Navratra Kalash Sthapna Muhurt 2017 | कलश स्थापना मुहूर्त 2017
Navratra Kalash Sthapna Muhurt 2017 | कलश स्थापना मुहूर्त 2017 इस वर्ष चैत्र नवरात्री पूजन 28 मार्च 2017 से प्रारम्भ है। इस बार अमावस्या 28 तारीख को 8 बजकर 27 मिनट तक है अतः 29 तांत्रिक को प्रथम नवरात्र मनाने की सलाह दी जा रही है परन्तु शास्त्रानुसार ( निर्णयसिन्धु ) सूर्योदय के बाद 1 मुहूर्त स्थानीय दिनमान का 15 वां भाग होता है यदि प्रतिप्रदा तिथि व्याप्त हो, तो नवरात्रारंभ व घट स्थापनादि उसी दिन प्रातः कर लेना चाहिए। यदि चैत्र शुक्ल प्रतिप्रदा सूर्योदय कालिक न मिले तथा अगले दिन प्रतिप्रदा का अभाव हो या एक मुहूर्त से भी कम काल के लिए व्याप्त हो, तो वैसी स्थिति में पूर्वा अर्थात् अमावस्या युक्त प्रतिप्रदा में ही नवरात्रांरभ करना शास्त्र सम्मत है।
इस वर्ष विक्रम संवत् 2074 में 28 मार्च 2017 ई. को प्रातः 8.27 पर चैत्र अमावस्या समाप्त हो रही है तथा चैत्र शुक्ल प्रतिप्रदा तिथि 8.28 से ही प्रारंभ होकर अगले दिन 29 मार्च के सूर्योदय मानक 6.25 से.पूर्व 29.45 पर समाप्त होगी जिस कारण चैत्र प्रतिप्रदा का क्षय हुआ माना जाएगा।
इस स्थिति में शास्त्रीय नियम के अनुसार चैत्र वासंत अमावस्या विद्धा प्रतिप्रदा 28 मार्च 2017 ई. मंगलवार को ही मानी जानी चाहिए। अतः प्रातः 8:30 मिनट के बाद कलश स्थापना करनी चाहिए।
शारदीय नवरात्री 2017
इस वर्ष शारदीय नवरात्री पूजन 21 सितंबर 2017 से प्रारम्भ है। इस दिन प्रथम नवरात्र (प्रतिपदा) है। नवरात्रि के प्रथम दिन माता शैलपुत्री के रूप में विराजमान होती है। उस दिन कलश स्थापना के साथ-साथ माँ शैलपुत्री की पूजा होती हैऔर इसी पूजा के बाद मिलता है माँ का आशीर्वाद।
कलश स्थापना और पूजन समय | Timing of Pooja and Kalash Sthapna
भारतीय शास्त्रानुसार नवरात्रि पूजन तथा कलशस्थापना आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के पश्चात 10 घड़ी तक अथवा अभिजीत मुहूर्त (Abhijit muhurt) में ही करना चाहिए। कलश स्थापना(Kalash Sthapna) के साथ ही नवरात्री का त्यौहार प्रारम्भ हो जाता है।
अभिजितमुहुर्त्त यत्तत्र स्थापनमिष्यते। अर्थात अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना करना चाहिए। भारतीय ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार नवरात्रि पूजन द्विस्वभाव लग्न (Dual Lagan) में करना श्रेष्ठ होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मिथुन, कन्या,धनु तथा कुम्भ राशि द्विस्वभाव राशि है। अतः हमंा इसी लग्न में पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए।
नवरात्र कलश स्थापना मुहूर्त 2017
घटस्थापना मुहूर्त = 06:22 to 07:30
अवधि = 1 घंटा 8 मिनट
घटस्थापना मुहूर्त तिथि – प्रतिपदा तिथि
घटस्थापना मुहूर्त लग्न – द्विस्वभाव राशि कन्या लग्न
प्रतिपदा तिथि आरम्भ = 05:41 बजे से 21/Sep/2017
प्रतिपदा तिथि समाप्त = 07:45 तक 22/Sep/2017प्रथम(प्रतिपदा)
नवरात्र हेतु पंचांग विचार
दिन(वार) – वृहस्पतिवार
तिथि – प्रतिपदा
नक्षत्र – हस्त
योग – भव
करण – किंस्तुघ्न
पक्ष – शुक्ल
मास – आश्विन
लग्न – धनु (द्विस्वभाव)
लग्न समय – 11:33 से 13:37
मुहूर्त – अभिजीत
मुहूर्त समय – 11:46 से 12:34 तक
राहु काल – 13:45 से 15:16 तक
विक्रम संवत – 2074
इस वर्ष अभिजीत मुहूर्त (11:46 से12:34 तक है ) जो ज्योतिष शास्त्र में स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया है। धनु लग्न में पड़ रहा है अतः धनु लग्न में ही पूजा तथा कलश स्थापना करना श्रेष्ठकर होगा।
Navratra 2017 : माता दुर्गा के प्रथम रूप “शैलपुत्री”
माँ दुर्गा के प्रथम रूप “शैलपुत्री”की उपासना के साथ नवरात्रि प्रारम्भ होती है। शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण, माँ दुर्गा के इस रूप का नाम “शैलपुत्री” है। पार्वती और हेमवती भी इन्हीं के नाम हैं। माता के दाहिने हाथ में त्रिशूल तथा बाएँ हाथ में कमल का फूल है। माता का वाहन वृषभ है। माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना इस मंत्र के उच्चारण के साथ करनी चाहिए-
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
Navratra 2017 : नवरात्र पूजन सामग्री
माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल, अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और अगरबती, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान, सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती का किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।
Navratri 2017 : नवरात्र पूजन से लाभ
गीता में कहा गया है- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन अर्थात आपको केवल कर्म करते रहना चाहिए फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। फिर भी “प्रयोजनम् अनुदिश्य मन्दो अपि न प्रवर्तते” सिद्धांत के अनुसार विना कारण मुर्ख भी कोई कार्य नहीं करता है तो भक्त ऐसा कैसे कर सकता है। माता सर्व्यापिनी तथा सब कुछ जानने वाली है इसलिए ऐसी मान्यता है कि माता शैलपुत्री की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाये पूर्ण होती है तथा भक्त कभी रोगी नहीं होता अर्थात निरोगी हो जाता है।