Chandra or Tara Bal – शुभ मुहूर्त निर्धारण में चंद्र और तारा बल का महत्त्व

शुभ मुहूर्त निर्धारण में चंद्र और तारा बल का महत्त्वChandra or Tara Bal - शुभ मुहूर्त निर्धारण में चंद्र और तारा बल का महत्त्वChandra or Tara Bal – शुभ मुहूर्त निर्धारण में चंद्र और तारा बल का महत्त्व. शुभ मुहूर्त का निर्धारण बिना चन्द्र और तारा बल के शुद्धि से नहीं हो सकता है इसलिए चंद्र और तारा शुद्धि अत्यंत ही आवश्यक विषय है। अतः किसी भी कार्य को शुरू करने से पूर्व तारा और चंद्र बल अवश्य ही देखना चाहिए। यहाँ पर तारा का सम्बन्ध नक्षत्र से है। समस्त कार्यों का प्रारंभ चंद्रमा के शुभ गोचर और बलवान होने पर करना प्रशस्त है। ”शुक्ले चंद्रबलं ग्राह्यं कृष्णे ताराबलं तथा“ अर्थात् शुभ मुहूर्त हेतु शुक्ल पक्ष में चंद्रमा बलवान होना अत्यंत आवश्यक है उसी प्रकार कृष्ण पक्ष में ताराबल देखना चाहिए।

चंद्र बल का महत्त्व और उपयोगिता

उद्वाहे चोत्सवे जीवः, सूर्य भूपाल दर्शने।
संग्रामे धरणीपुत्रो, विद्याभ्यासे बुधो बली।।
यात्रायां भार्गवः प्राक्तो दीक्षायां शनैश्चरः।
चन्द्रमा सर्व कार्येषु प्रशस्ते ग्रह्यते बुधै।।

गोचर में ग्रहों का बलाबल का विचार जन्म काल में स्थित चंद्र राशि से करना चाहिए। उपर्युक्त श्लोक में ‘चंद्रमा सर्व कार्येषु-प्रशस्ते’ कहा गया है। अर्थात समस्त कार्यों में चन्द्रमा सबसे श्रेष्ठ ग्रह है। क्योंकि मुहूर्त में चंद्रमा का फल सहस्त्र गुना होता है, इसलिए चंद्रमा का बलाबल अवश्य देखना चाहिए। ऐसा इसलिए की अन्य ग्रह भी चंद्रमा के बलाबल के अनुसार ही शुभ या अशुभ फल देते हैं। अतः चंद्रमा की शुभता के बिना अन्य ग्रह शुभ फल नहीं देते हैं।

जानें किस भाव में चन्द्रमा शुभ होता है ?

किस स्थान में चन्द्रमा शुभ और अशुभ होता है के सम्बन्ध में इस श्लोक में कहा गया है —–

चंद्र बल तृतीयो दशमः षष्ठः प्रथमः सप्तमः शशी।
शुक्लपक्षे द्वितीयस्तु पंचमो नवमः शुभ।।

शुक्लपक्ष में जन्म राशि से चंद्रमा का गोचर 1, 2, 3, 5, 6, 7, 9, 10 और ग्यारहवें स्थान में शुभ होता है। यदि चंद्रमा इस भाव में गोचर मे है तो जातक को सभी प्रकार के लाभ और विजय दिलाने वाला होता है। चन्द्रमा यदि गुरु ग्रह द्वारा दृष्ट है तो बलशाली हो जाता तथा शुभ फल देता है।

किस स्थान में चन्द्रमा अशुभ होता है ?

जन्म राशि से चंद्रमा का गोचर यदि 4, 8, 12वें स्थान में है तो अशुभ होता है। इसलिए शुभ मुहूर्त में 4, 8, 12 वां चंद्र त्याज्य है। किंचित विद्वान् के अनुसार यदि यात्रा मुहूर्त में चन्द्रमा गोचर में जन्म राशि में हो तो अशुभ फल देता है।

मुहूर्त निर्धारण में ताराबल का महत्व

मुहूर्त के निर्धारण में अधिकांश ग्रंथों में शुक्ल पक्ष को ही सबसे शुभ मुहूर्त के लिए अच्छा माना गया है परन्तु अथर्ववेद ज्योतिष में कृष्ण पक्ष को भी शुभ मुहूर्त हेतु ग्रहण किया गया है। उसके अनुसार — ‘ताराषष्टि समन्विता’ अर्थात् मुहूर्त में तारा को 60 गुना बल प्राप्त होता है। कृष्ण पक्ष में तारा की प्रधानता होने के कारण तारा बल अवश्य ही देखना चाहिए ।

मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार, कृष्ण पक्ष में तारा के बलवान (शुभ) होने पर चंद्रमा भी शुभ होता है और तारा नेष्ट होने पर चंद्रमा नेष्ट होता है। प्रत्येक नक्षत्र का शुभ और अशुभ फल जानकर कार्य करने से लाभ होता है। अतः तारा बल के अनुसार ही कोई भी शुभ कार्य करना चाहिए।

जानें ! कैसे करते हैं तारा साधन ?

तारा साधन के लिए सर्वप्रथम अपने जन्म नक्षत्र से सीधे क्रम में अभिष्ट नक्षत्र तक गिने (जिस दिन शुभ कार्य प्रारंभ करना हो उस दिन का चंद्र नक्षत्र अभिष्ट नक्षत्र होगा ) प्रथम नक्षत्र जन्म नक्षत्र से नवें नक्षत्र तक सम्पत आदि तारा होती है। ९ तारा क्रमशः निम्नलिखित होते हैं —-

  1. जन्म
  2. सम्पत
  3. विपत
  4. क्षेम
  5. प्रत्यरि
  6. साधक
  7. वध
  8. मैत्र
  9. अतिमित्र

यदि नक्षत्र 9 संख्या से अधिक हो तो उसमें 9 का भाग देने पर जो शेष अंक प्राप्त हो उसी शेषांक के तुल्य तारा होती है। इस प्रकार तीन-तीन नक्षत्रों के नौ वर्ग बनते हैं। जिनके नाम जन्म, सम्पत, विपत आदि संज्ञक होते हैं।

‘ताराः शुभप्रदाः सर्वास्त्रिपंचसप्तवर्जिताः।’ अर्थात् 3, 5, 7वीं तारा अशुभ होने के कारण त्याज्य हैं। इनके अतिरिक्त सभी तारायें शुभ होती हैं।

नव नक्षत्र के वर्गे प्रथम तृतीयं तु वर्जयेत्। पंचमं सप्तमं चैव शेषैः कार्याणि कारयेत्।। नक्षत्रों के नौ वर्गों में से प्रथम, तृतीय, पंचम एवं सप्तम वर्ग के नक्षत्रों को छोड़कर शेष वर्गों के नक्षत्रों में शुभ कार्य प्रारंभ करना चाहिए।

विवाह नक्षत्र गुण मेलापक में वर से कन्या की और कन्या से वर की प्रथम तारा (जन्म तारा) शुभ मानी जाती है तथा इसके तीन गुण (अंक) दिये जाते हैं

तारा बोधक चक्र तालिका से शुभाशुभ फल जानें !

क्रमांक तारा नक्षत्र संख्या शुभ /अशुभ फल 
1 जन्म 1, 10, 19 अशुभ
2 सम्पत 2, 11, 20 शुभ
3 विपत 3,12,21 अशुभ
4 क्षेम 4,13,22 शुभ
5 प्रत्यरि 5,14,23 अशुभ
6 साधक 6,15,24 शुभ
7 वध 7,16,25 अशुभ
8 मैत्र 8,17,26 शुभ
9 अतिमैत्र 9,18,27 शुभ

 

सूर्यादि ग्रहों का बलाबल:

प्रत्येक ग्रह उच्च, मूल त्रिकोण और स्वराशि में बलवान होता है तथा नीच और शत्रु राशि में निर्बल होता है। मेष राशि का सूर्य, कर्क और धनु राशि का गुरु 4, 8, 12वां भी शुभ मान्य है।

सभी ग्रह 4, 8, 12वें भाव में अशुभ फल देते हैं। अतः मुहूर्त में जन्म राशि से चैथे, आठवें या ग्यारहवें भाव में यदि सूर्य आदि ग्रहों का गोचर हो तो उस मुहूर्त का त्याग करना चाहिए। सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु जन्म राशि से 3, 6, 11वें भाव में शुभ होते हैं। किंतु शत्रु ग्रहों द्वारा वेधित होने पर अशुभ होते हैं। दशवें भाव का सूर्य चतुर्थस्थ ग्रह से वेधित होता है। पिता पुत्र का वेध नहीं होता इसलिए सूर्य शनि से वेधित नहीं होता है।

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