Saraswati Puja 2023 | सरस्वती पूजा कब और कैसे करना चाहिए

Saraswati Puja 2023 | सरस्वती पूजा कब और कैसे करना चाहिए। सरस्वती हिन्दू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। सरस्वती ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं जो विद्या की देवी के रूप में लोकविश्रुत हैं। सरस्वती माता विभिन्न नामों से भी जानीं जाती हैं यथा – श्वेतपद्मासना, शारदा,वाणी, वाग्देवी, भारती, वागेश्वरी श्वेत वस्त्रधारिणी, इत्यादि कहा जाता है कि माता की उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन जाते हैं। प्रत्येक वर्ष माघ शुक्ल पंचमी को सरस्वती पूजा मनाने की परम्परा वर्षों से चली आ रही है।

सरस्वती पूजन 2023 कब करें ? | Saraswati Puja 2023

हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को माता सरस्वती देवी की पूजा की जाती है। इस वर्ष सरस्वती पूजा (Saraswati Puja) 26 जनवरी , बृहस्पतिवार को मनाया जा रहा है। 25 जनवरी 2023 को 12 बजकर 37 मिनट से पंचमी तिथि शुरू हो रही है और 26 जनवरी प्रातः 10 बजकर 31 मिनट पर समाप्त हो रही है। चूँकि 26 तारीख को सूर्योदय के समय पंचमी तिथि है इसलिए सरस्वती पूजा 26 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी।

सरस्वती पूजा मुहूर्त 2023

26 जनवरी 2023

वसंत पंचमी पूजा शुभ मुहूर्त = 07:12 – 08:30
मुहूर्त की अवधि = 1 घंटे 18 मिनट

पंचमी तिथि = 25 जनवरी 2023, बुधवार को 12:37 बजे प्रारंभ होगी।
पंचमी तिथि = 26 जनवरी 2023, गुरुवार को 10:31 बजे समाप्त होगी।

सरस्वती पूजा का महत्त्व – Importance of Saraswati Puja

हिन्दू समाज में माता सरस्वती साहित्य, संगीत, कला तथा विद्या की देवी के रुप में प्रतिष्ठित हैं। यह पर्व बिहार राज्य तथा उत्तर प्रदेश में बड़े ही धुमधाम से मनाया जाता है। यही नहीं बिहार प्रान्त के निवासी जहां भी रहते हैं सरस्वती पूजन अवश्य ही करते हैं। इस पर्व को मनाने का मुख्य उद्देश्य है शिक्षा की महत्ता को जन-जन तक पहुचाना। शिक्षा के प्रति जन-जन के मन-मन में अधिक उत्साह भरने-लौकिक अध्ययन और आत्मिक स्वाध्याय की उपयोगिता के महत्त्व को समझने के लिए भी सरस्वती पूजन(Saraswati Puja) की परम्परा है।

सरस्वती को वीणापुस्तक धारिणी कहा गया है। उनमें भाव, विचार एवं संवेदना का त्रिविध संगम है। जहां वीणा संगीत की वहीं पुस्तक विचारों की और मयूर वाहन कला की अभिव्यक्ति है। सरस्वती की आराधना से मुर्ख भी विद्वान बन जाता है। वैदिक साहित्य में षड वेदांग की बात कही गई है षड वेदांग में शिक्षा का भी स्थान है और उस शिक्षा पर माता सरस्वती का पूर्ण अधिकार है। शिक्षा के विना व्यक्ति पशु के समान है कहा भी गया है —

साहित्य संगीत कला विहीन साक्षात पशु पूंछविषाणहीनः।

 Saraswati Puja 2023 | सरस्वती पूजा कब और कैसे करना चाहिए

कैसा है ? माता सरस्वती का स्वरूप

सरस्वती के एक मुख, चार हाथ हैं। दोनों हाथों में वीणा धारण की हुई है। वीणा संगीत, भाव-संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक है। तीसरे हाथ में पुस्तक है जो विद्या की प्रतीक है यह विद्या रुपी ज्ञान अपूर्व है जो संचय करने पर घटता है तथा व्यय करने पर बढ़ता है। अन्य हाथ में माला है जो ईश्वर के प्रति निष्ठां तथा सात्त्विकता का बोधक है। हंसवाहिनी कहा जाता है अर्थात इनके वाहन हंस है। मयूर-भी इनका वाहन है जो मनोरम सौन्दर्य का प्रतीक है।

सरस्वती पूजा कैसे करना चाहिए ? (Saraswati Puja Vidhi)

माँ सरस्वती की पूजा (Saraswati Puja) करने वाले को सबसे पहले सरस्वती की प्रतिमा को शुद्ध या नवीन श्वेत वस्त्र पर अपने सामने रखना चाहिए। पूजा आरम्भ करने से पहले अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्घ करना चाहिए –

“ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥”

इन मंत्रों को पढकर अपने ऊपर तथा आसन पर तीन-तीन बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगाने चाहिए। पुनः निम्न मंत्र से आचमन करना चाहिए। ऊं केशवाय नम: ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, बोलकर फिर हाथ धोनी चाहिए। उसके बाद फिर से आसन शुद्धि मंत्र बोलने चाहिए ।

ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

आसन शुद्धि और आचमन के बाद चंदन का तिलक लगाना चाहिए। तिलक हमेशा अनामिका उंगली से ही लगाना चाहिए। चन्दन लगाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।

‘चन्दानस्य् महत्पुिण्यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्याम् लक्ष्मीम तिष्ठ:तु सर्वदा।’

पुनः इसके बाद सरस्वती पूजन (Saraswati Puja) के लिए संकल्प लेनी चाहिए बिना संकल्प लिए की गयी पूजा सफल नहीं होती है इसलिए संकल्प जरूर लेनी चाहिए। संकल्प लेने के बाद हाथ में फूल ( श्वेत पुष्प जरूरी होता है) अक्षत, फल और मिष्ठान लेकर ‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्या: सरस्वत्या: पूजनमहं करिष्ये |’  इस मंत्र का उच्चारण करते हुए हाथ में रखी हुई सामग्री मां सरस्वती के सामने समर्पित कर देना चाहिए। इसके बाद गणपति जी की पूजा विधिवत करे पुनः कलश पूजा करनी की पूजा करनी चाहिए। उसके बाद सरस्वती की पूजा करनी चाहिए।

सर्वप्रथम माता सरस्वती का ध्यान रना चाहिए ध्यान के समय निम्न मंत्रो का जप करना चाहिए

  • या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
  • या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
  • या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
  • सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।1।।
  • शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं ।
  • वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।
  • हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् ।
  • वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।2।।

पुनः सरस्वती देवी की स्थापना करना चाहिए। स्थापना करने के लिए हाथ में अक्षत लेकर निम्न मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए। “ॐ भूर्भुवः स्वः महासरस्वती, इहागच्छ इह तिष्ठ। इस मंत्र को बोलकर अक्षत छोड़ना चाहिए। इसके बाद पुनः जल लेकर आचमन करना चाहिए। ‘एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” इस प्रकार से माता की स्थापना हो जाने के बाद स्नान कराना चाहिए। ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ श्री सरस्वतयै नमः।। इसके बाद लाल चन्दन  लगाना चाहिए। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। पुनः माता को इदं सिन्दूराभरणं मंत्र से सिंदूर लगाना चाहिए। ॐ सरस्वतयै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’इस मंत्र से फूल और माला चढ़ाना चाहिए। अब सरस्वती देवी को श्वेत या पीला वस्त्र पहनाएं।

इसके बाद प्रसाद के रूप में फल तथा नैवैद्य चढ़ाये। मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: “इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं सरस्वतयै समर्पयामि” बालें। प्रसाद  चढाने के बाद आचमन  करें।  इदं आचमनयं ऊं सरस्वतयै नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं सरस्वतयै समर्पयामि। पुनः  फूल लेकर सरस्वती देवी पर चढ़ाएं और बोलें एष: पुष्पान्जलि ऊं सरस्वतयै नम:। इसके बाद  फिर एक फूल लेकर उसमें चंदन और अक्षत लगाकर  पूजा के पास रखे हुए किताब तथा कॉपी पर रख देना चाहिए। सरस्वती मंत्र दिलाता है परीक्षा में सफलता

माता सरस्वती के लिए हवन 

उपर्युक्त पूजा का बाद माता सरस्वती के नाम से हवन अवश्य ही करना चाहिए। इसके लिए एक हवन कुण्ड बनाना चाहिए। आम की अग्नि प्रज्वलित करें। हवन में सर्वप्रथम ‘ऊं गं गणपतये नम:’ स्वाहा मंत्र से गणेश जी एवं ‘ऊं नवग्रह नमः’ स्वाहा मंत्र से नवग्रह का हवन करें, तत्पश्चात् सरस्वती माता के मंत्र ‘ॐ सरस्वतयै नमः स्वाहा ‘ से 108 बार हवन करें।