Effects of Fourth House Lord in Fifth House in Hindi

Effects of Fourth House Lord in Fifth House in Hindi | चतुर्थेश का पंचम भाव में फलEffects of Fourth House Lord in Fifth House in Hindi |चतुर्थेश का पंचम भाव में फल |  चतुर्थ भाव के स्वामी का पंचम भाव में फल चतुर्थ भाव के स्वामी का पंचम भाव में होना बहुत अच्छा माना गया है इसका मुख्य कारण है केंद्र पति का त्रिकोण में होना । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि आपकी कुंडली में ऐसा योग है तो ऐसा जातक धन सम्पत्ति तथा मान सम्मान को प्राप्त करता है । ऐसा जातक बहुत ही बुद्धिमान और चालाक होता है इसका मन और बुद्धि हमेशा काम करते रहता है इसका मुख्य कारण है की चतुर्थ भाव का कारक मन का पंचम भाव के कारक बुद्धि के साथ सम्बन्ध होना। अतः ऐसा जातक कोई भी काम हो अपनी बुद्धि लगाता ही लगाता है ।

यदि हम विचार करे तो चतुर्थ भाव से पंचम भाव दुसरे स्थान पर है और कुंडली में दूसरा भाव धन भाव होता है और चौथा भाव माता का अतः ऐसे जातक के माता के पास खूब धन होना चाहिए या ऐसे जातक का मामा पक्ष अवश्य ही धनवान और सामाजिक प्रतिष्ठा से युक्त होगा । ऐसा व्यक्ति अपने मामा के यहाँ बहुत दिन तक रहता है।

लोमेश संहिता के अनुसार यदि चतुर्थेश पंचम स्थान में स्थित हो तो –—-

तुर्येश पञ्चमे भाग्ये सुखी सर्वजनप्रिये।
विष्णुभक्तिरतो मानी स्वभुजार्जितविनाशकृत।

अर्थात ऐसा जातक भाग्यशाली होता है। बचपन से ही सुख-सुविधा का उपभोग करता है। सब लोगो का प्रिय होता है तथा सुखी जीवन व्यतीत करता है। वह विष्णु का भक्त होता है। ऐसा जातक क्रोधी तथा अभिमानी होता है और इस प्रवृति के कारण सामाजिक तथा पारिवारिक प्रतिष्ठा में कमी भी आती है।

Effects of Fourth House Lord in Fifth House in Hindi | चतुर्थेश का पंचम भाव में फल

ऐसा जातक धार्मिक तथा आध्यात्मिक विचारो से युक्त होता है। ऐसे लोग किसी धार्मिक संस्था के प्रमुख के रूप में कार्य करते है । यही नहीं आप राजनैतिक व्यवस्थाओ से जुड़कर मंत्रिपद को प्राप्त करते है ।

आप शिक्षा जगत में खूब नाम कमाएंगे लेकिन कब जब आप मेहनत करेंगे । आप तो धोड़ा ही मेहनत में अधिक पा लेंगे ऐसा होगा आपके पूर्व जन्मों के प्रभाव के कारण। कई बार ऐसा भी देखा गया है की जातक पढाई पूरा नहीं कर पाता है इसका मुख्य कारण होता है इस भाव और भावस्थ ग्रहों के ऊपर अशुभ भाव भावेश तथा ग्रहों का प्रभाव होता है ।

ऐसे जातक में धन लोलुपता बहुत होता है यह बहुत धन कमाना चाहता है परन्तु उसके के लिए प्रयास बहुत कम करता है जिसके कारण अपना टारगेट पूरा नहीं कर पाता है। ऐसा जातक मनमौजी भी होता है।

गर्ग संहिता में कहा गया है कि —–

ऐसा जातक अपने पिता के धन का भरपूर उपभोग करता है। अपने भौतिक सुख का आनंद पिता के धन से पूरा करता है। आपको अपने पिता की अचूक सम्पत्ति भी मिलती है।

सूतगे तूर्यगृहेशं पितृलाभाद भोगवान्मनुज।

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