नवरात्रि 2023 कलश स्थापना कब और कैसे करें ?
शारदीय नवरात्रि 2023 कलश स्थापना कब और कैसे करें के लिए सर्वप्रथम सुबह में नित्य क्रिया से निवृत हो ले, तत्पश्चात स्नान करके, नव वस्त्र अथवा स्वच्छ वस्त्र पहन कर विधिपूर्वक पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। प्रथम पूजा के दिन मुहूर्त (सूर्योदय के साथ अथवा द्विस्वभाव लग्न में 10:45से लेकर 12:59 के बीच में करें) के अनुसार कलश स्थापना करने का विधान है। एतदर्थ अपने घर में मंदिर के सामने या निकट या मंदिर के पास पूजा करने में दिक्कत हो तो घर में ही ईशान कोण अथवा उत्तर-पूर्व दिशा में, चयनित स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर लेना चाहिए उसके बाद कलश में रोली से स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर गले में तीन धागावाली मौली लपेटे और कलश को एक ओर रख ले। कलश स्थापित किये जानेवाली भूमि अथवा चौकी पर कुंकुंम या रोली से अष्टदलकमल बनाकर निम्न मंत्र से भूमि का स्पर्श करना चाहिए।
ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धरत्री।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं द्रीं ह पृथिवीं मा हि सीः।।
कलश स्थापना कैसे करें
उपर्युक्त्त मन्त्र के उच्चारणोपरान्त कलश स्थापना के लिए पूजित भूमि पर सप्तधान्य (जौ,धान,तिल,कँगनी,मूंग, चना, सावा,) अथवा गेहूँ, चावल या जौ रख दे, उसके बाद निम्नलिखित मंत्र पढ़कर कलश को उस पूजित भूमि में स्थापित करें।
कलश स्थापन मंत्र –
ॐ आ जिघ्न कलशं मह्यं त्वा विशंतिवन्दवः।
पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नह सहत्रम् धुक्ष्वोरूधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।
पुनः इस मंत्रोच्चारण के बाद पुनः कलश में गंगाजल मिला हुआ जल छोड़े उसके बाद क्रमशः चन्दन, सर्वौषधि(मुरा,चम्पक, मुस्ता, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, हल्दी, सठी) दूब, पवित्री, सप्तमृत्तिका, सुपारी, पञ्चरत्न, द्रव्य कलश में अर्पित करे।
पुनःपंचपल्लव (बरगद, गूलर, पीपल, पाकड़, आम) कलश के मुख पर रखें।अनन्तर कलश को वस्त्र से अलंकृत करें। तत्पश्चात चावल से भरे पूर्णपात्र को कलश के मुख पर स्थापित करें। पुनः लाल चुनरी से नारियल को लपेटकर उस नारियल को चावल से भरे हुए पूर्ण पात्र पर रखें।
देवी-देवताओं का कलश में आवाहन
भक्त को अपने दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण आदि देवी-देवताओ का ध्यान और आवाहन करना चाहिए –
ॐ भूर्भुवःस्वःभो वरुण! इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण।ओम अपां पतये वरुणाय नमः बोलकर अक्षत और पुष्प कलश पर छोड़ देना चाहिए। पुनः दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर चारो वेद, तीर्थो, नदियों, सागरों, देवी और देवताओ के आवाहन करना चाहिए उसके बाद फिर अक्षत और पुष्प लेकर कलश की प्रतिष्ठा करें।
कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठता वरदा भवन्तु।
तथा ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः इस मंत्र के उच्चारण के साथ ही अक्षत और पुष्प कलश के पास छोड़ दे।
वरुण आदि देवताओ को —
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमःध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि।
आदि मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करे पुनः निम्न क्रम से वरुण आदि देवताओ को अक्षत रखे, जल चढ़ाये, स्नानीय जल, आचमनीय जल चढ़ाये, पंच्चामृत स्नान कराये,जल में मलय चन्दन मिलाकर स्नान कराये, शुद्ध जल से स्नान कराये, आचमनीय जल चढ़ाये, वस्त्र चढ़ाये, यज्ञोपवीत चढ़ाये, उपवस्त्र चढ़ाये, चन्दन लगाये, अक्षत समर्पित करे, फूल और फूलमाला चढ़ाये, द्रव्य समर्पित करे ,इत्र आदि चढ़ाये, दीप दिखाए, नैवेद्य चढ़ाये, सुपारी, इलायची, लौंग सहित पान चढ़ाये, द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये(समर्पयामि) इसके बाद आरती करे। पुनः पुस्पाञ्जलि समर्पित करे, प्रदक्षिणा करे तथा दाहिने हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करे और अन्त में ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, प्रार्थनापूर्वकं अहं नमस्कारान समर्पयामि। इस मंत्र से नमस्कारपूर्वक फूल समर्पित करे। पुनः हाथ में जल लेकर अधोलिखित वाक्य का उच्चारण कर जल कलश के पास छोड़ते हुए समस्त पूजन-कर्म वरुणदेव को निवेदित करना चाहिए।
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम।
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