सकट चौथ कथा | बहुला चतुर्थी व्रत कथा | Sakat, Bahula Vrat Story

सकट चौथ कथा | बहुला चतुर्थी व्रत कथा | Sakat, Bahula Vrat Storyसकट चौथ कथा | बहुला चतुर्थी व्रत कथा | Sakat, Bahula Vrat Story . द्वापर युग में जब भगवान श्री हरि ने वसुदेव देवकी के यहां श्रीकृष्ण रूप में अवतार लेकर ब्रजभूमि में अनेक लीलाएं की तो देवी-देवता भी अपने-अपने अंशों से उनकी लीला में सहायक हुए। गौ शिरोमणि “कामधेनु” भी अपने अंश से उत्पन्न होकर “बहुला” नाम से नंदबाबा की गोशाला में गाय बनकर उसकी शोभा बढ़ाने लगी। बालरूप श्रीकृष्ण का बहुला से और बहुला का श्रीकृष्ण से अपार स्नेह था।

कहा जाता है कि बालक श्रीकृष्ण को देखते ही बहुला के स्तनों से दुग्धधारा बहने लगती थी। श्रीकृष्ण बहुला की मातृत्व भाव को देख अमृत सदृश उस दुग्ध का पान किया करते थे। एकदा बहुला वन में घास चर रही थी। उसी समय श्री कृष्ण को बाल लीला सूझी, उन्होंने माया से सिंह का रूप धारण कर लिया, बहुला सिंह को देखकर भयभीत हो गई और थर-थर कांपने लगी।
बहुला दबी जुबान में सिंह से कही – ‘हे वनराज ! मैंने अभी अपने बछड़े को दूध नहीं पिलाया है, वह मेरी प्रतीक्षा कर रहा होगा। अतः मुझे जाने दो, मैं उसे दूध पिलाकर तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तब मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लेना।

“सिंह” ने कहा- ‘मृत्युपाश में फंसे जीव को छोड़ देने पर उसके पुनः वापस लौटकर आने का क्या विश्वास?’ निरुत्तर होकर बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ ली, तब सिंह ने उसे छोड़ दिया। बहुला गोशाला में जाकर प्रतीक्षारत भूख से व्याकुल बछडे़ को दुग्धपान कराया पुनः उसके बाद अपने वचन की रक्षा हेतू सिंह के पास वापस आ गई ।

बहुला को देखकर सिंह का स्वरूप धारण किए हुए श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और बोले- ‘बहुले ! यह तुम्हारी अग्नि परीक्षा थी, तुम अपने सत्यधर्म पर दृढ़ रही, अतः इसके प्रभाव से घर-घर तुम्हारा पूजन होगा तथा आज से “गोमाता” के नाम से जानी जाओगी।’ बहुला भगवान् श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने घर लौट आई और अपने बछड़े के साथ आनंद से रहने लगी।

उपर्युक्त व्रत कथा का मुख्य उद्देश्य यह है की व्यक्ति को हमेशा सत्य और न्याय पथ का वरन करना चाहिए इस रास्ते पर जो भी चलेगा उसे जीवन कभी न कभी सफलता जरूर मिलेगी। कहा भी गया है — “सत्यमेव जयते” अर्थात सत्य की ही विजय होती है।
अतः इस व्रत का पालन करने वाले को सत्यधर्म का अवश्य ही निर्वहन करना चाहिए। साथ ही अपने कर्त्तव्य पथ से कभी भी च्युत नही होना चाहिए। माता का अपने बच्चो के प्रति जो कर्त्तव्य है उसे भली-भांति निर्वहन करना चाहिए। कहा भी गया है —
माता शत्रु पिता बैरी येन बालो पाठितः।
अर्थात वह माता और पिता शत्रु के समान है जिसने अपने बच्चों को नही पढ़ाया। जो स्त्रियां श्रद्धा व भक्ति पूर्वक बहुला व्रत को करती हैं, वे निश्चय ही गोमाता के समान इस भूमण्डल पर पूजनीय होती है।

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