांग विचार

दिनांक 02-04-2022
दिन शनिवार
तिथि प्रतिपदा
नक्षत्र-  रेवती
योग  ऐन्द्र
करण बलव 
पक्ष शुक्ल
मास चैत्र
लग्न मिथुन (द्विस्वभाव)
लग्न समय 10:17 से 12:32
मुहूर्त अभिजीत
मुहूर्त समय 12:00 से 12:28 तक
राहु काल 9:15 से 10:49 तक
विक्रम संवत 2079

इस वर्ष अभिजीत मुहूर्त (11:57 से 12:47)  जो ज्योतिष शास्त्र में स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया परन्तु मिथुन लग्न  में पड़ रहा है अतः इस लग्न में पूजा तथा कलश स्थापना शुभ होगा अतः घट स्थापना 12:00 से 12:28 तक कर ले तो शुभ होगा।

Navratri 2022 : माता दुर्गा के प्रथम रूप

माता दुर्गा के प्रथम रूप “शैलपुत्री” की उपासना के साथ नवरात्रि आरम्भ हो जाती है। शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण, माता दुर्गा के इस रूप का नाम शैलपुत्री पड़ा है। पार्वती और हेमवती भी इन्हीं के अन्य नाम हैं। माता के दाएँ हाथ में त्रिशूल तथा बाएँ हाथ में कमल पुष्प है। माता का वाहन वृषभ है। माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना निम्नलिखित मंत्रोच्चारण के साथ करनी चाहिए-

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

Navratri 2022 : पूजन सामग्री

माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, कलश/ घाट, लाल वस्त्र , नारियल फल, पञ्चपल्लव आम का,अक्षत, मौली, रोली, पुष्प, पूजा हेतु थाली , धुप और अगरबती, गंगाजल, कुमकुम, गुलाल पान, दीप, सुपारी, नैवेद्य, कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती का किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घृत किसी भी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।

Navratri 2022 : पूजा का फल

गीता के अनुसार – कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन अर्थात केवल कर्म करते रहे, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। फिर भी प्रयोजनम् अनुदिश्य मन्दो अपि न प्रवर्तते सिद्धांतानुसार विना कारण मुर्ख भी कोई कार्य नहीं करता है तो भक्त कारण शून्य कैसे हो सकता है। माता सर्व्यापिनी तथा सब कुछ जानने वाली है इस ऐसी मान्यता है कि माता शैलपुत्री की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाये पूर्ण होती है तथा भक्त कभी रोगी नहीं होता अर्थात निरोगी हो जाता है। इस कारण आपको पूर्ण श्रद्धा तथा विश्वास के साथ माता शैलपुत्री स्वरूप की पूजा अर्चना करनी चाहिए।

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