Nag Panchami story | नाग पंचमी की प्रचलित प्राचीन कथा

Nag Panchami story | नाग पंचमी की प्रचलित प्राचीन कथा |प्राचीन काल में एक सेठजी थे जिनके सात पुत्र थे। सभी पुत्र विवाहित थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी उत्तम चरित्र की विदूषी और सुशील कन्या थी, परंतु उसका कोई भी भाई नहीं था। एक दिन घर की बड़ी बहू ने घर लीपने हेतू, पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को अपने साथ चलने के लिए कहा तो सभी बहू डलिया और खुरपी लेकर चल पड़ी। मिट्टी खोदने लगी तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- ‘ इसे मत मारो ? इसने क्या अपराध किया है जो आप मार रहे हो ? यह तो निरपराध है।’
यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जाकर बैठ गया। तब छोटी बहू ने उससे कहा-‘हम लोग अभी लौट कर आती हूं आप यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और घर जाकर सर्प से पुनः आने का जो वादा की थी उसे भूल गई।
दूसरे दिन अचानक जब सर्प को किये हुए वादे वाली बात याद आई तब छोटी बहु फ़ौरन ही सब को साथ लेकर वहाँ गई। सर्प उसी स्थान पर बैठा था यह देखकर छोटी बहू कहती है —
सर्प भैया – नमस्ते !
सर्प ने कहा – ‘तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी वादा करने के कारण तुम्हें अभी डस लेता।
छोटी बहु बोली- भैया मुझ से भूल हो गई, इसके लिए आप से क्षमा माँगती हूं।
सर्प बोला – ठीक है, आज से तुम मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई। तुझे जो मांगना हो, माँग लो ।
छोटी बहु बोली- भैया ! मेरा कोई भाई नहीं है, अच्छा हुआ जो आप मेरा भाई बन गए।
कुछ दिन के बाद वह सर्प मनुष्य का रूप धारण करके उसके घर आया और बोला कि ‘मेरी बहिन को भेज दो।’ तब सबने कहा कि ‘इसका तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई लगता हूँ। मैं बचपन में ही घर से बाहर चला गया था। इस तरह से विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया।
रास्ते में उसने मार्ग में बताया कि ‘मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तुम डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। छोटी बहु ने सर्प के कथनानुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहाँ के घर द्वार और धन-ऐश्वर्य को देखकर वह विस्मित हो गई।

एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- ‘मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तुम अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे इस बात का ध्यान न रहा और गलती से गर्म दूध पिला दिया, जिससे उसका मुह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित और दुखी हो गई। परंतु सर्प के समझाने पर शांत हो गई।
किंचित काल पर्यन्त सर्प ने कहा कि बहन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सारा सोना, चाँदी, हीटर- जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुँचा दिया। इतना धन दौलत देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से वशीभूत होकर बोली – तुम्हारा भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने जब यह वचन सुना तो सब वस्तुएँ सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- ‘इन्हें झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए’। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।

सर्प ने छोटी बहू को हीरे-मणियों से जड़ित का एक अद्भुत हार भी दिया था। जिसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी। वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार मुझे लाकर दे दो। राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि शीघ्र ही वह हार मेरे पास पेश किया जाए। मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि ‘महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो’। सेठजी राजा के आदेश को टाल नहीं सके और तुरंत भयवश छोटी बहू से हार मंगाकर मंत्री को दे दिया।

छोटी बहू को जब इस बात का पता चला की मेरा हार रानी के पास चला गया तो बहुत दुखी हुई। उसने तुरंत ही अपने सर्प भाई को याद किया और सर्प भाई के आने पर निवेदन की कि – भैया ! रानी ने मेरा हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया।
जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी। यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर राजा के दरबार में पहुचे।
राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा।
छोटी बहू बोली – राजन ! मेरी धृष्टता के लिए क्षमा करें। यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है।
राजा ने जब यह सुना तब वह सर्प बना हार उसे देकर कहा – अभी इस हार को पहनकर दिखाओ।
छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही वह हार हीरों-मणियों का हो गया।
यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया। राजा प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं और पुरस्कार देकर सम्मानित किया। छोटी वह अपने हार सहित घर लौट आई। छोटी बहु के धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा – ठीक-ठीक बताओ कि यह धन तुझे कौन देता है ? तब वह सर्प को याद करने लगी।
उसी समय सर्प प्रकट होकर बोला – यह मेरी धर्म बहन है और आप यदि मेरी धर्म बहन के आचरण पर संदेह प्रकट करोगे तो मैं तुम्हे डस लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा आदर- सत्कार के साथ पूजा अर्चना किया। चुकि उस दिन पंचमी तिथि थी। इसलिए उसी दिन से नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाने लगा। स्त्रियाँ सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा आज भी करती है।

नाग पंचमी से जुडी अन्य कथा

कालिया नाग और भगवान् श्री कृष्ण से सम्बंधित एक प्रचलित कथा है। कथा के अनुसार कालिया नाग का निवास यमुना नदी में होने के कारण उस नदी का पानी काले रंग का होने लगा था। जो भी उस पानी को पीता वह या तो मर जाता या बीमार हो जाता था। उसका मुख्य कारण था भयानक विषधर कालिया नाग के विष के कारण यमुना नदी का पानी विष के समान हो गया था।
इस पवित्र नदी के किनारे स्थित खेतों की फसलें भी इसी विषधर के कारण नष्ट हो जाया करती थीं।
पशु-पक्षी जो भी यमुना नदी के पानी को पीता वह या तो मर जाता या बीमार हो जाता था। जब कालिया नाग के इस कृत्य की जानकारी भगवान श्री कृष्ण तक पहुंची तब उन्होंने कालिया नाग के साथ युध्द करते हुए उसे यमुना छोड़ने पर विवश कर दिया और पाताल लोक भेज दिया।
इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने भयंकर विषधर के भय से आम लोगों को मुक्त कराया। कहा जाता है कि बृज प्रदेश के लोगों ने श्रावण मास की पंचमी तिथि को नाग देवता की पूजा कर उसे नागपंचमी का नाम दिया। भारतवर्ष में मनाये जाने वाले अनेक पर्व में नाग पंचमी का भी विशेष महत्त्व है।
वाराह पुराण में उल्लिखित कथा के अनुसार सावन मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ब्रह्माजी ने शेषनाग को पृथ्वी धारण करने का आशीर्वाद दिया था।

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