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दुर्गासप्तशती में किस स्तोत्र का पाठ करना जरुरी है

दुर्गासप्तशतीमाता को प्रसन्न करने के लिए सभी भक्तजन दुर्गासप्तशती का पाठ करते है परन्तु दुर्गासप्तशती में किस स्तोत्र का पाठ करना जरुरी है यह बहुत कम भक्त ही जानते हैं। माँ को खुश करने के लिए भक्त तन-मन से शुद्ध होकर पुरे विधि-विधान पूर्वक पूजा, आरती तथा दुर्गा सप्तशती का सम्पूर्ण पाठ करते हैं। क्योकि ऐसी प्राचीन मान्यता है की दुर्गासप्तशती का संपूर्ण पाठ करने से माँ तुरंत ही प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करती है। सम्पूर्ण विधि-विधान पूर्वक दुर्गासप्तशती का पूरा पाठ करने पर लगभग दो घंटा का समय अवश्य लगता है परन्तु इस भागदौड़ की जिंदगी में आज लोगो के पास इतना समय नहीं है की नौ दिन पूरा दुर्गासप्तशती का पाठ कर सकें। इस कारण कई भक्त चाहते हुए भी नवरात्र में दुर्गा का पाठ नहीं कर पाते है परन्तु इस गम्भीर समस्या का समाधान दुर्गा सप्तशती पुस्तक के अंत में दे दिया गया है जोसिद्धकुञ्जिकास्तोत्र ( Sidhkunjikastrot)  के नाम से जाना जाता है। दुर्गा के इसी स्तोत्र का पाठ करना जरुरी होता है।

 

दुर्गासप्तशती में क्यों जरुरी है सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र का पाठ ?

यह सिद्ध कुञ्जिकास्तोत्र देवो के देव महादेव शिवजी ने पार्वती को बताया है कि जो भक्त इस संपूर्ण दुर्गासप्तशती का पाठ करने में समर्थ नहीं है वह यदि केवल सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र का पाठ कर लेता है तो उसे इस पाठ मात्र से ही कवच, कीलक, अर्गलास्तोत्र , ध्यान, न्यास सहित संपूर्ण दुर्गासप्तशती के पाठ का फल शीघ्र ही मिल जाता है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

  • शृणु देवी प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
  • येन मन्त्र प्रभावेणं चण्डीजापः शुभो भवेत्।।
  • न कवचं नार्गला-स्तोत्रं, कीलकं न रहस्यकम्।
  • न सूक्तं नापि ध्यानं च, न न्यासो न च वार्चनम्।।
  • कुंजिका पाठ मात्रेण, दुर्गा पाठ फलं लभेत्।
  • अति गुह्यतरं देवि ! देवानामपि दुलर्भम्।।
  • मारणं मोहनं वष्यं स्तम्भनोव्च्चाटनादिकम्।
  • पाठ मात्रेण संसिद्धयेत् कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम्।।

और भी कहा गया है की कुंजिकास्त्रोत सिद्ध मंत्रो के द्वारा रचित है इ मन्त्र के प्रत्येक वर्ण और शब्द इतना प्रभावशाली है की कोई भी अन्य स्तोत्र का पाठ करने की आवश्यकता नहीं होती। इसमें सम्पूर्ण  दुर्गासप्तशती का पाठ समाहित है अतः इस पाठ को अवश्य ही करना  चाहिए।

दुर्गा माता के लिए मंत्र और सिद्ध कुञ्जिकास्तोत्रम्

मन्त्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र

  • नमस्ते रूद्र रूपिण्यै नमस्ते मधुर्मर्दिनि।
  • नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनी।।1
  • नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च, निशुम्भासुरघातिनि।
  • जाग्रतं ही महादेवी जपं सिद्धं कुरुष्व मे।। २
  • ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
  • क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।।3
  • चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
  • विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि।।4
  • धां धीं धुं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
  • क्रां क्रीं क्रूं कालिकादेवि! शां शीं शूं में शुभं कुरू।।5
  • हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
  • भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।6
  • अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दु ऍ वीं हं क्षं।
  • धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।7
  • पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा।।
  • सां सीं सुम सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे।।8

 

दुर्गासप्तशती में यह कुञ्जिकास्तोत्र मंत्र को जगाने के लिए है। इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए। हे पार्वती! इसे गुप्त रखो। हे देवी ! जो बिना कुंजिका के दुर्गासप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि/फल  नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है।

  • इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
  • अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वती।।
  • यस्तु कुंजिकया देवी हीनां सप्तशती पठेत्।
  • न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।

जय माता दी  जय माता दी  जय माता दी  जय माता दी  जय माता दी  जय माता दी  जय माता दी  जय माता दी

2 Comments

  1. महाराज,
    मैं पिछले दो सालों से दुर्गा सप्तशती का पाठ करता हूं। लेकिन संस्कृत में सही उच्चारण न होने की वजह से इसे हिन्दी में ही पाठ करता हूं। लेकिन उससे पूर्व जो स्त्रोत, कीलक आदि को मैं संस्कृत में ही पाठ करता हूं। क्या यह विधि सही है। अगर नहीं तो कृपया बताएं।

  2. हमें दुर्गा सप्तसती पाठ सीखना है। कोई संस्था है जो सिखाती है
    अगर पता है तो संस्था का नाम कृपया बतायें।

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