Ramdhari Singh Dinkar – ज्योतिषीय ग्रह-योग विश्लेषण
Ramdhari Singh Dinkar – ज्योतिषीय ग्रह-योग विश्लेषण । आइए विचार करते हैं दिनकर को किस ग्रह ने बनाया राष्ट्रकवि। हिंदी के सुप्रसिद्ध छायावादी और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म विक्रम संवत 1965(ईस्वी सन1908) आश्विन मास , कृष्ण त्र्योदशी, पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र द्वितीय चरण, दिन बुधवार रात्रि २२-23 सितंबर1908 को रात्रि 1 बजकर ३ मिनट पर, सिमरिया ग्राम ज़िला मुंगेर, बिहार में एक सामान्य किसान के घर में हुआ था।
रामधारी सिंह दिनकर एक परिचय (Introduction of Ramdhari Singh Dinkar)
रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) एक ओजस्वी राष्ट्रभक्त कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं। पटना विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्णोपरांत एक हाईस्कूल में अध्यापक के पद पर नियुक्त हो गए। 1934 से 1947तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्ट्रार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर कार्य किया। 1950 से 1952 तक मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह महाविद्यालय (एल.एस.कॉलेज) में हिन्दी विभाग में प्राध्यापक रहे तदनन्तर भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर कार्य किया और अनन्तर भारत सरकार में हिन्दी भाषा के सलाहकार बने। वे संसद सदस्य जैसे महत्वपूर्ण पद से भी विभूषित हुए। दिनकरजी को भारत सरकार की उपाधि पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया। उर्वशी के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा संस्कृति के चार अध्याय के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किए गए।
दिनकरजी (Ramdhari Singh Dinkar) के लेखन में जो वैविध्य है वह केवल विधा के स्तर तक सीमित न रहकर रस के स्तर पर भी अत्यंत व्यापक है। एक ओर उर्वशी जैसी विशुद्ध श्रृंगार की रचना और दूसरी ओर कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी और परशुराम की प्रतिज्ञा जैसी अग्निमुखी रचनाएँ। शोध कार्य करते करते ‘संस्कृति के चार अध्याय’ जैसे अद्भुत ग्रंथ की ही रचना कर डाला। सिमरिया गाँव की प्रत्येक गलियाँ आज भी दिनकर जी को पुकार रही है। अपनी काव्य कौशल के आधार पर गंगा तट का यह पुत्र सम्पूर्ण विश्व में हिन्दी के एक नक्षत्र के रूप में जाने जाते है।
दिनकर की प्रमुख रचनाएँ (Famous books of Ramdhari Singh Dinkar)
गद्य रचनाएँ:–
मिट्टी की ओर, अर्धनारीश्वर, रेती के फूल, वेणुवन, साहित्यमुखी, काव्य की भूमिका, प्रसाद पंत और मैथिलीशरणगुप्त, संस्कृति के चार अध्याय।
पद्य रचनाएँ :–
रेणुका, हुंकार, रसवंती, कुरूक्षेत्र, रश्मिरथी इत्यादि।
रामधारी सिंह दिनकर की जन्मकुंडली विश्लेषण (Horoscope Analysis of Ramdhari Singh Dinkar)
आइये ज्योतिष की दृष्टिकोण से हम यह जानने का प्रयास करते है कि कवि तथा राष्ट्रकवि बनने में जन्मकुंडली के बारह भावों (Twelve Houses) में स्थित नव ग्रहों की भूमिका कितनी रही है। क्या दिनकरजी ने अपने जीवन काल में जो मान-सम्मान तथा उपलब्धियाँ अर्जित की है वह जन्मकुंडली के विभिन्न भावों और राशियों में स्थित ग्रह फल के अनुरूप है या नहीं?
दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) का जन्म विक्रम संवत 1965 (ईस्वी सन1908) आश्विन मास, कृष्ण त्र्योदशी, पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र द्वितीय चरण, दिन बुधवार रात्रि 22-23 सितंबर1908 को रात्रि 1 बजकर 3 मिनट पर, ग्राम – सिमरिया, ज़िला – मुंगेर, बिहार राज्य में हुआ था।
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रामधारी सिंह दिनकरजी (Ramdhari Singh Dinkar) की जन्मकुंडली कर्क लग्न तथा सिंह राशि की है। जातक का जन्म जिस लग्न में होता है और यदि नवांश लग्न भी वही है तो ज्योतिष में उसे वर्गोत्तम लग्न माना जाता है और वर्गोत्तम लग्न का ज्योतिष में विशेष महत्त्व होता है। वर्गोत्तम लग्न का व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा में आने वाली सभी कठिनाइयों को पार करते हुए समाज में अपने आपको मिल का पत्थर स्थापित करता है यही नहीं मृत्युपरांत भी उसकी गाथा लोक में सुनी जाती है। दिनकर जी का लग्न भी वर्गोत्तम लग्न है। आज भी दिनकरजी इस भूलोक पर मरकर भी अमर है।
ज्योतिष में लग्न,लग्नेश तथा वर्गोत्तम लग्न का विशेष महत्त्व होता है यदि ये सभी बलि है तो जातक अवश्य ही लोक प्रसिद्ध होता है। चन्द्रमा सिंह राशि में है अतः इनका जन्म राशि सिंह है। जिस प्रकार सिंह जंगल का राजा होता उसकी दहाड़ सर्वत्र गूंजती है उसी प्रकार सिंह राशि वालो का भी स्वभाव होता है जो दिनकर जी की रचनाएं रश्मिरथी, हल्दीघाटी इत्यादि में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
इनकी कुंडली में लग्नेश चन्द्रमा वाणी स्थान में भाग्येश वृहस्पति तथा कर्मेश मंगल के साथ स्थित है। यही कारण है कि इन्होने अपनी वाणी को ही कर्म बना लिया। एक प्राचीन कहावत है की “होनहार विरवान के होत चिकने पात” दिनकरजी की कुंडली को देखते ही यह बात शत-प्रतिशत चरितार्थ होती है।
लग्न कुंडली में जहाँ लग्न किसी भाव विशेष की देह बनता है वहीं उसी वर्ग कुंडली में तत सम्बन्धी भाव की आत्मा या सूक्ष्मशरीर बन जाता है दिनकरजी की कुंडली में लग्नेश चन्द्रमा नवांश में उच्च होकर लाभ स्थान में बैठकर बुद्धि स्थान पंचम भाव को देख रहा है चन्द्रमा की इस दृष्टि के कारण ही उनमे जो अंतर्मन चेतना रूपी बौद्धिक क्षमता का विकास हुआ वह विश्व प्रसिद्ध है।
जन्मकुंडली में विधयमान योग | Yoga in Horoscope
विचारार्थ कुंडली में अनेकानेक ज्योतिषीय योग है जो सामान्य जन्मकुंडली में नहीं मिलती है और यदि मिलती भी है तो एकाध ही इनकी कुंडली में मिलने वाले महत्वपूर्ण योग निम्न है यथा –
- गजकेसरी योग,
- राजयोग,
- धन योग,
- दुर्धरा योग,
- चन्द्र-मंगल योग,
- भारती योग,
- कर्मजीव योग (८ कर्मजीव योग है),
- चन्द्रिका योग,
- शरीरसुख योग,
- जपध्यान योग,
- बुधादित्य योग,
- चन्द्र-गुरु योग,
- मंगल-गुरु योग,
- चन्द्र-मंगल-गुरु योग इत्यादि।
इनमे से राजयोग, गजकेसरी योग, कर्मजीव योग,चन्द्र-गुरु, मंगल-गुरु, चन्द्र-मंगल-गुरु योग इनके कुंडली के वाणी स्थान में बन रहा है यही कारण है की दिनकरजी वाणी के धनी हुए तथा उनकी कवित्व शक्ति विश्व में गुंजायमान हो रही थी, आज भी हो रही है और कल भी होती रहेगी। यहाँ मै यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि ज्योतिष में यह योग अपनी महादशा तथा अन्तर्दशा में जातक के सभी मनोकामनाओं को पूर्ण पूर्ण करने में समर्थ होता है।
दिनकर की जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति
चन्द्रमा, वृहस्पति एवं मंगल वाणी भाव में स्थित है लग्न का स्वामी होकर वाणी व धन स्थान में स्थित है कहा जाता है की लग्न का स्वामी जिस स्थान पर बैठता है उस स्थान /भाव को बलि करता है। ज्योतिष में चन्द्रमा मन का कारक है और मन वाणी स्थान में होने से मन का सम्बन्ध वाणी से जुड़ गया इसी कारण दिनकरजी (Ramdhari Singh Dinkar) के अंतर्मन में जो आया वह वाणी के रूप में लोक में प्रसिद्ध हुआ। शास्त्र में चन्द्रमा के वाणी तथा धन स्थान में होने पर कहा गया है —
“धने चन्द्रे धनैः पूर्णो नृपपूजयोगुणान्वितः शास्त्रानुरागी सुभगो जनप्रीतिश्चजायते”।
अर्थात धन भाव में चन्द्रमा हो तो मनुष्य धन से परिपूर्ण होता है। राजा से मान सम्मान तथा आदर प्राप्त होता है। वह गुणी शास्त्रप्रेमी सुन्दर तथा जनता का प्यारा होता है। दिनकरजी के ऊपर शत प्रतिशत लागू होता है।
वृहस्पति /गुरु भाग्येश तथा षष्ठेश होकर वाणी/धन भाव में है छठे भाव का स्वामी होने से नौकरी से धन अर्जन वहीं वाणी भाव भी होने से नौकरी का सम्बन्ध वाणी से भी जुड़ गया इसी कारण दिनकरजी (Ramdhari Singh Dinkar) व्याख्याता के रूप में कार्य किये। भाग्येश गुरु तथा लग्नेश चन्द्रमा एक साथ होने से यह स्पष्ट है कि इन्होने स्वयं ही अपने भाग्य का निर्माण किया।
वाणी स्थान में वृहस्पति होने के कारण उनकी कृति तार्किक तथा न्याय से युक्त है। गुरु के धन तथा वाणी भाव में होने के सम्बन्ध में शास्त्र में स्पष्ट कहा गया है –
कवित्वेमति दण्डनेतृत्वशक्तिः मुखे दोषधृक् शीघ्रभोगार्त एव।
कुटुम्बे गुरौ कष्टतो द्रव्यलब्धिः सदा नो धनं विश्रमेद यत्नतोsपि।
अर्थात जिसके जन्म लग्न से धनभाव में गुरु हो तो उसकी बुद्धि तथा स्वाभाविक रूचि काव्यशास्त्र की ओर होती है वह कवित्व शक्ति के होने से स्वयं कविता करता है और अपना आयु का विशेष भाग रचनाओ के पठन-पाठन तथा उनके परिशीलन में लगाता है जिससे उसे आनंद की प्राप्ति होती है। कवित्व शक्ति का होना पूर्वजन्मकृत पुन्यपुंज का ही सर्वोत्कृष्ट फल है।
मंगल (Mars) कर्म तथा बुद्धि भाव का स्वामी होकर वाणी स्थान में राजयोग बना रहा है। दिनकरजी की जन्मकुंडली में मंगल योगकारक ग्रह भी है। मंगल का इस स्थान में होने से इनकी वाणी लोक में दम्भ और हुंकार के रूप में विश्रुत है।
वाणी स्थान में मंगल होने के कारण वे लिखने में जरा भी संकोच नहीं करते है —
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।
लेखन भाव (तृतीय भाव) में उच्च के बुध तथा सूर्य मिलकर बुधादित्य योग बना रहा है इसी कारण दिनकरजी कवि के साथ साथ लेखक के रूप में लोक में प्रतिष्ठित हुए। दिनकरजी वाणी के धनी थे तथा ओजस्वी कवि के रूप में विश्व प्रसिद्ध हुए। उनकी वाणी तथा लेखन में जो ओज और हुंकार है वह अन्यत्र दुर्लभ है।
दिनकरजी (Ramdhari Singh Dinkar) की कुंडली में लग्न में, कर्क राशि में शुक्र ग्रह बैठा है कहा गया है की यदि लग्न में शुक्र हो तो जातक अनेक कलाओं में चतुर, उत्तम वाणी बोलनेवाला, कविता करने वाला, राज सम्मान से युक्त तथा धनी होता है। यथा —
बहुकलाकुशलो विमलोक्तिकृत सुवदनानुभवः पुमान्।
अवनिनायक मानधनान्वितो भृगुसुते तनुभावगते सति।।
यह ज्योतिष विज्ञान की वैज्ञानिकता ही है कि जन्म के आधार पर भविष्य में होने वाली प्रत्येक क्रिया-कलापों तथा घटनाओं को घटना से पूर्व सूचित करता है। अपने ज्योतिषीय अनुभव के आधार पर मै यह जरूर कहना चाहूंगा कि ज्योतिष एक विज्ञान है और यह गलत नहीं हो सकता हाँ अल्प ज्ञानवश ज्योतिषी अवश्य ही गलत हो सकता है।
रामधारी सिंह दिनकर की महत्त्वपूर्ण घटनाएं तथा दशा-क्रम (Important Events of Ramdhari Singh Dinkar According to Dash System)
आइये हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि दिनकरजी के जीवन में आए महत्त्वपूर्ण घटनाऍ ज्योतिषीय दशा-क्रम के अनुसार हुई है या नहीं।
शुक्र / बुध दशा 10/8/1928 से 10/6/1931 तक
1929 में प्राणभंग कविता की रचना के समय इनकी दशा शुक्र / बुध अर्थात शुक्र की महादशा में बुध की अन्तर्दशा चल रही थी शुक्र चतुर्थेश तथा लाभेश होकर लग्न में स्थित है तथा बुध लेखन भाव में अपने ही घर में उच्च होकर बैठा है और बुध ज्योतिष में लेखन का कारक भी है यही कारण है की इन्होंने इस दशा में लेखन कार्य किया और लेखन का लाभ मिला। शुक्र इनके कुंडली में बुध के नक्षत्र में है और बुध उच्च होकर लेखन भाव में है और शुक्र की दशा जन्म के पांचवें वर्ष से प्रारम्भ हो गया था अतः यह स्पष्ट है की लेखन तथा कविता करने में शुक्र महादशा की महती भूमिका रही है कहा जाता है कि यदि योग है और महादशा/अन्तर्दशा नहीं मिलती तो वह कार्य संपन्न नहीं हो पाता है यह दैवीय संयोग ही था कि दिनकरजी को प्रारम्भ से ही लाभेश शुक्र की महादशा मिली।
सूर्य की महादशा 31/8/1932 से 31/8/1938 तक
रामधारी सिंह दिनकर १९३४ से 1947तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्ट्रार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर कार्य किया। 31/8/1932 से 31/8/1938 तक सूर्य की महादशा चली सूर्य सरकार का कारक ग्रह है तथा तृतीय स्थान में उच्च के बुध के साथ मिलकर बुधादित्य योग बना रहा है तथा 1934 में सूर्य/गुरु,सूर्य की महादशा में गुरु की अन्तर्दशा थी गुरु भाग्येश होकर धन स्थान में कर्म के स्वामी मंगल के साथ बैठकर राजयोग बना रहा है इसी कारण दिनकरजी सरकार में उच्च प्रशासनिक सब रजिस्ट्रार तथा उपनिदेशक जैसे पद पर आसीन हुए।
मंगल / बुध 1952 से 1953 तक
दिनकर जी 1952 में राजयसभा के सदस्य से विभूषित हुए उस समय मंगल/बुध कर्मेश मंगल की महादशा में बुध की अन्तर्दशा चल रही थी मंगल जन्मकुंडली में कर्म और त्रिकोण भाव का स्वामी है साथ ही योगकारक ग्रह भी है। मंगल भागेश गुरु के साथ धन व वाणी स्थान में राजयोग का निर्माण लग्नेश चन्द्रमा के साथ कर रहा है। वहीं अन्तर्दशा नाथ बुध सरकार तथा मान-सम्मान-प्रतिष्ठा का कारक सूर्य के साथ मिलकर बुधादित्य योग बना रहा है इसी कारण दिनकरजी को राज्यसभा के सदस्य के रूप में मनोनीत हुए।
राहु / गुरु की दशा 1958 से 1960 तक
1959 में राहु की महादशा में भाग्येश गुरु की अन्तर्दशा चल रही थी गुरु कुंडली में गजकेसरी योग,राजयोग चन्द्र-गुरु योग का निर्माण कर रहा है यही कारण है की इस समय इन्हें संस्कृति के चार अध्याय के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया वस्तुतः यह सब ग्रहों का ही खेल था कि दिनकर जी को जन्म के पांचवें साल से लेकर मृत्युपर्यन्त जो महादशा मिली वह शुभ ग्रहो की ही दशा मिली।
राहु/शुक्र/गुरु 27/9/1968 से 20/2/1969 तक
8 नवम्बर 1968 को राजस्थान सरकार द्वारा साहित्य चूड़ामणि सम्मान से सम्मानित किया गया देखिये उस समय दिनकरजी की कुंडली में 27/9/1968 से20/2/1969 तक राहु/शुक्र/गुरु अर्थ राहु की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा तथा गुरु की प्रत्यंतर दशा चल रही थी। यहाँ गुरु भाग्येश होकर धन स्थान में तथा शुक्र लाभेश होकर लग्न में है।
राहु / चन्द्र 1971 से 1972 तक
1972 में दिनकरजी को ज्ञानपीठ पुरूस्कार मिला कुंडली में राहु की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशाचल रही थी चन्द्रमा लग्नेश होकर धन स्थान में गजकेसरी योग तथा कर्मेश मंगल और भाग्येश गुरु के साथ राजयोग का निर्माण कर रहा है अतः लग्नेश चन्द्रमा अपनी अन्तर्दशा में साहित्य जगत के उच्च सम्मान से सम्मानित करा दिया।
गुरु/गुरु/बुध/बुध/राहु
24 अप्रैल 1974 को गुरु/गुरु/बुध/बुध/राहु दशा में दिनकर जी इस नश्वर शरीर को त्यागकर चले गए। गुरु षष्ठेश है और मारक स्थान में स्थित होकर मृत्यु स्थान (अष्टम भाव को) को देख रहा है। बुध बारहवें भाव का स्वामी है यह भाव मुक्ति और मोक्ष का भाव है। राहु बारहवें भाव जो कि मोक्ष /मुक्ति भाव है में स्थित है तथा नवम दृष्टि से मृत्यु स्थान को देख रहा है। कहीं न कहीं महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यंतर दशा, सूक्ष्मदशा तथा प्राण दशा का सम्बन्ध कुंडली के मृत्यु स्थान अथवा अशुभ स्थान (6, 8,12, ) से बन रहा है।
Transit of Planets in the time of death
मृत्यु के समय गोचर में ग्रहों की स्थिति | Transit of Planets in the time of death
उस समय गोचर में महादशानाथ गुरु अष्टम स्थान जो की मृत्यु स्थान भी है में गोचर कर रहा था। मृत्यु भाव(अष्टम भाव) का स्वामी शनि गोचर में कर्मेश मंगल के साथ बारहवे भाव में एक साथ होकर कर्म को विराम दे दिया। प्रत्यंतर्दशानाथ भी मृत्यु स्थान अष्टम में गोचर कर रहा था तथा अष्टमेश और द्वादशेष में परिवर्तन योग भी बन रहा है। महादशानाथ गुरु की दशा में दिनकरजी की मृत्यु हुई उस समय गुरु गोचर में मृत्यु स्थान में बैठकर पंचम दृष्टि से मोक्ष स्थान तथा देव स्थान को भी देख रहा था यही कारण था कि दिनकर जी मृत्यु समय दक्षिण भारत की प्रसिद्ध मंदिर में भजन कर रहे थे कि अचानक स्वास्थ्य खराब हुआ और हिंदी साहित्य जगत के महान विभूति राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अपने नश्वर शरीर को त्यागकर तथा अपनी यादे सदा-सदा के लिए इस भूलोक पर छोड़कर स्वर्गलोक में चले गए।
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