Bhadra kal Vichar | भद्रा काल प्रभाव एवं दोष परिहार
Bhadra kal Vichar | भद्रा प्रभाव एवं दोष परिहार . भारतीय हिन्दू संस्कृति में भद्रा काल को अशुभ काल माना जाता है इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना गया है। यदि आप शुभ कार्य करते है तो अशुभ परिणाम मिलने की प्रबल सम्भावना होती है। मुहूर्त मार्तण्ड में कहा है –
“ईयं भद्रा शुभ-कार्येषु अशुभा भवति” अर्थात शुभ कार्य में भद्रा अशुभ होती है। ऋषि कश्यप ने भी भद्रा काल को अशुभ तथा दुखदायी बताया है —
न कुर्यात मंगलं विष्ट्या जीवितार्थी कदाचन।
कुर्वन अज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत।।
अर्थात जो व्यक्ति अपना जीवन सुखमय व्यतीत करना चाहता है उसे भद्रा काल में कोई भी मंगल कार्य नही करना चाहिए। यदि आप अज्ञानतावश भी ऐसा कार्य करते है तो मंगल कार्य का फल अवश्य ही नष्ट हो जाएगा। भद्रा काल को लेकर मन में अनेक प्रश्न उत्पन्न होता है जैसे —
- भद्रा क्या है ?
- भद्रा काल कब होती है ?
- इस काल का निर्णय कैसे होता है ?
- अशुभ परिणाम मिलने के पीछे क्या तर्क है ?
- भद्रा के लिए पौराणिक मान्यता क्या है ?
भद्रा काल किसे कहते है ?
किसी भी शुभ कार्य में मुहूर्त का विशेष महत्व है तथा मुहूर्त की गणना के लिए पंचांग का सामंजस्य होना अति आवश्यक है। पंचांग में तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण होता है। पंचांग का पांचवा अंग “करण” होता है। तिथि के पहले अर्ध भाग को प्रथम “करण” तथा तिथि के दूसरे अर्ध भाग को द्वितीय करण कहते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है की एक तिथि में दो करण होते हैं। जब भी तिथि विचार में विष्टि नामक करण आता है तब उस काल विशेष को “भद्रा” कहते हैं। भद्रा नमक करण का विशेष महत्व है।
भद्रा काल कब-कब होती है ?
महीना में दो पक्ष होते है। मास के एक पक्ष में भद्रा की 4 बार पुनरावृति होती है। यथा —-शुक्ल पक्ष में चतुर्थी (उत्तरार्ध) अष्टमी (पूर्वार्द्ध), एकादशी (11) तिथि के उत्तरार्ध तथा पूर्णिमा (15 ) तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा काल होती है। कृष्ण पक्ष में भद्रा तृतीया (3) व दशमी (10) तिथि का उत्तरार्ध और सप्तमी (7) व चतुर्दशी(14) तिथि के पूर्वार्ध में होती है।
करण के प्रकार | Type of Karan
पंचांग का पांचवा अंग करण है। करण कुल 11 प्रकार के होते हैं। इनमें से 4 स्थिर तथा 7 चर होते हैं। स्थिर करण —
- किंस्तुध्न
- शकुनि
- चतुष्पद
- नाग
चर करण
- बव
- बालव
- कौलव
- तैतिल
- गर
- वणिज
- विष्टि (भद्रा)
भद्रा काल में क्या-क्या कार्य करना चाहिए | Which work should do during Bhadra
भद्रा काल केवल शुभ कार्य के लिए अशुभ माना गया है। जो कार्य अशुभ है परन्तु करना है तो उसे भद्रा काल में करना चाहिए ऐसा करने से वह कार्य निश्चित ही मनोनुकूल परिणाम प्रदान करने में सक्षम होता है। भद्रा में किये जाने वाले कार्य – जैसे क्रूर कर्म, आप्रेशन करना, मुकदमा आरंभ करना या मुकदमे संबंधी कार्य, शत्रु का दमन करना,युद्ध करना, किसी को विष देना,अग्नि कार्य,किसी को कैद करना, अपहरण करना, विवाद संबंधी काम, शस्त्रों का उपयोग,शत्रु का उच्चाटन, पशु संबंधी कार्य इत्यादि कार्य भद्रा में किए जा सकते हैं।
भद्रा में कौन से कार्य नहीं करना चाहिए | Which work should not do during Bhadra
भद्रा काल में शुभ कार्य अज्ञानतावश भी नहीं करना चाहिए ऐसा करने से निश्चित ही अशुभ परिणाम की प्राप्ति होगी। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भद्रा में निम्न कार्यों नही करना चाहिए है। यथा — विवाह संस्कार, मुण्डन संस्कार, गृह-प्रवेश, रक्षाबंधन,नया व्यवसाय प्रारम्भ करना, शुभ यात्रा, शुभ उद्देश्य हेतु किये जाने वाले सभी प्रकार के कार्य भद्रा काल में नही करना चाहिए।
भद्रा का वास कब और कहां होता है
पौराणिक ग्रथ मुहुर्त्त चिन्तामणि में कहा गया है की जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी अर्थात मृत्युलोक में होता है। चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्गलोक में होता है। कन्या, तुला, धनु या मकर राशि में चंद्रमा के स्थित होने पर भद्रा का वास पाताल लोक में होता है। कहा जाता है की भद्रा जिस भी लोक में विराजमान होती है वही मूलरूप से प्रभावी रहती है। अतः जब चंद्रमा गोचर में कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होगा तब भद्रा पृथ्वी लोक पर असर करेगी । भद्रा जब पृथ्वी लोक पर होगी तब भद्रा की अवधि कष्टकारी होगी।
जब भद्रा स्वर्ग या पाताल लोक में होगी तब वह शुभ फल प्रदान करने में समर्थ होती है। संस्कृत ग्रन्थ पीयूषधारा में कहा गया है —
स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले च धनागम।
मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी ।।
मुहूर्त मार्तण्ड में भी कहा गया है —“स्थिताभूर्लोख़्या भद्रा सदात्याज्या स्वर्गपातालगा शुभा” अतः यह स्पष्ट है कि मेष, वृष, मिथुन, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु या मकर राशि के चन्द्रमा में भद्रा पड़ रही है तो वह शुभ फल प्रदान करने वाली होती है।
भद्रा लोक वास चक्रम
लोकवास | स्वर्ग | पाताल | भूलोक |
चंद्रराशि | 1,2,3,8 | 6,7,9,10 | 4,5,11,12 |
भद्रा-मुख | उर्ध्वमुखी | अधोमुख | सम्मुख |
भद्रा काल संबंधी परिहार | Avoidance of Bhadra
भद्रा परिहार हेतु मुहूर्त चिंतामणि, पीयूषधारा तथा ब्रह्म्यामल में कहा गया है —
दिवा भद्रा रात्रौ रात्रि भद्रा यदा दिवा।
न तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी।।
अर्थात यदि दिन की भद्रा रात में और रात की भद्रा दिन में आ जाए तब भद्रा का दोष नहीं लगता है। भद्रा का दोष पृथ्वी पर नहीं होता है । ऎसी भद्रा को शुभ फल देने वाली माना जाता है।
रात्रि भद्रा यदा अहनि स्यात दिवा दिवा भद्रा निशि।
न तत्र भद्रा दोषः स्यात सा भद्रा भद्रदायिनी।।
अर्थात रात की भद्रा दिन में हो तथा दिन की भद्रा जब रात में आ जाए तो भद्रा दोष नही होता है यह भद्रा शुभ फल देने वाली होती है।
एक अन्य मतानुसार —
तिथे पूर्वार्धजा रात्रौ दिन भद्रा परार्धजा।
भद्रा दोषो न तत्र स्यात कार्येsत्यावश्यके सति।।
अर्थात यदि को महत्वपूर्ण कार्य है और उसे करना जरुरी है एवं उत्तरार्ध की भद्रा दिन में तथा पूर्वार्ध की भद्रा रात में हो तब इसे शुभ माना गया है। अंततः यह कहा जा सकता है की यदि कभी भी भद्रा में शुभ काम करना जरुरी है तब भूलोक की भद्रा तथा भद्रा मुख-काल को त्यागकर स्वर्ग व पाताल की भद्रा पुच्छकाल में मंगलकार्य किए जा सकते हैं इसका परिणाम शुभ फलदायी होता है।
भद्रा मुख तथा भद्रा पुच्छ जानने की विधि
भद्रा मुख | Bhadra Mukh
प्राचीन ग्रन्थ मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार “शुक्ल पक्ष” की चतुर्थी तिथि की पांचवें प्रहर की 5 घड़ियों में भद्रा मुख होता है, अष्टमी तिथि के दूसरे प्रहर के कुल मान आदि की 5 घटियाँ, एकादशी के सातवें प्रहर की प्रथम 5 घड़ियाँ तथा पूर्णिमा के चौथे प्रहर के शुरुआत की 5 घड़ियों में भद्रा मुख होता है।
उसी तरह “कृष्ण पक्ष” की तृतीया के 8वें प्रहर आदि की 5 घड़ियाँ भद्रा मुख होती है, कृष्ण पक्ष की सप्तमी के तीसरे प्रहर में आदि की 5 घड़ी में भद्रा मुख होता है। इसी प्रकार कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि का 6 प्रहर और चतुर्दशी तिथि का प्रथम प्रहर की 5 घड़ी में भद्रा मुख व्याप्त रहता है।
भद्रा पुच्छ | Bhadra Puncch
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के अष्टम प्रहर की अन्त की 3 घड़ी दशमांश तुल्य को भद्रा पुच्छ कहा गया है। पूर्णिमा की तीसरे प्रहर की अंतिम 3 घटी में भी भद्रा पुच्छ होती है।
ध्यातव्य बातें :- यह बात ध्यान देने योग्य है कि भद्रा के कुल मान को 4 से भाग देने के बाद जो परिणाम आएगा वह प्रहर कहलाता है है, 6 से भाग देने पर षष्ठांश आता है और दस से भाग देने पर दशमांश प्राप्त हो जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा कौन थी ?
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्य देव की पुत्री तथा शनिदेव की बहन का नाम भद्रा है। भविष्यपुराण में कहा गया है की भद्रा का प्राकृतिक स्वरूप अत्यंत भयानक है इनके उग्र स्वभाव को नियंत्रण करने के लिए ही ब्रह्मा जी ने इन्हें कालगणना का एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया। कहा जाता है की ब्रह्मा जी ने ही भद्रा को यह वरदान दिया है कि जो भी जातक/व्यक्ति उनके समय में कोई भी शुभ /मांगलिक कार्य करेगा, उस व्यक्ति को भद्रा अवश्य ही परेशान करेगी। इसी कारण वर्तमान समय में भी ज्योतिषी तथा गृह के बुजुर्ग भद्रा काल में शुभ कार्य करने से मना करते है। ऐसा देखा भी गया है की इस काल में जो भी कार्य प्रारम्भ किया जाता है वह या तो पूरा नही होता है या पूरा होता है तो देर से होता है।
जाने ! भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने का उपाय
भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने के लिए मनुष्य को भद्रा नित्य प्रात: उठकर भद्रा के बारह नामों का स्मरण करना चाहिए। विधिपूर्वक भद्रा का पूजन करना चाहिए। भद्रा के बारह नामों का स्मरण और उसकी पूजा करने वाले को भद्रा कभी परेशान नहीं करतीं। ऐसे भक्तों के कार्यों में कभी विघ्न नहीं पड़ता।
भद्रा के बारह नाम | Twelfth Name of Bhadra
- धन्या
- दधिमुखी
- भद्रा
- महामारी
- खरानना
- कालरात्रि
- महारुद्रा
- विष्टि
- कुलपुत्रिका
- भैरवी
- महाकाली
- असुरक्षयकारी