इलाहाबाद प्रयागराज अर्द्ध कुम्भ मेला 2019
इलाहाबाद, प्रयागराज अर्द्ध कुम्भ मेला 2019 . विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम दिनांक 15 जनवरी से शुरू होकर 4 मार्च 2019 को महाशिवरात्रि पर्व के साथ ही समाप्त होगा। यह मेला प्रयागराज वा इलाहाबाद की धरती पर होने जा रहाहै,यह वह स्थान है जहां गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी का संगम है जिसेत्रिवेणी के नाम से भी जाना जाता है, इस स्थलपर श्रद्धालु आस्था की डुबकियां लगाकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करेंगे। वर्ष 2019 में प्रयागराज में लगने वाला कुम्भ मेला अर्द्ध कुम्भ के नाम से जाना जायेगा।
वर्ष 14 जनवरी को रातमें सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि प्रवेश करतेही कुम्भ मेला का आगाज हो जायेगा और 4 मार्च को महाशिवरात्रि पर्व के साथ ही समाप्त हो जायेगा । गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के पवित्र तट पर लगने वाले कुम्भ मेला कुल49 दिनों तक चलेगा इस दौरान छह महास्नान पर्व होंगे। इनमें चार प्रमुख स्नान पर्व सोमवार को है यथा– मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, मौनी अमावस्याऔर महाशिवरात्रि का पर्व सोमवार को है अतः यह स्पष्ट है की भगवान शिवजी का आशीर्वाद श्रद्धादुलों पर हमेशा बना रहेगा।
कुम्भ पर ग्रहीय राजयोग
यदि ज्योतिष के दृष्टिसे देखें तो वर्ष 2019 में होने वाले कुम्भ पर्व पर देवताओं के गुरु बृहस्पति और असुरोंके गुरु शुक्र यानी शुक्राचार्य दोनों भूमि पुत्र मंगल की राशि वृश्चिक में एक साथ 16 दिन तक गोचर में रहेंगे। वस्तुतः जो श्रद्धालु 14 जनवरी से 30 जनवरी के मध्य स्नान करेंगे उसे एक साथ देवगुरु और असुर गुरुआशीर्वाद देंगे और उसे सभी पापकर्म से मुक्ति दिलाएंगे।
सोमवती अमावस्या का दुर्लभ योग
जिस अमावस्या के दिनसोमवार पड़ता है उसे सोमवती अमावस्या के नामसे जाना जाता है इस बार मौनी अमावस्या के दिन सोमवार पड़ रहा है। कहा जाता है कि इसदिन व्रत रखने तथा संगम में स्नान, दान करने से जन्म-जन्म के बंधन से मुक्ति मिलतीहै। पौष पूर्णिमा जो की 21 जनवरी को उस दिनचंद्रमा अपनी ही राशि कर्क में रहेंगे। ज्योतिष में चन्द्रमा जल का कारक है तथा चन्द्रमामहादेव शिवजी के जाता में निवास करते हैं। ऐसे में चंद्रमा यानी जल में स्नान करनेसे पुण्यफल की प्राप्ति होगी।
कुम्भ मेला 2019 महास्नान तिथियां
दिनांक | तिथि | दिन |
14 जनवरी | मकर संक्रांति | सोमवार |
21 जनवरी | पौष पूर्णिमा | सोमवार |
4 फरवरी | मौनी अमावस्या | सोमवार |
10 फरवरी | वसंत पंचमी | रविवार |
19 फरवरी | माघी पूर्णिमा | मंगलवार |
4 मार्च | महाशिवरात्रि | सोमवार |
कुम्भ मेला का महत्व
विष्णु सहस्त्र नामके प्रथम श्लोक में सर्वप्रथम “विश्वं” शब्द का प्रयोग किया उसके बाद विष्णु शब्द आया है — अर्थात सम्पूर्ण विश्व ही विष्णुमय है। वस्तुतः भारतीय संस्कृति इतना समृद्ध है कि पुरे देश में प्रत्येक दिन कोई न कोई पर्व मनाया ही जाता है तथा उस पर्व से कोई न कोई कथा या पौराणिक धारणा भी अवश्यही छिपी हुई होती है।
कुम्भ महापर्व के पीछेभी एक कथा प्रचलित है। पुराण के अनुसार प्राचीन समय में हिमालय के समीप क्षीरोद नामकसमुद्र तट पर देवताओं तथा असुरों दोनों एकत्रहोकर अमृत फल प्राप्ति के लिए समुद्र-मंथन किया। परिणामस्वरूप जो चौदह 14 रत्न प्राप्तहुए उनमे श्री रम्भा, विष, वारुणी, अमिय, शंख, गजराज, धन्वन्तरि, धनु, तरु, चन्द्रमा,मणि और बाजि इनमें से अमृत से भरा हुआ कुम्भ ( घड़ा ) सबसे अंत में निकला। उस समय देवताओंको यह चिंता परेशान करने लगी कि यदि असुरों ने इस अमृत का पान कर लिया तो दानव भी अमर हो जाएंगे। इस कारण देवताओं ने इन्द्रके पुत्र जयंत को अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ जाने का संकेत किया। जयंत अमृत-कलशलेकर आकाश में उड़ गया और असुर उसे छीनने के लिए उसके पीछे-पीछे भागने लगे।
इस घटना के बाद हीअमृत-कलश को लेकर देव और असुर के मध्य संघर्षछिड़ गया। दोनों पक्षों में 12 दिनों तक लड़ाई चलती रही। इस दौरान छीना-झपटी में कुम्भ से अमृत की बूंदें छलक कर प्रयाग, हरिद्वार, नासिक तथा उज्जैन में गिर गया। अमृत रस के गिरने से यह स्थान पवित्र व मोक्षदायिनीस्थल के रूप में प्रतिष्ठित हो गया। दोनों के संघर्ष समाप्तहोने का नाम ही ले रहा था तब अंत में भगवानविष्णु मोहिनी रूप धारण करके कुम्भ को अपनेहाथ में लिए और देवताओं को सब अमृत पिला दिया। इन चारों स्थानों पर जिस-जिस समय अमृत गिरा उस काल विशेष में सूर्य, चन्द्र तथा गुरू आदि ग्रह-जिस राशि नक्षत्रोंमें थे उस उस राशि नक्षत्रों में आने पर उस-उस स्थान विशेष में कुम्भ महापर्व मनायाजाने लगा। वृहस्पति ग्रह प्रत्येक बारह वर्षमें उसी राशि तथा नक्षत्र में भ्रमण करते हुए आते है यही कारण है की ये चारो स्थानोंमें प्रत्येक बारह वर्ष के अंतराल में कुम्भ मेला/महास्नान का आयोजन किया जाता है।इसी कारण कुम्भ का विशेष रूप से धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व है।