Navratri | नवरात्री में कन्या पूजन विधि महत्त्व तथा लाभ
Navratri | नवरात्री में कन्या पूजन विधि महत्त्व तथा लाभ. भारतीय हिन्दू संस्कृति में नवरात्री पूजन तथा नवरात्री में कन्या पूजन का विशेष महत्त्व रहा है और रहेगा परन्तु क्यों ? क्या आप जानते है नहीं न , आप ही नहीं ऐसे बहुत लोग है जो कन्या पूजन तो करते है परंतु क्यों का उत्तर उनके पास नहीं है । वस्तुतः बहुत कम ही लोग यह जानते है कि किस उम्र की कन्या का पूजन करे, कन्या पूजन क्यों किया जाता है तथा कन्या पूजन से क्या क्या लाभ मिलता है। इस पूजन का विशेष महत्त्व क्यों है ? आइये हम इस लेख के माध्यम से जानते है कि कन्या पूजन का क्या महत्त्व है ।
कन्या पूजन का महत्त्व
नारी वा कन्या का महत्त्व हम सब से छुपा हुआ नहीं है नारी मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है उसके बिना पुरुष अधूरा है । नारी ही उसे पूर्णता प्रदान करती है । पुरुष के उजड़े हुए उपवन को नारी ही पल्लवित और पुष्पित बनाती है। विश्व का आदि मानव भी जोड़े के रूप में धरती पर अवतरित हुआ था । मनुस्मृति में स्त्री के सम्बन्ध में कहा गया है —
द्विधा कृत्वाऽऽत्मनस्तेन देहमर्धेन पुरुषोऽभवत् |
अर्धेन नारी तस्यां स विराजमसृजत्प्रभुः ||
अर्थात् उस हिरण्यगर्भ ने अपने शरीर के दो भाग किये आधे से पुरुष और आधे से स्त्री का निर्माण हुआ ।
पुराण में नारी के महत्त्व के सम्बन्ध में कहा गया है। ..
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: ।।
अर्थात जिस स्थान पर स्त्रियों की पूजा होती है, वही देवता निवास करते हैं तथा जहाँ उनकी पूजा नहीं होती, वहाँ सब काम निष्फल होते हैं।
कामायनी में जयशंकर प्रसाद ने लिखा है —
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग-पग-तल में ,
पीयुष श्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।”
उपर्युक्त विद्वानों के विचार से समाज तथा परिवार में नारी का क्या महत्त्व है स्पष्ट है। नवरात्र में कन्या को नौ देवी का रूप मानकर पूजन किया जाता है। कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती है।
कन्या पूजन में कन्याओं की उम्र कितनी होनी चाहिए ?
कन्या पूजन में कन्या की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा 11 वर्ष से कम होनी चाहिए। श्रीमद देवीभागवत पुराण के अनुसार कन्या पूजन में एक वर्ष की कन्या को नही बुलाना चाहिए, क्योकि वह कन्या गंध भोग आदि पदार्थो के स्वाद से एकदम अनभिज्ञ तथा अपनी भावना को भी व्यक्त नहीं कर पाती है अतः इस उम्र की कन्या का पूजन नही करना चाहिए।
पूजा में कन्या की संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए। कन्या पूजन के समय एक बालक भी होना चाहिए जिसे हनुमानजी अथवा भैरव का रूप माना जाता है। जिस प्रकार माता की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती है, उसी प्रकार कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है।
उम्र के अनुसार कन्या का नामकरण
प्रथम वर्ष – देवी रूप में होती है ।
द्वितीय वर्ष – कुवारी वा कन्या
तृतीय वर्ष – त्रिमूर्ति
चतुर्थ वर्ष – कल्याणी
पंचम वर्ष- रोहिणी
षष्ठ वर्ष- कालिका
सप्तम वर्ष- चण्डिका
अष्ट वर्ष – शाम्भवी
नवम वर्ष- दुर्गा
दस वर्ष – सुभद्रा कहलाती है
अर्थात दो वर्ष से लेकर दस वर्ष तक की कन्या का ही पूजन करना चाहिए दस वर्ष से अधिक उम्र की कन्या या पूजन करने से पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती है अर्थात यदि आप पूजन करते है तो आपका पूजन निरर्थक तो नहीं होगा परन्तु उतना फल नहीं मिलेगा जितना मिलना चाहिए। कन्या की पूजा में किसी भी प्रकार की कोताही नही बरतनी चाहिए बल्कि विधिवत पूजा ही करनी चाहिए । पूजन के बाद अपनी सामर्थ्यानुसार ही दान दक्षिणा देनी चाहिए।
नवरात्री में माता के नौ रूप
मार्कण्डेय-पुराण के अनुसार माता दुर्गा के नौ रूप है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी |
तृतीयं चन्द्रघण्टेति, कुष्मंडेति चतुर्थकम ||
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च |
सप्तं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टकम् ||
नवं सिद्दिदात्री च नव दुर्गा प्रकीर्तिता: ||
अर्थात
पहला दिन – शैलपुत्री,
दूसरा दिन – ब्रह्मचारिणी,
तीसरा दिन – चन्द्रघंटा,
चौथे दिन – कुष्मांडा,
पाचवें दिन- स्कन्दमाता
छठे दिन – कात्यायनी,
सातवे दिन – कालरात्रि ,
आठवे दिन – महागौरी,
नौवे दिन – सिद्धिदात्री
नवरात्री के समय माता उपर्युक्त नौ रूपों में इस धरती पर विराजमान होती है इस कारण जिस दिन माता जिस रूप में होती है हमें उनकी उन्ही रूप की पूजा अर्चना करनी चाहिए ऐसा करने से माता शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोवांछित फल देती है।
जानिये ! आयु के अनुसार कन्या पूजन से लाभ
बिना किसी विशेष दिन के भी कन्या के पूजन से हमें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और यदि आप नवरात्री में कन्या का पूजन करते है तो उसके अनेक प्रकार के लाभ की प्राप्ति होती है। उम्र के अनुसार कन्या पूजन से क्या लाभ मिलता है आइये जानते है ।कि2क्यू
जो कन्या दो वर्ष की होती है उसे “कुमारी” नाम की कन्या कहते है नवरात्री में इनका पूजन करने से हमारे दुःख तथा दरिद्रता का नाश होता है । जीवन यात्रा में बाधा बनकर आने वाले शत्रुओं का क्षय और धन तथा आयु की अभिवृद्धि होती हैं ।
तीन बर्ष की कन्या “त्रिमूर्ति” कहलाती है नवरात्री में इनका पूजन करने से त्रिविध सुख धर्म-अर्थ और काम की पूर्ति होती हैं । इनकी पूजन से मान सम्मान तथा पुत्र- पौत्र की प्राप्ति होती है।
चतुर्थ वर्ष की कन्या “कल्याणी” नाम से जानी जाती है और इनका नवरात्र में पूजन करने से जातक को बल बुद्धि तथा विद्या की प्राप्ति होती है तथा इसके माध्यम से शत्रुओ पर विजय एवं असीम सुख-समृद्धि की प्राप्त होती हैं.
यदि कोई कन्या पांच वर्ष की है तो उसे “रोहणी” नाम से जानी जाती है । यदि आप रोहिणी कन्या की पूजन नवरात्रि में करते है तो रोग तथा शत्रु का नाश् होता हैं।
जब कन्या छः साल की होती है तो “कालिका” नाम से जानी जाती है ।नवरात्री के दौरान कालिका नामक कन्या की पूजन करने से शत्रुओं का नाश तथा शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है।
“चण्डिका” नाम की कन्या वह होती जो अपने उम्र के सप्तम वर्ष में प्रवेश करती है । नवरात्री के समय इनकी विधिवित पूजा करने से भक्त को मान सम्मान, धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं
जब कन्या अष्टम वर्ष में प्रवेश करती है तो “शाम्भवी” नाम की कन्या के नाम से जानी जाती है । नवरात्रि के दौरान शाम्भवी नामक कन्या की पूजन से भक्त के अंदर सम्मोहन, दुःख-दरिद्रता का नाश होता है तथा वह युद्ध (संग्राम) में विजय प्राप्त करता है।
जब कोई लड़की अपने उम्र के नवमें वर्ष में प्रवेश करती है तो “दुर्गा” नामक कन्या के रूप में जानी जाती है । नवरात्रि के समय इस उम्र की कन्या के पूजन से क्रूर से क्रूर शत्रु का नाश होता है । कर्म की साधना व पर-लोक में सुख प्राप्ति के रास्ते खुलते है।
जब कन्या दसम वर्ष में प्रवेश करती है तो “ सुभद्रा ” नाम की कन्या के नाम से जानी जाती है । नवरात्री के समय इस उम्र की कन्या की पूजन से भक्त को मनोनुकूल धन धान्य की बृद्धि होती है।
अपनी मनोरथ की सिद्धि के लिए भक्त को “सुभद्रा” नामक कन्या की पूजा करना श्रेष्ठकर होता है।
कन्या पूजन की विधि
कन्या की पूजा के लिए सभी कन्याओं को एक दिन पहले ही निमंत्रण दे देना चाहिए तथा दूसरे दिन जाकर पुनः दूसरे दिन नौ कुंवारी कन्याओं को आदर के साथ बुलाना चाहिए। कन्या पूजन अष्टमी या नवमी के दिन किया जाता है । घर में कन्याओ के आने पर पूरे परिवार के साथ फूल से उनका स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के साथ जयकारा लगाना चाहिए।
पुनः इन कन्याओं को निर्धारित स्वच्छ आसन पर बिठाकर सभी के पैरों को जल अथवा दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए उसके बाद पैर पोछना भी चाहिए तत्पश्चात पैर छूकर सभी कन्याओ का आशीर्वाद लेना चाहिए। उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुंकुम लगाना चाहिए। फिर मां भगवती का ध्यान करके देवी रूपी कन्याओं को अपने सामर्थ्यानुसार भोजन कराना चाहिए। इसके बाद सभी कन्याओ को पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए तत्पश्चात स्वयं प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत तोड़ना चाहिए।
9 Comments
Meri shadi KB hogi or kis se hogi or ldka kesa hoga. Date of birth23/4/1993 time of birth7.55am. place of birth kangra (HP)
Meri marriage KB hogi or government job lagegi ya nhi
Dob- 18/02/1991
Birth place_ Khurai
Time -11.00pm
Can u guide me for sankat ,kasht & dhukh
kya meri shadi hogi
meri shadi kab hogi kya meri jindagi sahi hogi meri date of birth 2/4/1995
Name-Gaurav Kumar Tyagi
D.o.b-27/10/1989{(9 pm)रात्रि}
palace- Baghpat U.p West
marrige problem
kab hogi with
Lovely tyagi
dob-5/9/1994 Delhi
Meri shadi KB hogi or kis se hogi or ldka kesa hoga. Date of birth25/7/1998 time of birth10:30am. place of birth Gujarat
Sadi kb hogi aur larka job me hoga or not
Mata ki aradhana karen jaldi shadi ho jayegi.