पितृ दोष क्या है | what is Pitra dosh

पितृ दोष क्या है | what is Pitra dosh आध्यात्म में श्रद्धा-विश्वास रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पितृ दोष क्या है अवश्य ही जानना चाहिए। वस्तुतः पितृ दोष (Pitra Dosha)  पूर्व जन्म में किये गए कुकृत्यों तथा अतृप्त मृतात्मा का परिणाम है। संस्कृत में पितृ शब्द का प्रयोग पिता के लिए होता है। यहाँ पर पितृ शब्द का अभिप्राय पितर से है और पितर शब्द का अभिप्राय पूर्वजो से है। पूर्वज उन्हें कहते हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है अर्थात ऎसे सभी पूर्वज जो आज हमारे बीच नहीं है।

पितृ दोष

पितृ दोष क्या है (what is Pitra dosh)

वस्तुतः मृत्यु दो प्रकार की होती है 1. सामान्य मृत्यु 2. अकाल मृत्यु। जब व्यक्ति बिना किसी रोग-दुःख के, सुखी जीवन व्यतीत करते हुए, अपने परिवार के मध्य इस संसार को छोड़ कर चला जाता है तो हम उसे सामान्य मृत्यु कहतें हैं। परन्तु जिसकी मृत्यु असमय होती है यथा — सड़क दुर्घटना, लड़ाई-झगड़े के कारण,  नदी में डूब जाने से,  जहर खाकर,  फांसी लगाकर इत्यादि अन्य अप्राकृतिक कारणों से होती है तो हम उसे अकाल मृत्यु के श्रेणी में रखते है। घर-परिवार में अकाल मृत्यु का होना पितृ दोष की ओर संकेत करता है। ऋषि मुनियों के अनुसार अकाल मृत्यु पितृ दोष के कारण ही होता है।

कहा जाता है कि मोहवश या अकाल मृ्त्यु को प्राप्त होने के कारण, जीवात्मा को सद्गति नहीं मिलती अथवा मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती बल्कि वे मृ्त्यु-लोक में भटकते रहते है। ये पूर्वज स्वयं दुखी होने के कारण पितृ् योनि से मुक्त होना चाहते है, परन्तु जब आने वाली पीढ़ी उन्हें भूला देता है, तो पितृ दोष उत्पन्न होता है। वस्तुतः यही पितृ दोष है।

पितृपक्ष श्राद्ध का महत्व | Importance of Pitripaksh Shradh 

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार देवी देवताओ की ख़ुशी के लिए व्यक्ति को अपनी पितरो यानी पूर्वजो को सर्वप्रथम प्रसन्न करनी चाहिए। भारतीय ज्योतिष एवं हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पितृदोष को सबसे बड़ा दोषो माना जाता है इस दोष से अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते है। पितरो को शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्लपक्ष पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के काल को पितृपक्ष श्राद्ध होता है। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष के समय यमराज पितरो को मुक्त कर देते है ताकि वह पितर पृथ्वी लोक में आकर परिजनों का श्राद्ध ग्रहण कर सके।

श्राद्ध या पिन्डदान के प्रकार | Type of Shradh or Pinddaan 

श्राद्ध या पिन्डदान दोनो एक ही है इसमें कंफ्यूज नहीं करना चाहिए। पिन्डदान का शाब्दिक अर्थ है अन्न को पिन्डाकार बनाकार पितर को श्रद्धापूर्वक अर्पण करना इसी को पिन्डदान कहते है। दझिण भारत में लोग पिन्डदान को श्राद्ध कहते है।

विभिन्न ग्रंथो में श्राद्ध के निम्नलिखित प्रकार बताये गए हैं –

  1. नैमित्तिक या एकोदिष्ट श्राद्ध : वह श्राद्ध जो केवल एक व्यक्ति के लिए किया जाता है। इसमें एक ही पिण्ड, एक ही अर्ध्य तथा एक ही पवित्रक होता है। इसमें भी विश्वदेव नहीं होते हैं।
  2. नित्य श्राद्ध : वैसे श्राद्ध जो नित्य-प्रतिदिन किये जाते हैं, उन्हें नित्य श्राद्ध कहते हैं। इसमें भी विश्वदेव नहीं होते हैं।
  3. काम्य श्राद्ध : वह श्राद्ध जो किसी इच्छा की पूर्ति के उद्देश्य से किया जाए, काम्य श्राद्ध कहलाता है।
    नान्दीश्राद्ध : मांगलिक कार्य यथा पुत्रजन्म, विवाह आदि कार्य में जो श्राद्ध किया जाता है, वह नान्दी श्राद्ध कहलाता हैं।
  4. पावर्ण श्राद्ध : पावर्ण श्राद्ध वे हैं जो भाद्रपद कृष्ण पक्ष के पितृपक्ष, प्रत्येक मास की अमावस्या आदि पर किये जाते हैं। यह विश्वदेव सहित श्राद्ध होता हैं।
  5. शुद्धयर्थ श्राद्ध : शुद्धयर्थ श्राद्ध वे हैं, जो शुद्धि के उद्देश्य से किया जाता है।
  6. सपिण्डन श्राद्ध : वह श्राद्ध जिसमें प्रेत-पिंड का पितृ पिंडों में सम्मलेन किया जाता है, उसे सपिण्डन श्राद्ध कहा जाता है ।
  7. गोष्ठी श्राद्ध : सामूहिक रूप से जो श्राद्ध किया जाता है, वह गोष्ठी श्राद्ध कहलाता हैं।
  8. कर्मांग श्राद्ध : षोडश संस्कारों में किये जाने वाले श्राद्ध कर्मांग श्राद्ध कहलाते हैं।
  9. दैविक श्राद्ध : देवताओं की संतुष्टि की संतुष्टि के उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है वह दैविक श्राद्ध कहलाता है।
  10. श्रौत-स्मार्त श्राद्ध : पिण्डपितृयाग को श्रौत श्राद्ध कहते हैं, जबकि एकोदिष्ट, पावर्ण, यात्रार्थ, कर्मांग आदि श्राद्ध स्मार्त श्राद्ध कहलाता है।
  11. यात्रार्थ श्राद्ध : यात्रा के उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है, वह यात्रार्थ श्राद्ध कहलाता है।
  12. पुष्टयर्थ श्राद्ध : शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक पुष्टता के लिये जो श्राद्ध किया जाता हैं वह पुष्टयर्थ श्राद्ध कहलाता हैं।
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