षड मुखी रुद्राक्ष(Six Mukhi Rudraksh)धन प्रदान करता है

षड मुखी रुद्राक्ष(Six Mukhi Rudraksh) धन प्रदान करता है यह साक्षात् कार्तिकेय तथा गणेश का स्वरूप है इसके धारण करने से विद्या, बुद्धि तथा धन की वृद्धि होती है साथ ही भ्रूण हत्या (Feticide)  जैसे पापो से मुक्ति मिलती है। श्रीमद्भागवत पुराण में में इसे कार्तिकेय तथा रुद्राक्षवालोपनिषद् में कार्तिकेय के साथ गणेश कहा गया है इसीलिए षडमुखी रुद्राक्ष शिव पुत्र के रूप में प्रसिद्ध है।

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षड मुखी रुद्राक्ष धारण से लाभ(Benefit of Six Mukhi Rudraksh)

षड मुखी रुद्राक्ष इस मृत्यलोक में साक्षात शिव पुत्र रूप में विद्यमान है। इसके धारण करने से व्यक्ति को ब्रह्म हत्या जैसे पापों से शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है। इसी प्रकार अन्यान्य लाभ प्राप्त होता है जो निम्न प्रकार से है।

  • इसके धारण करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती है।
  • भ्रूण हत्या तथा कन्या हत्या जैसे पापो से मुक्ति मिलती है।
  • रोग समाप्त करने की असीम क्षमता षड मुखी रुद्राक्ष में है।
  • युद्ध क्षेत्र में तथा शत्रुओं पर विजय दिलाता है।
  • विधार्थियों(Students) के लिए तो यह वरदान स्वरूप ही है। विद्यार्थी जीवन में इसे धारण करने से छात्रों में बुद्धि कौशल, तथा स्मरण शक्ति का विकास होता है साथ ही प्रतियोगी भावना की वृद्धि होती है। इसके पहनने से जातक वाक्पटु तथा धीर होता है।

ज्योतिष और षडमुखी रुद्राक्ष(Astrology and Six Mukhi Rudraksh)

षड मुखी रुद्राक्ष का सञ्चालन और अधिपति ग्रह शुक्र(Venus) है जो भोग-विलास और सुख-सुविधा के प्रतिनिधि ग्रह है। शुक्र ग्रह गुप्तेंद्रिय, वीर्य, स्त्री, मुख, गला, पुरुषार्थ, काम-वासना,  प्रेम, संगीत इत्यादि का भी कारक ग्रह है। शुक्र के दुष्प्रभाव से होने वाले रोग नेत्ररोग, यौनरोग,  मुखरोग,  मूत्ररोग, गला का रोग, जलशोथ इत्यादि रोग होते है। इन सभी रोगो के निदान एवं निवारण के लिए षण्मुखी रुद्राक्ष अवश्य ही धारण करना चाहिए।

वर्तमान भौतिकवादी युग में शुक्र ग्रह का महत्त्व अधिक हो गया है। भोग-विलास के उपकरण अधिकाधिक आविष्कृत और प्रचलित हुए है। संगीत, परिवहन, नारियो की जीवन शैली और सामाजिक स्थिति में भी काफी परिवर्तन हुआ है। इन सब का कारक ग्रह शुक्र है यही कारण है की षण्मुखी रुद्राक्ष इस युग के लिय बहुत ही महत्वपूर्ण है।

षडमुखी रुद्राक्ष धारण के मन्त्र तथा विधि

षडमुखी रुद्राक्ष धारण करने के लिए सर्वप्रथम नित्य क्रिया से निवृत्त होना चाहिए। उसके बाद शुद्ध जल से स्नान कर गृह में स्थित मंदिर में विधिपूर्वक विनियोग, ऋष्यादिन्यास, करादिन्यास,  हृदयादिन्यास तथा ध्यान करना चाहिए उसके बाद षडमुखी रुद्राक्ष के लिए निर्धारित मन्त्र का जप रुद्राक्ष माला पर करना चाहिए। मन्त्र प्रायः सभी पुराणों में भिन्न-भिन्न दिया गया है यथा —

  • पद्म पुराणानुसार :- ॐ हूं नमः।
  • शिवमहापुराण :- ॐ ह्रीं नमः।
  • मन्त्रमहार्णव :- ॐ हूं नमः।
  • बृहज्जाबालोपनिषद – ॐ नमः शिवाय।

इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार (एक माला) अवश्य ही  करना चाहिए तथा इसे सोमवार के दिन धारण करना चाहिए।

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