Chhath Pooja 2024 | छठ पूजा 2024
छठ पूजा कब, कैसे और क्यों मनाते है ?
सूर्यदेवोपासना का व्रत Chath Pooja | छठ पूजा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष के षष्ठी के दिन मनाया जाता है। वस्तुतः यह पर्व चार दिन का होता है अर्थात दीपावली के चौथे दिन नहा खा (स्नान कर खाना) से प्रारम्भ होकर पाचवें दिन (खरना), छठे दिन (सांयकालीन सूर्यदेव को अर्घ्य) तथा सातवें दिन सूर्योदय के अर्घ्य देने के बाद समाप्त होता है। यह त्यौहार भारत के बिहार राज्य का सबसे प्रचलित एवं पवित्र पर्व है । छठ पूजा (Chhath Pooja) मुख्य रूप से उत्तर भारत में बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश तथा नेपाल के तराई वाले क्षेत्र में मनाया जाता है परन्तु अब धीरे धीरे सम्पूर्ण भारत में यह व्रत मनाया जाने लगा है।
Chhath Pooja | छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?
प्राचीन काल से ही भारतीय ऋषि-मुनि ब्रह्म वेला में गंगा नदी में स्नान करने के बाद प्रकृति के प्रथम आराध्यदेव सूर्य को अंजलि से अथवा ताम्र-पात्र से अर्घ्य देते थे। उस समय ऋषियों-मुनियों के द्वारा सूर्यदेव को जो अर्घ्य दिया जाता था वह लोक कल्याण की भावना से दिया जाता था उनकी सोच थी…….
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःख भाग्भवेत्।।
अर्थात सभी सुख-पूर्वक रहे, सभी निरोगी हो, सब का कल्याण हो तथा इस जगत में कोई भी दुखी न हो। सूर्यदेव बिना किसी भेद-भाव के स्वयं अपने ताप से तपित होकर विश्व के सभी प्राणियों को ऊर्जा तथा जीवन प्रदान करते हुए हम सब का कल्याण करते है। संस्कृत में एक उक्ति है — प्रयोजनम् अनुदिश्य मन्दोsपि न प्रवर्तते अर्थात जिस प्रकार बिना किसी उद्देश्य के मुर्ख भी कोई कार्य नहीं करता है उसी प्रकार लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए सूर्यदेव की उपासना करते है। कहा जाता है कि यदि सच्चे मन से कोई भी छठ व्रत करता है तो अवश्य ही उसकी मनोकामना की पूर्ति होती है इसमें कोई भी संदेह नहीं है.
इस विषय में अनेक मान्यता है कहा जाता है की एक बार मगध सम्राट जरासंध के एक पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था उसे दूर करने के लिए ब्राह्मणों ने सूर्योंपासना की थी और कुष्ठ रोग दूर हो गया था।
सूर्य भगवान् के 108 नाम
सूर्यवंशी राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या ने कार्तिक की षष्ठी को सूर्य की उपासना की तो च्यवन ऋषि के आँखों की ज्योति वापस आ गई थी।
स्वायम्भुव मनु के पुत्र प्रियव्रत का मृत शिशु छठी मैया के आशीर्वाद से जीवित हो गया तभी से प्रकृति के षष्ट अंश मानी जाने वाली षष्ठी देवी “बालकों के रक्षिका और संतान देने वाली देवी” के रूप में पूजी जाने लगी।
Chhath Pooja | छठ पूजा के लिए स्थल चयन
स्थल चयन भी छठ पूजा का एक महत्वपूर्ण भाग है। छठ पूजा का आयोजन सूर्य मंदिर (Sun Temple) के पास बने हुए सूर्य-कुण्ड में अथवा गंगा नदी के तट पर होता है यदि गंगा नदी नहीं है तो अपनी सुविधानुसार किसी भी नदी के तट पर छठ पूजा (Chhath Pooja) का आयोजन कर सकते है। यदि नदी उपलब्ध न हो तो छोटे तालाबों अथवा पोखरों के किनारे भी इस पर्व को धूमधाम से मनाया जा सकता है हाँ सूर्यदेव को अर्घ्य पानी में खड़े होकर ही देने का विधान है। स्थल चयन के उपरांत उस स्थल को पूरी तरह से साफ-सुथरा करके सजाया जाता है। पूजा के स्थल को घाट कहा जाता है।
छठ व्रत विधि-विधान
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से प्रारम्भ हो जाती है उस दिन जो जातक /जातिका व्रत करती है वह नियमपूर्वक-स्नानादि से निवृत्त होकर, पवित्रतापूर्वक बिना लहसुन, प्याज के कद्दू अथवा घिया की सब्जी, चना का दाल तथा अरवा/बासमती चावल का भोजन बनाकर ग्रहण करती है।
खरना पूजनोत्सव
दूसरे दिन अर्थात पंचमी-तिथि को दिनभर व्रती (व्रत करने वाला ) उपवास करता है तथा सांध्य काल में किसी नदी, तालाब या घर में स्नान करके भगवान सूर्यदेव को अर्ध्य पूजा अर्चना के बाद बिना सब्जी के, केवल खीर (खीर गुड का ही होना चाहिए) और रोटी (यह खीर और रोटी लकड़ी के चूल्हा पर का ही बना होना चाहिए) का भोजन किया जाता है। इसके बाद व्रती कुछ भी नहीं खाती है।
सांयकालीन पूजनोत्सव
षष्ठी के दिन प्रात:काल स्नानादि के बाद संकल्प करती है —
ऊं अद्य अमुकगोत्रोअमुकनामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वकशरीरारोग्यार्थ श्रीसूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्रीसूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
इस संकल्प के बाद व्रती दिनभर निराजल तथा निराहार रहकर सांयकाल में अपने पुरे परिवार तथा श्रद्धालुओं के साथ छठी मैया का गीत गाते हुए किसी नदी अथवा तालाब के तट पर जाकर स्नान कर भगवान सूर्यदेव को जल से अर्ध्य प्रदान करती है।
सूर्यदेव के लिए अर्घ्य कैसे प्रदान किया जाता है?
एक बांस के सूप में केला, सेव आदि सभी ऋतू फल, कसार, ठेकुआ, पकवान, ईख, मूली, हल्दी, सकरकन्द, पानीफल, आदि रखकर सूप को एक पीले वस्त्र से ढक दिया जाता है और धूप-दीप जलाकर सूप को दोनों हाथों में लेकर —
ऊं एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भवत्या गृहाणार्ध्य नमोsस्तुते॥
इस मन्त्र से तीन बार डूबते सूर्य को परिक्रमा के साथ अर्ध्य प्रदान किया जाता है। सांयकालीन पूजा में सूर्यदेव को जल से अर्घ्य दिया जाता है । तथा परिवार के सभी सदस्य अथवा अन्य सभी श्रद्धालु जल से अर्घ्य देते है।
सूर्योदयकालीन अर्घ्य के साथ संपन्न होती है छठ पूजा
सांयकालीन अर्घ्य के बाद सुबह उगते हुए सूर्य को सूप के साथ परिक्रमा करते हुए दूध का अर्घ्य व्रती तथा परिवार के सभी सदस्यों के द्वारा किया जाता है। उसके बाद व्रती घाट पर ही प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत तोड़ती है। उसके बाद सभी परिवार के सदस्य तथा श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण कर घाट पर से अपने घर चले जाते है।
छठ पूजा का ज्योतिषीय एवं सांस्कृतिक महत्व
हिन्दू धर्म में सूर्योपासना का विशेष महत्व है। सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है। वेद में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य से निकलने वाली किरणों में जातक के कई प्रकार के रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति में आरोग्य, तेज , आत्मविश्वास एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा, संतान आदि का कारक कहा गया है। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष के षष्ठी के दिन सूर्य देव तुला राशि में होते है तथा इस राशि में सूर्य देव नीच के होते है और ज्योतिष में जब कोई ग्रह नीच का होता है तो अशुभ फल देता है। इस कारण सूर्यदेव को अर्घ्य देने तथा छठ व्रत करने से अशुभ फल के प्रभाव में कमी होती है। छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम।
सूर्य देव को छठ व्रत के दिन अर्घ्य देने से क्या लाभ मिलता हैं?
वैदिक ज्योतिष में सूर्य को अर्घ्य देने से निम्नलिखित लाभ मिलता है ।
- यह स्वास्थ्य, करियर और सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ी समस्याओं को दूर करता है।
- त्वचा सम्बन्धी बीमारी को दूर करता है।
- निःसंतान को संतान की प्राप्ति होती है।
- यदि सरकारी तंत्र के द्वारा आपको परेशान किया जा रहा है तो इस व्रत को करने से लाभ मिलता है।
- यदि आपको लगता है की कैरियर में मान-सम्मान नहीं मिल रहा है तो इस व्रत को करने से लाभ मिलता है।
- आत्मसम्मान की कमी महशुश करने पर लाभ मिलता है।
ॐ घृणि सूर्याय नमः।ॐ आदित्याय नमः।ॐ भास्कराय नमः। ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
छठ पूजा व्रत प्रारम्भ 2024
नहा खा | 5 नवम्बर 2024 |
खरना अथवा लोहंडा | 6 नवम्बर 2024 |
सूर्यास्त अर्घ्य | 7 नवम्बर 2024 |
सूर्योदय अर्घ्य | 8 नवम्बर 2024 |
छठ पूजा के दिन सूर्यास्त | 17:31 |
छठ पूजा के दिन सूर्योदय |
06:38
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षष्ठी तिथि आरंभ | 00:43 प्रातः (7 नवम्बर 2024) |
षष्ठी तिथि समाप्त | 00:37 प्रातः (8 नवम्बर 2024) |
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