Govardhan Pooja 2020 | गोवर्धन पूजा 2020
Govardhan Pooja 2020 |गोवर्धन पूजा 2020 का त्यौहार दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है। यह पूजा विशेषतः उत्तर भारत में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार भारतीय किसानो से स्पष्ट रूप से जुड़ा हुआ है। गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजने का विधान है।
प्राचीन काल से ही गाय, हिन्दू धर्म में धन लक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित है इसलिए गो सेवा सबसे महान सेवा मानी गई है। गाय गंगा के समान पवित्र है। गाय की पूजा तथा सेवा करने से मनुष्य को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। आज भी गाय हमें दूध देकर हमें जीवन प्रदान करती है और गाय का बछड़ा/बैल से खेतो में हल जोतकर अनाज उगाया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है की गाय सम्पूर्ण मानव परिवार के अत्यंत ही पूजनीय है |
कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है जिसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है । गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा।गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की बनाकर उनका पूजन किया जाता है तथा अन्नकूट का भोग लगाया जाता है । यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है।
श्रीमद्भागवत पुराण में गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में उल्लेख है — भगवान कृष्ण ने ब्रज में लोगो को इंद्र की पूजा नही करने तथा उसके स्थान पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा । इसी कारण आज भी दीपावली के ठीक दूसरे दिन संध्या काल में ब्रज में गोवर्धन पूजा का विशेष रूप से आयोजन होता है ।
भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन इन्द्र भगवान् का अहंकार धवस्त करके पर्वतराज गोवर्धन जी का पूजन करने का आहवान किया था | इस दिन मन्दिरों में अन्नकूट किया जाता है तथा संध्या काल में गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है | इस दिन गाय की पूजा की जाती है फूल माला, धूप, चंदन आदि से इनका पूजन किया जाता है
गोवर्द्धन पूजा 2020 की शुभ तिथि और शुभ मुहूर्त
गोवर्द्धन पूजा, 15 नवंबर 2020
गोवर्धन पूजा संध्या समय मुहूर्त – 15:18 बजे से सायं 17:27 बजे तक
गोवर्द्धन पूजा विधि | Govardhan puja Vidhi
गोदवर्द्धन पूजा के दिन प्रातः काल उठकर शरीर में तेल लगाने के बाद स्नान करने के बाद स्वच्छ या नया वस्त्र धारण करें। उसके बाद अपने ईष्ट देवता का ध्यान करें (इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि और भगवान विष्णु की पूजा और हवन भी किया जाता है) और पुनः घर के मुख्य दरवाजे के सामने गाय के गोबर से गोवर्द्धन पर्वत बनाएं। पुनः गोबर से बनाये हुए पर्वत को पेड़-पौधों की शाखाओं और फूलों से सजाएं। गोवर्द्धन पर अपामार्ग की टहनियां अवश्य लगाएं। उसके बाद पर्वत पर कुमकुम, रोली, अक्षत और पुष्प चढ़ाये। पुनः हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए बोले —–
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव: ।।
इस मन्त्र के उच्चारण के बाद यदि आपके घर में गायें हैं तो उन्हें स्नान कराकर उनका साज-सज्जा वा श्रृंगार करें। फिर उनके ऊपर रोली, कुमकुम, अक्षत और फूल चढ़ाये। यही आप चाहें तो अपने आसपास की गायों की भी पूजा कर सकते हैं। यदि गाय नहीं है तो फिर उनका चित्र बनाकर भी पूजा की कर सक्ते हैं। अब गायों को प्रसाद रूप में नैवेद्य अर्पित करें और इस मंत्र का उच्चारण करें —-
लक्ष्मीर्या लोक पालानाम् धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।
उपर्युक्त प्रक्रिया करने के बाद गोवर्द्धन पर्वत और गायों को भोग लगाकर आरती करे। जिन गायों की आपने पूजा की है सांध्य काल में उन्ही से गोबर के गोवर्द्धन पर्वत का मर्दन कराएं अर्थात पूजित गायो को बनाए गए पर्वत पर पर चलवाएं उसके बादउस गोबर से घर-आंगन को अच्छी तरह से लीपें। पूजा करने के बाद पर्वत की 7 बार परिक्रमा करें।
कृष्णजी ने क्यों कहा था गोवर्धन पूजा मनाने के लिए
श्रीकृष्णजी ने ही सभी ब्रजवासियो को गोवर्धन पूजा (Govardhan Pooja) मनाने के लिए आज्ञा दिया था इसका मुख्य कारण था की श्रीकृष्णजी ने ब्रजवासियों को इंद्र की मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक लगातार अपनी कनिष्ठिका उंगली से गोवर्धन पर्वत को उठाकर रखा और सभी ब्रजबासियो की रक्षा किये थे और जब सातवे दिन श्रीकृष्णजी ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा तब गोवर्धन की पूजा करके “अन्नकूट उत्सव” मनाने की आज्ञा दी उसी समय से यह पर्व अन्नकूट पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
Govardhan Pooja / गोवर्धन पूजा की कथा
प्राचीन काल से ही गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोक कथा प्रचलित है उसके अनुसार देवराज इन्द्र के अहंकार को समाप्त करने के लिए लीलाधारी श्रीकृष्ण ने एक लीला रची। श्रीकृष्ण ने देखा की सभी ब्रजबासी देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी में लगे है तब प्रभु कृष्ण ने प्रश्न किया की मैया आप लोग इंद्र की पूजा क्यों करते है ? तब माता ने कहा इंद्र ही वर्षा करते है जिससे अनाज की उपज होती है और गाय को उत्तम चारा भी मिलता है। तब कृष्णजी ने कहा कि गाय तो गोवर्धनपर्वत पर चरति है अतः हमें तो गोर्वधन पूजा (Govardhan Pooja) करनी चाहिए न कि इन्द्र की। इसके बाद सभी ब्रजबासियो ने इंद्र के स्थान पर गोवर्घन पर्वत की पूजा किया।
यह सब देखकर देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझकर मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय जैसा वर्षा देखकर सभी ब्रजबासियो ने कृष्णजी को उलाहना देने लगे कि यह सब कुछ कृष्ण के कहने से हुआ है अब बताओ हमलोग क्या करें आप रक्षा करो तब श्रीकृष्णजी ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत को ही उठा लिया और सभी ब्रजबासियो को उसमें गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र भगवान कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हो गए अब क्या था उन्होंने और वर्षा तेज कर दी तब कृष्णजी ने इन्द्र का मान मर्दन रखने के लिए सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को रोके और शेषनाग से कहा कि आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इन्द्र ने लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे महसूस हुआ कि यह कार्य कोई साधारण मनुष्य नहीं कर सकता फलतः वे ब्रह्मा जी के पास जाकर सारा वृत्तांत सुनाया तब ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण के सम्बन्ध में बोल रहे है वह मनुष्य रूप में साक्षात भगवान विष्णु /नारायण हैं। ब्रह्माजी के मुंख से जैसे ही यह सुना इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और तत्क्षण भगवान कृष्णजी से कहा प्रभु अहंकार के कारण मैं आपको पहचान न सका आप मेरी भूल को क्षमा करे। तब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र को क्षमा कर दिया पुनः इंद्र ने कृष्ण की पूजा की तथा कृष्ण ने सभी ब्रजबासियो को गोवर्धन पूजा (Govardhan Pooja)करने की आज्ञा भी दी। संक्षेप में यही कहानी प्रचलित है।