Amlaki Ekadashi Fasting व्रत 2024 | आमलकी एकादशी महत्त्व विधि तथा कथा
Amlaki Ekadashi Fasting व्रत 2024| आमलकी एकादशी महत्त्व विधि तथा कथा। फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष की एकाद्शी को आमलकी एकादशी उपवास व्रत कहा जाता है । नाम के अनुरूप इस व्रत में जातक आवला तथा आवला वृक्ष की पूजा करता है। ऐसा करने से शत्रुओं तथा अचानक आये हुए समस्याओ पर विजय की प्राप्ति होती है तथा व्यक्ति सभी प्रकार के पापाचरण से मुक्त हो जाता है। आमलकी का मतलब आंवला होता है । आंवला अमृत फल है। यह फल तथा इसका वृक्ष अत्यंत ही पवित्र माना गया है हिन्दू धर्म शास्त्रों में गंगा के समान श्रेष्ठ तथा पवित्र बताया गया है। पद्म पुराण के अनुसार आमलकी या आंवला का वृक्ष भगवान विष्णु के आशीर्वाद से उत्पन्न हुआ है इसी कारण यह वृक्ष देवताओ को अत्यंत ही प्रिय है इसी कारण वृक्ष को देवताओ का वृक्ष भी कहा जाता है इसी कारण अनेक शुभ अवसर पर आंवले के वृक्ष की पूजा अर्चना की जाती है।
आमलकी एकादशी व्रत मुहूर्त 2024 |
आमलकी एकादशी व्रत – 20 मार्च 2024आमलकी एकादशी पारणा मुहूर्त – 21 मार्च, 06:44:59 से 09:03:05 तक |
Amlaki Ekadashi | आमलकी एकादशी व्रत महत्त्व
पद्म पुराण के अनुसार आमलकी एकादशी व्रत करने से तीर्थ स्थानों में जाने से जितना पुण्य फल मिलता है उसी के बराबर फल की प्राप्ति होती है। यदि आप कोई भी यज्ञ करने में असमर्थ है तो इस व्रत के करने से सभी यज्ञो के बराबर फल मिलता है ऐसा समझना चाहिए। इस आमलकी एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति को पुरुषार्थ चतुष्टय वा मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह भी कहा जाता है की जातक मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के परम् धाम में पहुंच जाता है।
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की ‘आमलकी एकादशी’ के माहात्म्य का वर्णन ब्रह्माण्ड पुराण में “मान्धाता और वशिष्ठ संवाद में” मिलता है। इसके अनुसार यह व्रत करने से बड़े से बड़े पापों का नाश करने वाला, तथा एक हजार गाय दान के पुण्य का फल देने वाला एवं मोक्ष देने वाला है।
इस एकादशी का महत्व अक्षय नवमी के समान है। जिस तरह अक्षय नवमी में आंवले के वृक्ष की पूजा होती है उसी प्रकार आमलकी एकादशी के दिन आंवले की वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
जाने ! कैसे हुई ? आंवला वृक्ष की उत्पत्ति
आमलकी एकादशी के दिन आंवले की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि भगवान् विष्णु की कृपा से इस वृक्ष की उत्पत्ति सृष्टि के आरम्भ में ही हुई है। इस तथ्य के पीछे एक कथा है कि विष्णु की नाभि से से जब ब्रह्माजी उत्पन्न हुए तो ब्रह्मा जी को अपने जन्म के सम्बन्ध में जाने की जिज्ञासा हुई कि ‘मै कौन हूँ’ और “मेरी उत्पत्ति कैसे हुई” है।
जिज्ञासित प्रश्न का उत्तर जानने के लिए ब्रह्मा जी परब्रह्म की तपस्या करने लगे। ब्रह्म जी की तपस्या से प्रश्न होकर परब्रह्म भगवान विष्णु प्रकट हुए। विष्णु को सामने देखकर ब्रह्मा जी खुशी से रोने लगे। ब्रह्माजी के अश्रु भगवान विष्णु के चरणों पर गिरने लगे तब ब्रह्मा जी की इस प्रकार की भक्ति भावना देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हुए। ब्रह्मा जी के आंसूओं से आमलकी यानी आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ।
इसके बाद भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा कि आपके अश्रुओ से उत्पन्न आंवले का वृक्ष और फल मुझे अति प्रिय रहेगा। जो भी आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करेगा उसके सारे पाप समाप्त हो जाएंगे और व्यक्ति मोक्ष मार्ग की ओर प्रशस्त होगा।
आमलकी एकादशी व्रत विधि | Amalaki Ekadashi Vrat Method
जो भी व्यक्ति आमलकी एकादशी का व्रत करता है उसे एक दिन पूर्व की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पालन शुरू कर देनी चाहिए। दशमी के दिन एक ही बार सात्विक भोजन करना चाहिए । उस दिन से ही सात्विक मनोवृति तथा ब्रह्मचर्य का पालन भी शुरू कर देना चाहिए। रात्रि में विष्णु भगवान का ध्यान करके सोना चाहिए।
एकादशी के दिन प्रातः उठकर नित्य क्रिया से निवृत्य होकर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद शुद्ध वा साफ कपड़ा पहनकर पूजा करने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
आमलकी एकादशी व्रत में आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है क्योंकि इसी दिन आंवले के वृक्ष उत्पत्ति भगवान विष्णु की कृपा से हुआ | एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के चारों ओर की भूमि को झाडू लगाकर साफ करके गाय के गोबर से लेपन करना चाहिए। शुद्ध भूमि पर जल से भरे हुए नवीन कलश की स्थापना करना चाहिए ।
कलश स्थापना के बाद कलश में पंचरत्न और दिव्य गन्ध आदि छोड़ देना चाहिए। श्वेत चन्दन से उसका लेपन करें। उसके कण्ठ में फूल की माला पहना देना चाहिए। धुप दीप प्रज्वल्लित कर देना चाहिए। पूजा के लिए वस्त्र इत्यादि भी रखना चाहिए । कलश के ऊपर एक पात्र रखकर उसे श्रेष्ठ लाजों (खीलों) से भर दें । पुनः उसके ऊपर परशुराम जी की मूर्ति स्थापित कर देना चाहिए। इसके बाद भगवान परशुराम को नमस्कार कर उन्हें आंवले के फल के साथ अर्घ्य देना चाहिए । उसके बाद भगवान विष्णु के नाम लेकर 108 या 28 बार आंवले के वृक्ष की परिक्रमा करें ।
विधिवत घी, दीप, पुष्प, धूप, फल, पंचामृत नैवेद्य, नारियल इत्यादि से पूजा अर्चना करनी चाहिए। इसके बाद पूरी रात भजन कीर्तन तथा कथा करनी चाहिए। पुनः सुबह होने पर श्री विष्णु भगवान् की आरती तथा आंवले के वृक्ष का स्पर्श कर करना चाहिए ।
दूसरे दिन यानि द्वादशी के दिन नहा- धोकर भगवान विष्णु व ब्राह्मण का पूजन करना चाहिए। पूजा के बाद ब्राह्मण को कलश, वस्त्र आदि दान करना चाहिए। अंत में भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।
आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amlaki Fasting Story
एक बार मान्धाता जी ने वशिष्ठ जी से प्रार्थना की हे ऋषिवर ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके मुझे ऐसा व्रत बतलाइए जिसका पालन करने से मुझे मोक्ष मूलक कल्याण की प्राप्ति हो। इसके उत्तर में वशिष्ठ जी ने प्रसन्नचित होकर कहा, हे राजन् ! मैं आपको शास्त्र के एक गोपनीय, रहस्यपूर्ण तथा बड़े ही कल्याणकारी व्रत की कथा सुनाता हूं, जो कि समस्त प्रकार के कल्याण प्रदान करने वाली है। हे राजन् ! यह व्रत “आमलकी एकादशी” के नाम से जाना जाता है।
राजा मान्धाता ने कहा- ‘हे ऋषिश्रेष्ठ ! इस आमलकी एकादशी के व्रत की उत्पत्ति कैसे हुई? इस व्रत के करने का क्या विधान है? कृपा करके विस्तारपूर्वक इसका वृत्तांत मुझे बताएं।’
महर्षि वशिष्ठ ने कहा- ‘हे राजन ! मैं तुम्हारे सामने विस्तार पूर्वक इस व्रत के सम्बन्ध में बताता हूँ —
यह व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में होता है। इस व्रत के प्रभाव से हमारे सभी प्रकार के पाप शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत का पुण्य एक हजार गौदान करने के बराबर मिलता है। आमलकी (आंवले) की महत्ता उसके गुणों के अतिरिक्त इस बात में भी है कि इसकी उत्पत्ति भगवान विष्णु के मुख से हुई है। इस पौराणिक कथा के माध्यम से आमलकी एकादशी व्रत के सम्बन्ध में बताता हूँ कृपया कर ध्यानपूर्वक सुने —-
प्राचीन काल में वैदिश नामक एक नगर था। उस नगर में चारों वर्ण ( ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, शूद्र) के लोग प्रसन्ततापूर्वक रहते थे। नगर में हमेशा चारो ओर वैदिक अनुष्ठान की ध्वनि गुंजायमान होती रहती थी। उस नगरी में कोई भी पापी, दुराचारी, नास्तिक व्यक्ति नहीं था।
एक बार फाल्गुन शुक्लपक्षीय द्वादशी संयुक्ता आमलकी एकादशी आ गई। यह एकादशी महाफल देने वाली है, ऐसा जानकर नगर के बालक, वृद्ध, युवा, स्त्री व पुरुष तथा स्वयं राजा ने भी सपरिवार इस एकादशी व्रत का पूरे नियमों के साथ पालन किया।
उसी दिन राजा प्रात: काल नदी में स्नान आदि समाप्त कर समस्त प्रजा के साथ नदी के किनारे स्थित भगवान श्री विष्णु के मंदिर में गए। उन्होंने मंदिर में विधिवत कलश स्थापनोपरांत छत्र, वस्त्र, पादुका आदि पंचरत्मों के द्वारा सुसज्जित करके भगवान की स्थापना की।
तत्पश्चात धूप-दीप प्रज्वलित करके आमलकी अर्थात आंवले के साथ भगवान श्रीपरशुराम जी की पूजा अर्चना करके अंत में प्रार्थना की हे परशुराम ! हे रेणुका के सुखवर्धक ! हे मुक्ति प्रदाता ! अापको चरण स्पर्श है। हे आमलकी ! हे ब्रह्मपुत्री ! हे धात्री ! हे पापनिशानी ! आप को नमस्कार। आप मेरी पूजा स्वीकार करें। इस प्रकार राजा ने अपनी प्रजा के व्यक्तियों के साथ भगवान श्रीविष्णु एवं भगवान श्रीपरशुराम जी की पवित्र चरित्र गाथा श्रवण, कीर्तन व स्मरण करते हुए तथा एकादशी की महिमा सुनते हुए रात्रि जागरण किया।
उसी शाम एक शिकारी शिकार करता हुआ उस स्थल पर आ गया जहा राजा पूजा कर रहे थे । वह दीपमाला से सुसज्जित तथा बहुत से लोगों द्वारा इकट्ठे होकर हरि कीर्तन तथा रात्रि जागरण करते देख कर शिकारी सोचने लगा कि यह सब क्या और किस कारण हो रहा है ? ऐसा करने से क्या लाभ होता है ? इत्यादि इत्यादि । शिकारी भी वहां बैठकर श्रवण और भगवत आराधना में मग्न हो गया तथा उसे कलश के ऊपर विराजमान भगवान श्रीदामोदर जी का उसने दर्शन भी किया। वहां बैठकर भगवान श्रीहरि की चरित्र गाथा का श्रवण करने लगा।
भूखा प्यासा होने पर भी एकाग्र मन से एकादशी व्रत के महात्म्य की कथा तथा भगवान श्रीहरि की महिमा श्रवण करते हुए उसने भी रात्रि जागरण किया। प्रात: होने पर राजा अपनी प्रजा के साथ अपने नगर को चला गया और शिकारी अपने घर वापस आ गया।
कुछ समय बाद शिकारी की मृत्यु हो गई तथा एकादशी व्रत के प्रभाव से शिकारी ने दूसरे जन्म में जयंती नाम की नगरी के विदूरथ नामक राजा के यहां वसुरथ नामक पुत्र के रूप में जन्म लिया। वह सूर्य के समान पराक्रमी, कर्मशील, धर्मनिष्ठ, क्षमाशील, सत्यनिष्ठ एवं अनेकों सद्गुणों से युक्त था। वह भगवान विष्णु का भक्त था। वह बड़ा ही दानी था।
एक बार “वसुरथ” शिकार करने के लिए जंगल में गया परन्तु किसी कारण रास्ता भूल गया। वन में घूमते-घूमते थका हारा, प्यास से व्याकुल होकर जंगल में ही सो गया। उसी समय पर्वतों मे रहने वाले मलेच्छ यवन ( डाकू ) सोए हुए राजा के पास आकर, राजा की हत्या की चेष्टा करने लगे। वे राजा को शत्रु मानकर उनकी हत्या करने पर तुले थे। उन्हें कुछ ऐसा भ्रम हो गया था कि ये वहीं व्यक्ति है जिसने हमारे माता-पिता, पुत्र-पौत्र आदि को मारा था तथा इसी के कारण हम जंगल में खाक छान रहे हैं।
दैवीय आशीर्वाद के कारण मलेच्छ यवन द्वारा चलाये गए अस्त्र शस्त्र राजा को न लगकर उसके इर्द-गिर्द ही गिरते गए। राजा वसुरथ को कुछ भी नहीं हुआ। यवन लोगों के अस्त्र-शस्त्र समाप्त हो गए तो वे सभी भयभीत हो गए तथा एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सके। तब सभी ने देखा कि उसी समय राजा के शरीर से दिव्य गंध युक्त, अनेकों आभूषणों से युक्त एक परम सुंदरी देवी प्रकट हुई। वह भीषण भृकुटीयुक्ता, क्रोधितनेत्रा देवी क्रोध से लाल-पीली हो रही थी। उस देवी का यह स्वरूप देखकर सभी यवन इधर-उधर दौड़ने लगे परंतु उस देवी ने हाथ में चक्र लेकर एक क्षण में ही सभी मलेच्छों का वध कर डाला।
जब राजा की नींद खुली तब उसने यह भयानक दृश्य देखकर आश्चर्यचकित हो गया और भयभीत भी हो गया। उन भीषण आकार वाले मलेच्छों को मरा देखकर राजा विस्मय के साथ सोचने लगा कि मेरे इन शत्रुअों को मार कर मेरी रक्षा किसने की? यहां मेरा ऐसा कौन हितैषी मित्र है? जो भी हो, मैं उसके इस महान कार्य के लिए उसका बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं।
जाने ! एकादशी व्रत तिथि 2024
ऐसा सोच ही रहा था की तत्क्षण आकाशवाणी हुई कि भगवान केशव को छोड़कर भला शरणागत की रक्षा करने वाला और है ही कौन ? अत: शरणागत रक्षक, शरणागत पालक श्रीहरि ने ही तुम्हारी रक्षा की है। राजा उस आकाशवाणी को सुनकर प्रसन्न तो हुआ ही, साथ ही भगवान श्रीहरि के चरणों में अति कृतज्ञ होकर भगवान का भजन करते हुए अपने राज्य में वापस आ गया और राज्य करने लगा। वशिष्ट जी कहते हैं,” हे राजन्! जो मनुष्य इस आमलकी एकादशी व्रत का पालन करते हैं वह निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होगी ।