Putrada Ekadashi Vrat 2024 | पुत्रदा एकादशी व्रत पुत्र देता है
Putrada Ekadashi Vrat 2024| पुत्रदा एकादशी व्रत पुत्र देता है। पुत्रदा एकादशी व्रत, पुत्रदा एकादशी व्रत वर्ष में दो बार आती है। एक पौष माह में तथा दूसरा श्रवण मास में। पौष /श्रावण / सावन मास में शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को मनाया जाता है । यह व्रत हमें पुत्र लाभ दिलाता है। जो भी व्यक्ति श्रद्धा और निष्ठा के साथ इस व्रत को करता है वह संतान सुख प्राप्त करता है। इस व्रत को करने से संतान संबंधी सभी चिंता और समस्या शीघ्र ही समाप्त हो जाती है।
पौष पुत्रदा एकादशी 21 जनवरी 2024 |
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दिन | रविवार |
एकादशी तिथि प्रारम्भ | 20 जनवरी 2024, 19 बजकर 27 मिनट |
एकादशी तिथि समाप्त | 21 जनवरी 2024, 19 बजकर 28 मिनट |
यह एकादशी बहुत ही श्रेष्ठ मानी गयी है। यही नहीं इस व्रत को करने से जाने अनजाने में संतान के प्रति किये गए पापाचरण से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है। वस्तुतः पुत्रदा एकादशी करने से मनुष्य सभी प्रकार के मोह बन्धनों से मुक्त हो जाता है साथ ही उसके द्वारा कृत्य पाप भी नष्ट हो जाते हैं। हिन्दू धर्म में पुत्रदा एकादशी का बहुत ही महत्त्व है। इस एकादशी का वर्णन पुराणों में भी मिलता है।
श्रवण पुत्रदा एकादशी 2024 |
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दिन | शुक्रवार |
एकादशी तिथि प्रारम्भ | 15 अगस्त 2024, 10 बजकर २7 मिनट |
एकादशी तिथि समाप्त | 16 अगस्त 2024 ,9 बजकर 28 मिनट |
पुत्रदा एकादशी व्रत विधि | Method of Putrada Ekadashi Vrat
जो जातक पुत्रदा एकादशी का व्रत करता है उसे एक दिन पूर्व अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। उस दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। व्रत के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्य होकर सबसे पहले स्नान कर लेना चाहिए। यदि आपके पास गंगाजल है तो पानी में गंगाजल डालकर नहाना चाहिए। स्नान करने के लिए कुश और तिल के लेप का प्रयोग करना श्रेष्ठ माना गया है। स्नान करने के बाद शुद्ध वा साफ कपड़ा पहनकर विधिवत भगवान श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
भगवान् विष्णु देव की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं तथा पुनः व्रत का संकल्प लेकर कलश की स्थापना करना चाहिए। कलश को लाल वस्त्र से बांध कर उसकी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद उसके ऊपर भगवान की प्रतिमा रखें, प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध करके नया वस्त्र पहना देना चाहिए। उसके बाद पुनः धूप, दीप से आरती करनी चाहिए और नैवेध तथा फलों का भोग लगाना चाहिए। उसके बाद प्रसाद का वितरण करे तथा ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए। रात में भगवान का भजन कीर्तन करना चाहिए। दूसरे दिन ब्राह्मण भोजन तथा दान के बाद ही खाना खाना चाहिए।
एकादशी का व्रत बिलकुल ही पवित्र मन से करना चाहिए। अपने मन में किसी प्रकार का व्रत के प्रति ऐसी वैसी शंका नहीं या पाप विचार नहीं लाना चाहिए। इस दिन झूठ नहीं बोले तो अच्छा होगा । व्रती को पूरे दिन निराहार रहना चाहिए तथा शाम में पूजा के बाद फलाहार करना चाहिए।
भक्तिपूर्वक इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। संतान की ईच्छा रखने वाले निःसंतान व्यक्ति को इस व्रत को करने से शीघ्र ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। अतः संतान प्राप्ति की ईच्छा रखने वालों को इस व्रत को श्रद्धापूर्वक अवश्य ही करना चाहिए।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Story of Putrada Ekadashi Vrat
पुत्रदा एकादशी कथा के सम्बन्ध में कहा गया है कि प्राचीन काल में महिष्मति नामक नगरी में ‘महीजित’ नामक एक धर्मात्मा राजा सुखपूर्वक राज्य करता था। वह बहुत ही शांतिप्रिय, ज्ञानी और दानी था। सभी प्रकार का सुख-वैभव से सम्पन्न था परन्तु राजा संतान कोई भी संतान नहीं था इस कारण वह राजा बहुत ही दुखी रहता था।
एक दिन राजा ने अपने राज्य के सभी ॠषि-मुनियों, सन्यासियों और विद्वानों को बुलाकर संतान प्राप्ति के लिए उपाय पूछा। उन ऋषियों में दिव्यज्ञानी लोमेश ऋषि ने कहा- ‘राजन ! आपने पूर्व जन्म में सावन / श्रावण मास की एकादशी के दिन आपके तालाब एक गाय जल पी रही थी आपने अपने तालाब से जल पीती हुई गाय को हटा दिया था। उस प्यासी गाय के शाप देने के कारण तुम संतान सुख से वंचित हो। यदि आप अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी को भगवान जनार्दन का भक्तिपूर्वक पूजन-अर्चन और व्रत करो तो तुम्हारा शाप दूर हो जाएगा। शाप मुक्ति के बाद अवश्य ही पुत्र रत्न प्राप्त होगा।’
लोमेश ऋषि की आज्ञानुसार राजा ने ऐसा ही किया। उसने अपनी पत्नी सहित पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से रानी ने एक सुंदर शिशु को जन्म दिया। पुत्र लाभ से राजा बहुत ही प्रसन्न हुआ और पुनः वह हमेशा ही इस व्रत को करने लगा। उसी समय से यह व्रत लोक में प्रचलित हो गया। अतः जो भी व्यक्ति निःसन्तान है और संतान की इच्छा रखता हो वह व्यक्ति यदि इस व्रत को शुद्ध मन से करता है तो अवश्य ही उसकी इच्छा की पूर्ति है कहा जाता है की भगवान् के घर में देर है पर अंधेर नहीं।
एकादशी व्रत मे क्या नहीं करना चाहिए | What should not do in Ekadashi Vrat
‘पुत्रदा एकादशी’ का व्रत जो भी करता है उसे एकादशी पूर्व अर्थात दशमी तिथि को तथा एकादशी के दिन निम्लिखित बातों का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए।
- दशमी तथा एकादशी तिथि के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए
- दशमी तिथि की रात्रि में शहद, शाक, चना तथा मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए
- व्रत पूर्व दशमी तिथि के दिन व्यक्ति को मांस मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
- व्रत के दिन और व्रत से एक दिन पूर्व रात्रि में कभी भी मांग कर खाना नहीं कहना चाहिए।
- व्रत की अवधि मे व्यक्ति को जुआ नहीं खेलना चाहिए।
- एकादशी व्रत हो या अन्य कोई व्रत, व्यक्ति को दिन में नहीं सोना चाहिए।
- दशमी तिथि को पान नहीं खाना चाहिए।
- व्रत के दिन दातुन से मुह नहीं धोना चाहिए।
- झूठ नहीं बोलना चाहिए।
- व्रत के दिन दुसरो की निन्दा नहीं करनी चाहिए।
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संतान गोपाल मन्त्र – पुत्र प्रदायक है