What’s Numerology | अंकशास्त्र | अंकज्योतिष | अंक विज्ञान । अंकशास्त्र अंको का विज्ञानं है। अंक ज्योतिष (Numerology) भविष्य जानने की एक विधा है। अंक के आधार पर भविष्य और सभी प्रकार के ज्योंतिषीय प्रश्नों का उत्तर ज्ञात किया जा सकता है। अंक के आधार पर सभी कार्य सम्पन्न होते हैं। वर्ष, महीना, पक्ष, तिथि, घण्टा, मिनट तथा सेकंड को व्यक्त करने का माध्यम अंक ही है न की कुछ और। एक सेकंड से हमारी ट्रेन और फ्लाइट छूट जाती है और हम कई बार अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण अवसर को गवाँ देते है। यह अंक के महत्ता को ही प्रदर्शित करता है।
कई बार आपके जीवन में ऐसी घटनाएँ घटती हैं जो पहले कभी घटी और बाद में उसी दिनांक, मास, दिन और समय से मिलते जुलते घटना घटी। यही नहीं तारीख, मास, वर्ष और उसके अंकों का योग भी पूर्ण रूप से पहले के अनुसार मिल जाता है। कई बार उस घटना के साथ जुड़े हुए व्यक्ति तथा इस घटना से जुड़े हुए व्यक्ति का नाम या नामांक भी एक ही होता है। वास्तव में इस तरह का समरूप अनुभव हमें अंक को शास्त्र, विज्ञान और ज्योतिष से जोड़ने के लिए मजबूर करता है।
यह सही है कि नकारात्मक सोच वाले कह सकते है कि यह तो मात्र संयोग है वास्तव में संयोग की भ्रांति उस समय दूर हो जाती है जब आप उस घटना विशेष को अन्य घटना से अंकशास्त्र के आधार पर जोड़ कर देखें।
ऐसे मैंने कई लोगों के मुह से सूना हूं कि अमुक दिन ( शनिवार, सोमवार इत्यादि) और अमुक तिथि मेरे लिए शुभ है।ऐसा वही व्यक्ति जिन्होंने इसका अन्वेषण किया है। हम आप में से ऐसे बहुत लोग है जो इस बिंदु पर गहराई से विचार करते है और आप सबसे मेरा अनुरोध है की यह विषय विचारणीय है। अपने अपने अनुभव को तर्क के कसौटी पर उतारने की कोशिश करनी चाहिए। यह कोई अंधविश्वास नहीं है बल्कि यह तो विज्ञान है। यह आपको अपने आप में अलग तरीके से सोचने की क्षमता विकसित करता है।
अंकशास्त्र का ऐतिहासिक सिंहावलोकन | History of Numerology
संख्याएँ, आँकड़े या नंबर ये सभी अंक के ही पर्यायवाची है। अंक को अंग्रेजी में Number के रूप में जानते हैं। अंक का प्रयोग प्राचीन काल से चली आ रही है। मनुष्य अपने जीवन के प्रारम्भ से वस्तु के माध्यम से एक-दूसरे के साथ आदान-प्रदान करने लगा। इस प्रक्रिया में उसे गणना करने की आवश्यकता पड़ी। उस समय गाय अथवा अन्य वस्तु को विनिमय का आधार बनाया जाता था। प्रारम्भ में दिवालों पर रेखाएँ खींचकर, पत्थर के टुकड़ों को गिनकर या निश्चित मात्रा में अन्न को ही व्यापार का आधार बनाया गया होगा। वही मनुष्य की दस अंगुलियों पर से एक से दस की संख्याएँ तथा अंक गणित की दशांश पद्धति का अन्वेषण हुआ होगा।
वैदिक काल में यज्ञ की वेदी की रचना के लिए अंकगणित, ज्यामिति इत्यादि का उपयोग हुआ। कहा जाता है कि अंकों के दस संकेतों का जन्म भी भारत में ही हुआ। संख्याओं की दशांश पद्धति का अन्वेषण भी यही हुआ। संख्याओं के दसवें संकेत शून्य ‘0’ की शुरूआत भी भारत में ही हुई।
“ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवशिष्यते”।
इस उपनिषद वाक्य से भी स्पष्ट है की शून्य की शुरुआत वैदिक काल में ही हो गई। बीज गणित का प्रारंभ भी भारत में ही हुआ था। प्रसिद्ध ज्योतिषी भास्कराचार्य ने गणित शास्त्र के ऊपर लीलावती नामक ग्रंथ की रचना की जिसमे बीजगणित, त्रिकोणमिति, अंकगणित आदि का विशद वर्णन किया गया है।
यह स्पष्ट है कि अंकों के बिना हमारा एक पल भी जीना मुश्किल है। अंक अर्थात् गणना, गिनती तथा गणना अर्थात् गणित। शिक्षा, विज्ञान, खगोल शास्त्र, व्यापार वाणिज्य, खेतीबाड़ी इत्यादि सभी में गणना अर्थात गणित की आवश्यकता पड़ती है। मुझे आज भी याद है मेरे गुरूजी प्रो मदन मोहन अग्रवाल जो दिल्ली विश्विद्यालय में संस्कृत विभाग में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत थे वे हमेशा कहते थे कि जीवन का प्रत्येक पल गणनीय है। हम सब जो भी कर रहे है वह पूर्वनिर्धारित था और हमसे कराया जा रहा है। आवश्यकता है अनुभव करने का।
हमारे जीवन का कोई भी पल अंकों के बिना नहीं बीतता है अर्थात अंको के बिना जीवन अगणनीय है। प्राचीन ऋषि मुनियो ने अंकशास्त्र का प्रयोग प्रश्न शास्त्र, स्वरोदम शास्त्र, योग आदि में किया है।
कौन है ? अंकशास्त्र का जनक
अंकशास्त्र के प्रायः सभी विद्वानों ने यह स्वीकार किया है कि इस शास्त्र का आरम्भ हिब्रू मूलाक्षरों से हुआ है । हिब्रू में 22 (बाईस) मूलाक्षर हैं जो उसके प्रत्येक अक्षर को क्रमानुसार 1 से 22 अंक दिए गए हैं। प्रत्येक अंक और अक्षर विशिष्ट अर्थ का संकेत करता है। उस समय हिब्रू लोग अंकों के स्थान पर अक्षरों का और अक्षरों के स्थान पर अंक का उपयोग करते थे।
यही नहीं हिब्रू लोगो ने इन अक्षरों और अंकों के स्वामियों के रूप में अलग-अलग राशियों तथा ग्रहों को भी निश्चित किया। इस प्रकार यदि हम अक्षरों, अंकों, राशियों और ग्रहों के बीच सम्बन्धो का प्रथम जनक के रूप में “हिब्रू” को देख सकते है। वस्तुतः अंकशास्त्र का आधार भी यही है विद्वानों ने इसी में थोड़े बहुत परिवर्तन करके अंकशास्त्र को नित नए रूप में स्थापित किया है।
हिब्रू पद्धति में शब्दों के के लिए निर्धारित अंक
हिब्रू पद्धति अथवा पुरानी पद्धति में अंको का क्रम लगातार नहीं है। अंको का क्रम निश्चित न होने से याद रखना कठिन है। यह तर्क संगत भी नहीं लगता है। साथ ही किसी भी अक्षर को 9 (नौ) का अंक नहीं दिया है।
A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
1 2 3 4 5 8 3 5 1 1 2 3 4 5 7 8 1 2 3 4 6 6 6 5 7 8
पाइथागोरियस पद्धति अथवा आधुनिक पद्धति में अक्षरो के लिए अंक का निर्धारण लगातार दिया गया है। इसमें क्रमानुसार ही अक्षरों को 1 से 9 तक के अंक दिए गए हैं। किसी भी अंक का लोप नहीं किया गया है। यह सरल सुगम्य और सुबोध है।
A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
1 2 3 4 5 6 7 8 9 1 2 3 4 5 6 7 8 9 1 2 3 4 5 6 7 8
अंक का निर्धारण | Allocation of Number
अंकशास्त्र वा अंक ज्योतिष को न्यूमरोलॉजी के नाम से जाना जाता है। अंकशास्त्र में अंग्रेजी के A B C D E F G H शब्दों को तथा हिंदी के क, ख, ग, घ इत्यादि वर्णों को अंकों से जोड़ा जाता है। सभी वर्णो को विभिन्न विद्वानों ने अपने अपने अनुभव तथा वैज्ञानिकता के कसौटी पर परखकर फलादेश वा घटना को घटित होने की सम्भावना व्यक्त करते है।
व्यक्ति के नाम के अक्षर को अंग्रेजी में लिखकर प्रत्येक अक्षर के अंक को निश्चित करके नाम का मूलांक निकाला जाता है। यही नही जातक के जन्म के दिनांक, मास और साल के अंकों का योग करके जन्म तिथि के मूलांक को निकाला जाता है। पुनः इसी मूलांक को मुख्य आधार मानकर वर्ष, मास, दिनांक के अंको से मित्र शत्रु आदि सम्बन्धानुसार भविष्यवाणी की जाती है।
इसके बाद जातक के नाम के मूलांक तथा तिथि के मूलांक से भाग्यांक निकालकर भाग्यांक को पुनः वर्ष मास आदि से जोड़कर शुभ अशुभ फल का निर्धारण किया जाता है।
अंकशास्त्र व्यावहारिक क्यों है ?
अंकशास्त्र वास्तव में व्यवहारिक क्योकि अंकशास्त्र के माध्यम से यदि जन्म के समय की पूर्ण जानकारी नहीं है तब भी फलादेश किया जा सकता है। आपकी जन्म दिनांक और नाम इन दोनों के मूलांक निकालकर वर्तमान वर्ष मास इत्यादि के आधार पर व्यवसायों, प्रेम, विवाह आदि विभिन्न इच्छित विषयो के सम्बन्ध में शुभ अशुभ फल का निर्धारण किया जा सकता है।
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