Utpanna Ekadashi Vrat 2023 | उत्पन्ना एकादशी उपवास व्रत कथा तथा पूजा विधि. उत्पन्ना एकादशी व्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में किया जाता है। उत्पन्ना एकादशी व्रत, 08 दिसम्बर, 2023, शुक्रवार को है वस्तुतः हम सभी जानते है की यह व्रत श्रद्धा, विश्वास तथा पूर्ण नियम के साथ रखा जाता है। इसके प्रभाव से धर्म के प्रति आस्था तथा मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
जया एकादशी व्रत मुहूर्त 08 दिसम्बर 2023
एकादशी तिथि आरम्भ – 5 :08 प्रातः 08 दिसम्बर
एकादशी तिथि समाप्त – 06:33 प्रातः 09 दिसम्बर
Utpanna Ekadashi Vrat 2023 | उत्पन्ना एकादशी का महत्त्व
इस व्रत को करने से व्रती का चित शुद्ध होता है तथा शरीर स्वस्थ होता है। जातक भक्ति मार्ग की ओर प्रशस्त होता है यदि यह कहा जाए की आंतरिक शुद्धि के लिए सबसे बढ़िया मार्ग एकादशी व्रत है। यह हमें न्यायपथ पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है। उपवास के दौरान तामसिक वस्तुओं का सेवन तथा तामसिक प्रवृति को जन्म देना अच्छा नही माना जाता है। व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन करें। कहा जाता है कि तीर्थाटन, तपस्या, दान, यज्ञ आदि से जितना फल की प्राप्ति होती है उससे कही अधिक इस व्रत को करने से फल मिलता है।
उत्पन्ना एकादशी व्रत विधि | Method of Utpanna Ekadashi
उत्पन्ना एकादशी व्रत में प्रात:काल समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद धूप, दीप, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य इत्यादि से भगवान श्री विष्णु जी की पूजन करना चाहिए। पूजन के बाद सूर्य देव को जल अर्पण जरूर करना चाहिए। रात्री समय दीप दान करें।
यथा संभव देर रात तक जगना चाहिए तथा भजन-कीर्तन, सत्संग आदि कार्य में अपने आपको लगाना चाहिए। इस दिन अपने सामर्थ्यानुसार ब्राह्माणों को दान-दक्षिणा देनी चाहिए। भगवान् से अपनी त्रुटियों के लिए क्षमा भी माँगना चाहिए।
Utpanna Ekadashi Vrat | एकादशी व्रत का पारण कब करना चाहिए
एकादशी व्रत का उपवास तोड़ने की क्रिया को पारण कहा जाता है। एकादशी व्रत के दूसरे दिन सूर्योदय के उपरान्त पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि की समाप्ती से पूर्व अवश्य ही कर लेना चाहिए।
यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व समाप्त हो गयी है तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद कर लेना चाहिए। द्वादशी तिथि के के बाद पारण न करना पाप करने के समान होता है।
यदि तिथि के दौरान हरि वासर है तो एकादशी व्रत का पारण नहीं करना चाहिए। व्रती को व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती है। उपवास तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय सूर्योदय के बाद का होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को दोपहर में व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। यदि आप किसी कारण से प्रातःकाल पारण नहीं कर सके तब दोपहर के बाद पारण करना चाहिए।
दो दिन एकादशी होने पर क्या करें
ऐसा देखा गया है कि कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन का होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को प्रथम दिन एकादशी व्रत करना चाहिए।
दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूसरे एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूसरे दिन की एकादशी वैष्णव एकादशी कहलाती है और उसी दिन सामान्य लोग को व्रत करना चाहिए।
Utpanna Ekadasi Vrat Story | उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
सत्ययुग में मुर नामक एक महा भयंकर दैत्य हुआ करता था। वह इन्द्र आदि देवताओं पर विजय प्राप्त कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया इसके बाद इन्द्रादि देवता क्षीरसागर में, शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में लीन भगवान श्री विष्णु के पास जाकर दैत्यों के अत्याचारों से मुक्त होने के लिये प्रार्थना की तब इन्द्रदेव के वचन सुनकर भगवान श्री विष्णु ने आश्वासन दिया कि मैं शीघ्र ही तुम्हारे शत्रुओं का संहार करूंगा।
देवताओं के अनुरोध पर भगवान श्री विष्णु जी ने अत्याचारी दैत्य पर आक्रमण कर दिया तथा सैकडों असुरों मारने के बाद श्रीहरि जी बदरिकाश्रम में में स्थित बारह योजन लम्बी सिंहावतीगुफा में जाकर निद्रा में लीन हो गए।
परन्तु दानव मुर ने भगवान श्रीहरि को मारने के संकल्प से जैसे ही उस गुफा में प्रवेश किया कि तुरंत उनके शरीर से दिव्यास्त्रों से युक्त एक अति सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई। उसके बाद दैत्य तथा कन्या में बहुत देर तक युद्ध होते रहा अचानक उस कन्या ने दैत्य को धक्का मारकर मूर्छित कर दिया उसके बाद सुंदर कन्या ने दैत्य का सिर काट दिया और वह दैत्य शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हुआ।
जब श्री विष्णु भगवान् निद्रा से उठे तो देखा की दैत्य मरा हुआ है तब वे सोचने लगे की इस दैत्य को किसने मारा। तब उस वक्त कन्या ने कहा कि दैत्य आपको मारने के लिये तैयार था तब मैने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध कर दिया। भगवान श्री विष्णु ने उस कन्या का नाम एकादशी रखा क्योकि वह एकादशी के दिन श्री विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी इसलिए इस दिन को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाने लगा।