Jaya Ekadashi Vrat 20 Feb 2024 | जया एकादशी व्रत महत्त्व, विधि एवं कथा

Jaya Ekadashi Vrat 1 Feb 2023 | जया एकादशी व्रत महत्त्व, विधि एवं कथा Jaya Ekadashi Vrat 20 Feb 2024 | जया एकादशी व्रत महत्त्व, विधि एवं कथा . भारतीय हिन्दू समाज में एकादशी व्रत की महिमा अपरम्पार है। साल के प्रत्येक मास में 2 एकादशी व्रत आता है और सभी एकादशी व्रत का अपना ही महत्त्व होता है। प्रत्येक एकादशी व्रत भक्त को किसी विशेष इच्छा की पूर्ति करता है।  माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का भी अपना विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से पिशाचों जैसा जीवन व्यतीत करने वाले पापी से पापी व्यक्ति को भी जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती हैं। माघ शुक्ल, एकादशी को जया एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी व्रत का वर्णन पुराणों में भी मिलता है।

माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा,अर्चना और व्रत रखने से शीघ्र ही शुभ फलों की प्राप्ति होती है।  व्रत रखने से जातक के ऊपर ऊपरी शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ता है और समस्त प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है। जया एकादशी को भूमि एकादशी तथा भीष्म एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

जया एकादशी व्रत मुहूर्त 20 फरवरी 2024
दिन  मंगलवार 
एकादशी तिथि प्रारम्भ  19 फरवरी 2024 08 बजकर 49 मिनट,
एकादशी तिथि समाप्त  20 अगस्त 2024 ,9 बजकर 55 मिनट 
पारण  समय  21 फरवरी 2024 को सुबह 06 बजकर 55 मिनट से लेकर सुबह 09 बजकर 12 मिनट तक

जया एकादशी व्रत पूजन विधि | Jaya Ekadashi Vrat Method

जो भक्त जया एकादशी का व्रत करता है उसे एक दिन पूर्व रात्रि से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। दशमी के दिन एक ही बार सात्विक भोजन करना चाहिए  । उस दिन से ही सात्विक मनोवृति तथा ब्रह्मचर्य का पालन आरम्भ कर देना चाहिए। रात में विष्णु भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः उठकर नित्य क्रिया से निवृत्य होकर पानी में गंगाजल मिलकर स्नान कर लेना चाहिए। स्नान करने के लिए कुश और तिल के लेप का प्रयोग करना अच्छा माना गया है। इसके बाद शुद्ध वा साफ कपड़ा पहनकर विधिवत श्री विष्णु भगवान के अवतार श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।

भगवान् श्री कृष्ण की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाकर व्रत का संकल्प लेकर कलश की स्थापना करनी चाहिए। कलश को लाल वस्त्र से बांध कर उसकी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद उसके ऊपर भगवान की प्रतिमा रखें। पुनः प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध करके नया वस्त्र पहना देना चाहिए। पुनः धूप, दीप, फल, पंचामृत आदि से भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिये। उसके बाद प्रसाद का वितरण करे तथा ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा देनी चाहिए। रात में भगवान का भजन कीर्तन करना चाहिए। दूसरे दिन ब्राह्मण भोजन तथा दान के बाद ही खाना खाना चाहिए।

जया एकादशी व्रत कथा | Jaya Ekadashi Vrat Story

एक बार अर्जुन ने भगवान् श्री कृष्ण से प्रश्न करते है — “हे भगवन् ! अब कृपा कर आप मुझे माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या महत्त्व है विस्तारपूर्वक बताएं। माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी में किस देवता की पूजा करनी चाहिए तथा इस एकादशी व्रत की कथा क्या है ? उसके करने से किस फल की प्राप्ति होती है शीघ्र ही बताये ?”

भगवान श्रीकृष्ण कहते है – “हे अर्जुन ! माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। इस दिन उपवास रखने से मनुष्य भूत, प्रेत, पिशाच आदि की योनि से छुटकारा मिल जाता है, अतः इस दिन विधिपूर्वक उपवास व्रत करना चाहिए। हे ! अर्जुन मैं अब तुमसे जया एकादशी व्रत की कथा कहता हूँ, ध्यानपूर्वक श्रवण करो —

एक समय की बात है नंदन वन में उत्सव का आयोजन हो रहा था। देवता, ऋषि मुनि  सभी उस उत्सव में मौजूद थे। उस समय गंधर्व गा रहे थे तथा  गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थी। इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था। जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही रूपवान भी था। गंधर्व कन्याओं में एक पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी।

पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या ने माल्यवान नामक गंधर्व को देखते ही उस पर आसक्त हो गई तथा अपने हाव-भाव से उसे रिझाने का प्रयास करने लगी। माल्यवान भी उस पुष्पवती पर आसक्त होकर अपने गायन का सुर-ताल भूल गया। इससे संगीत की लय टूट गई और संगीत का सारा आनंद बिगड़ गया।

सभा में उपस्थित  देवगणों को यह अच्छा नहीं लगा।  माल्यवान के इस कृत्य से इंद्र भगवान् नाराज़ होकर उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगो क्योकि तुमने संगीत जैसी पवित्र साधना का तो अपमान किया ही है साथ ही सभा में उपस्थित गुरुजनों का भी अपमान किया है। इंद्रा भगवान्  के शाप के प्रभाव से दोनों पृथिवी पर हिमालय पर्वत के जंगल में  पिशाची जीवन व्यतीत करने लगे।

पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था। दोनों बहुत दुखी थे। एक बार माघ के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन संयोगवश दोनों ने कुछ भी भोजन नहीं किया और न ही कोई पाप कर्म किया। उस दिन मात्र फल-फूल खाकर ही पूरा दिन व्यतीत किया। भूख से व्याकुल तथा ठंढ के कारण बड़े ही  दुःख के साथ पीपल वृक्ष के नीचे  इन दोनों ने एक-दूसरे से सटकर बड़ी कठिनता पूर्वक पूरी रात काटी। पूरी रात अपने द्वारा किये गए कृत्य पर पश्चाताप भी करते रहे और भविष्य में इस प्रकार के भूल न करने की भी ठान लिया था सुबह होते ही दोनों की मृत्यु हो गई

अंजाने में ही सही उन्होंनें एकादशी का उपवास किया था। भगवान के नाम का जागरण भी हो चुका था परिणामस्वरूप प्रभु की कृपा से इनकी पिशाच योनि से मुक्ति हो गई और पुनः अपनी अत्यंत सुंदर अप्सरा और गंधर्व की देह धारण करके तथा सुंदर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलंकृत होकर दोनों स्वर्ग लोक को चले गए।

देवराज इंद्र उन्हें स्वर्ग में देखकर आश्चर्यचकित हुए और पूछा कि वे श्राप से कैसे मुक्त हुए। तब उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु की उन पर कृपा हुई। हमसे अंजाने में माघ शुक्ल एकादशी यानि जया एकादशी का उपवास हो गया जिसके प्रताप से भगवान विष्णु ने हमें पिशाची जीवन से मुक्त किया। इस प्रकार सभी ने जया एकादशी व्रत के महत्व को जाना। इस प्रकार स्पष्ट है की विधि पूर्वक जया एकादशी का व्रत करने से भक्त को पूर्व में किये गए पाप कर्मो से मुक्ति मिलती है।

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